Edited By Kuldeep, Updated: 11 Aug, 2025 11:27 PM

मंडी-कुल्लू फोरलेन पर झलोगी (शालानाल) टनल के पास स्थित टनीपरी गांव में पिछले 6 दिनों से जारी भूस्खलन ने ग्रामीणों का जीवन मुश्किल कर दिया है।
टकोली (वीना): मंडी-कुल्लू फोरलेन पर झलोगी (शालानाल) टनल के पास स्थित टनीपरी गांव में पिछले 6 दिनों से जारी भूस्खलन ने ग्रामीणों का जीवन मुश्किल कर दिया है। फोरलेन निर्माण में सही तरीके से कटिंग न होने से गांव के 9 मकान खतरे की जद में आ गए हैं, जिससे करीब 30 ग्रामीण प्रभावित हुए हैं। ग्रामीणों मोहर सिंह, पूर्ण चंद, मिंटू राम, दीवान चंद, तुला राम, लाल सिंह, रूप चंद, चरण दास व हरि सिंह ने बताया कि फोरलेन बनाने वाली कंपनी की गलत कटिंग के कारण उनके गांव पर खतरा मंडरा रहा है। भूस्खलन पिछले 6 दिनों से जारी था, लेकिन रविवार और सोमवार को इसकी तीव्रता काफी बढ़ गई, जिससे अब सभी घर गिरने की कगार पर हैं। अब मजबूरी में उन्हें घर खाली करने पड़े हैं।
ग्रामीणों ने लगाए गंभीर आरोप
ग्रामीणों ने आरोप लगाया कि फोरलेन निर्माण के दौरान पहाड़ी की कटिंग करते समय मिट्टी में रॉक बोल्ट तो डाले गए, लेकिन उनमें ग्राऊटिंग नहीं की गई, जिसके कारण भूस्खलन हो रहा है। उन्होंने इस बात पर भी रोष व्यक्त किया कि एनएचएआई का कोई भी अधिकारी या कोई जनप्रतिनिधि अब तक मौके पर नहीं पहुंचा है। ग्रामीणों ने दर्द बयां करते हुए कहा कि चुनावों के दौरान नेता घर-घर वोट मांगने आते हैं, लेकिन दुख की इस घड़ी में कोई भी उनकी सुध लेने नहीं पहुंचा है।
प्रशासन ने की वैकल्पिक व्यवस्था, ग्रामीण मांग रहे सुरक्षित भूमि
भूस्खलन की सूचना मिलने पर एसडीएम बालीचौकी और तहसीलदार औट ने मौके पर पहुंचकर स्थिति का जायजा लिया। प्रशासन ने फिलहाल ग्रामीणों के लिए थलौट में विद्युत विभाग के खाली पड़े शैड में रहने की वैकल्पिक व्यवस्था की है। हालांकि, प्रभावित ग्रामीणों ने सरकार और प्रशासन से मांग की है कि उन्हें किसी दूसरे सुरक्षित स्थान पर जल्द से जल्द घर बनाने के लिए भूमि उपलब्ध कराई जाए, ताकि वे अपने परिवारों के साथ सुरक्षित रह सकें।
रविवार को 3 घंटे बंद रहा फोरलेन
गौरतलब है कि इस स्थान पर भूस्खलन लगातार जारी है और रविवार शाम 6 बजे यहां भारी मात्रा में भूस्खलन हुआ था, जिससे मंडी-कुल्लू फोरलेन लगभग 3 घंटे तक बंद रहने के बाद बहाल किया जा सका। यह घटना एक बार फिर फोरलेन निर्माण में बरती जा रही कथित लापरवाही को उजागर करती है और प्रभावितों के पुनर्वास का सवाल खड़ा करती है।