Chamba: दशनाम अखाड़ा चम्बा 1000 वर्ष से निभा रहा इस परंपरा को, पहले राजा करते थे रवानगी

Edited By Kuldeep, Updated: 02 Sep, 2024 07:24 PM

chamba dashnam akhara tradition

छड़ी हिंदू धर्म व दंड का प्रतीक है। पवित्र मणिमहेश यात्रा के शाही स्नान के लिए पंच जूना दशनाम अखाड़ा चम्बा से हर वर्ष छड़ी यात्रा निकाली जाती है।

चम्बा (काकू चौहान): छड़ी हिंदू धर्म व दंड का प्रतीक है। पवित्र मणिमहेश यात्रा के शाही स्नान के लिए पंच जूना दशनाम अखाड़ा चम्बा से हर वर्ष छड़ी यात्रा निकाली जाती है। पिछले 1000 वर्ष से अधिक समय से अखाड़ा मणिमहेश के लिए छड़ी ले जाने की परंपरा निभा रहा है। राजबाड़े के समय राजा स्वयं अखाड़े में पहुंचकर पूजा-अर्चना के बाद छड़ी को मणिमहेश के लिए रवाना करते थे। रियासतकाल के बाद प्रशासनिक अधिकारी इस परंपरा का निर्वहन कर रहे हैं, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में प्रशासनिक अधिकारियों द्वारा इसकी अनदेखी भी की गई है। यह बात दशनाम अखाड़े के महंत यतेंद्र गिरी ने सोमवार को पत्रकार वार्ता में कही। उन्होंने कहा कि चम्बा के राजा साहिल वर्मन ने दशनाम अखाड़ा की स्थापना की थी। इसके बाद लगातार छड़ी यात्रा निकाली जा रही है।

भारतवर्ष में हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना के लिए आदि गुरु शंकराचार्य ने छड़ी की शुरूआत की थी। इसके माध्यम से जगह-जगह धर्म का प्रचार किया गया। लोगों को हिंदू धर्म के मायने समझाए औरी धर्म को लेकर फैली भ्रांतियां मिटाईं। लोगों को हिंदू धर्म का ज्ञान दिया। शंकराचार्य ने मूर्ति पूजा को सिद्ध करने की कोशिश की। उन्होंने हिंदू धर्म की पुनर्स्थापना करने के लिए विरोधी पंथ की बातों को भी सुना। आदि शंकराचार्य उन कई आध्यात्मिक शिक्षकों में से एक थे जिन्होंने "दंड" (लाठी) का इस्तेमाल किया था, जिसके शीर्ष पर भगवा कपड़ा लगा होता है। दण्ड सन्यासी के त्यागपूर्ण जीवन और भौतिकवादी आशक्तियों से अलग रहने के समर्पण का प्रतीक है।

आध्यात्मिक गुरु एक सीधी छड़ी लेकर भौतिक सम्पत्तियों के त्याग और सादगीपूर्ण जीवन का प्रतिनिधित्व करते हैं। भारतीय आध्यात्मिक परंपरा में डंडा का उपयोग गुरु या आध्यात्मिक शिक्षक के संकेत के रूप में किया जाता है। यह अनुयायियों को गुरु की शिक्षाओं और निर्देशों का पालन करने की याद दिलाता है और गुरु के अधिकार और ज्ञान का प्रतीक है। डंडा एक व्यावहारिक पैदल चलने में सहायता भी प्रदान करता है, विशेष रूप से आध्यात्मिक पथिकों के लिए जो पैदल ही काफी दूरी तय कर सकते हैं। आध्यात्मिक गुरु की यात्रा के दौरान, छड़ी को संभावित हमलों के साथ-साथ जंगली जानवरों से सुरक्षा के लिए भी नियुक्त किया जा सकता है।

इन पड़ावों पर रुकेगी छड़ी
महंत यतेंद्र गिरी ने बताया कि ऐतिहासिक श्री दशनामी अखाड़ा चम्बा की पवित्र छड़ी 4 सितम्बर शाम साढे़ 4 बजे मणिमहेश के लिए रवाना होगी। अगले 7 पड़ावों में रूककर छड़ी 11 सितम्बर को डलझील पहुंचेगी। दशनाम अखाड़ा से शुरू होने के बाद यात्रा लक्ष्मीनारायाण मंदिर पहुंचेगी। इसके बाद पहला पड़ाव श्री राधा-कृष्ण मंदिर जुलाहकड़ी में होगा। दूसरे दिन 5 सितम्बर को जुलाहकड़ी मंदिर से प्रस्थान राख के लिए प्रातः 10 बजे राख के लिए रवाना होगी। शुक्रवार 6 सितम्बर से राख से दुर्गेठी के लिए प्रातः 10 बजे प्रस्थान करेगी। शनिवार 7 जून को दुर्गेठी से भरमौर व 8 जून को भरमौर से प्रस्थान हड़सर के लिए प्रातः 10 बजे रवाना होगी। 9 सितम्बर सोमवार को हड़सर से धनछो के लिए प्रातः 10 बजे रवाना होगी। जिसके बाद 10 सितम्बर मंगलवार को धनछो से प्रस्थान पवित्र डल के लिए प्रातः 8 बजे रवाना हाेगी। 11 जून बुधवार को पवित्र डल में स्नान करेगी।

अमरनाथ व केदारनाथ की तर्ज पर निकलती है छड़ी
महंत यतेंद्र गिरी ने बताया कि पवित्र अमरनाथ व केदारनाथ यात्रा की तर्ज पर मणिमहेश के लिए छड़ी यात्रा निकाली जाती है। पिछले कुछ वर्षों में प्रशासन द्वारा अखाड़े की अनदेखी भी की गई। छड़ी यात्रा को लेकर किसी तरह की बैठकें नहीं की गईं। हालांकि इस बार एसडीएम की अध्यक्षता में बैठक आयोजित की गई और डीसी से भी छड़ी यात्रा को लेकर चर्चा की गई। साथ ही उन्हें छड़ी यात्रा की रवानगी के उपलक्ष्य पर आमंत्रित किया गया है।

संतों को नहीं मिलता उचित स्थान
महंत गिरी बताते हैं कि पहले छड़ी यात्रा में 50 से 60 नामी साधु संत सम्मिलित होते थे, लेकिन पिछले कुछ वर्षों में उनकी संख्या में भी कमी आई है। यात्रा के दौरान संतों के लिए उचित स्थान उपलब्ध नहीं करवाया जाता। स्थानीय लोगों द्वारा धमकाया जाता है। इसके चलते महात्मा रूष्ट हैं। इस बार भी 20 से 30 साधु संतों के शामिल होने की संभावना है।

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