बाढ़ में पुल बहा, संपर्क कटा... लेकिन नहीं टूटा मलाणा के ग्रामीणों का हौसला, 7 दिन में खुद ही बना डाला नया पुल

Edited By Jyoti M, Updated: 07 Aug, 2025 04:23 PM

bridge broken in flood new bridge built in 7 days

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित, अपने प्राचीन नियमों और संस्कृति के लिए मशहूर मलाणा गांव ने हाल ही में आई प्राकृतिक आपदा के बाद अपनी हिम्मत और आत्मनिर्भरता से पूरे प्रदेश को एक नई प्रेरणा दी है। 1 अगस्त की रात को भारी बारिश और अचानक आई बाढ़...

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में स्थित, अपने प्राचीन नियमों और संस्कृति के लिए मशहूर मलाणा गांव ने हाल ही में आई प्राकृतिक आपदा के बाद अपनी हिम्मत और आत्मनिर्भरता से पूरे प्रदेश को एक नई प्रेरणा दी है। 1 अगस्त की रात को भारी बारिश और अचानक आई बाढ़ ने मलाणा नदी में भारी तबाही मचाई। इस बाढ़ में गांव को बाहरी दुनिया से जोड़ने वाला एकमात्र पैदल पुल बह गया, जिससे मलाणा का संपर्क पूरी तरह कट गया।

इस आपदा से गांव में काफी नुकसान हुआ। नदी के तेज बहाव में एक महिला, 10-15 मवेशी, एक कार, जेसीबी और एक ट्रक भी बह गए। मुश्किल की इस घड़ी में भी गांव के लोग टूटे नहीं। सरकारी सहायता या किसी बचाव दल का इंतज़ार करने के बजाय, उन्होंने खुद ही बचाव कार्य शुरू कर दिया। ग्रामीणों ने सामूहिक रूप से मिलकर लापता महिला का शव ढूंढ़ निकाला। यह उनकी बहादुरी और मुश्किल हालात में भी हार न मानने वाले जज्बे को दर्शाता है।

आपदा की वजह और ग्रामीणों का आरोप

स्थानीय लोगों का मानना है कि इस भयंकर बाढ़ का कारण नदी के ऊपरी हिस्से में चल रही जलविद्युत परियोजना का निर्माण कार्य है। उनका आरोप है कि निर्माण कंपनी ने पर्यावरण नियमों को ताक पर रखकर बड़े पैमाने पर पेड़ों की कटाई की, जिससे मिट्टी कमजोर हो गई। पेड़ों की कमी से मिट्टी पानी को रोक नहीं पाई, और बारिश का पानी सीधे नदी में जाकर बाढ़ का कारण बना। मलाणा गांव के पास बन रही 109 मेगावाट की रन-ऑफ-द-रिवर मलाणा जलविद्युत परियोजना को भी इस बाढ़ से भारी नुकसान पहुंचा है, और उसकी मशीनरी भी नदी में बह गई है।

सरकारी मदद के बजाय खुद बनाया पुल

आपदा के बाद, मलाणा के लोगों ने किसी सरकारी मदद का इंतज़ार नहीं किया। उन्होंने अपनी पारंपरिक सामूहिक श्रम व्यवस्था को फिर से जीवित किया। सभी गांववासियों ने मिलकर पारंपरिक तरीकों से लकड़ी और रस्सियों की मदद से एक अस्थाई पुल का निर्माण कर डाला। इस अद्भुत प्रयास से एक बार फिर से मलाणा का संपर्क बाहरी दुनिया से जुड़ गया।

गांव के लोग अपने देवता जमलू ऋषि के सिद्धांतों पर चलते हैं, और उनकी यही एकता और आत्मनिर्भरता हर संकट में उन्हें ताकत देती है। यह पहली बार नहीं है जब मलाणा के लोगों ने ऐसा साहस दिखाया है। पिछले साल भी जब इसी पुल को नुकसान हुआ था, तब भी उन्होंने खुद ही मिलकर नया पुल बना लिया था।

मलाणा की अनूठी संस्कृति और पहचान

मलाणा गांव, जिसे दुनिया के सबसे पुराने लोकतांत्रिक गांवों में से एक माना जाता है, अपने अलग कानून और परंपराओं के लिए प्रसिद्ध है। यहां का शासन देवता जमलू ऋषि की आज्ञा से चलता है। गांव के लोगों का मानना है कि वे सिकंदर के सैनिकों के वंशज हैं जो भारत में बस गए थे। मलाणा की एक और खास बात यह है कि यहां बाहरी लोगों को किसी भी चीज़ को छूने की अनुमति नहीं है।

इस आपदा में मलाणा के लोगों ने जिस तरह की एकजुटता, बहादुरी और आत्मनिर्भरता दिखाई है, उसकी सोशल मीडिया पर भी खूब प्रशंसा हो रही है। कई लोगों ने इसे सच्चे 'आत्मनिर्भर भारत' का उदाहरण बताया है। गांव के पंचायत प्रतिनिधियों ने सरकार से अपील की है कि जलविद्युत परियोजनाओं के निर्माण में पर्यावरणीय सुरक्षा को सर्वोच्च प्राथमिकता दी जाए, ताकि भविष्य में ऐसे बड़े हादसे न हों।

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