उलटफेर के कारण राजनीति के चाणक्य बने सुखराम

Edited By Ekta, Updated: 28 Apr, 2019 11:15 AM

sukhram becomes chanakya of politics due to reversal

कांग्रेस नेता सुखराम देश की राजनीति के सबसे उम्रदराज नेता हैं और उनके सियासी दावपेंच पिछले 50 वर्षों से हिमाचल प्रदेश में कई बार बड़े उलटफेर कर चुके हैं। 1998 के बाद ही भाजपा ने इन्हें राजनीति का चाणक्य कहना शुरू किया था, जब सरकार बनाने के लिए भाजपा...

मंडी (ब्यूरो): कांग्रेस नेता सुखराम देश की राजनीति के सबसे उम्रदराज नेता हैं और उनके सियासी दावपेंच पिछले 50 वर्षों से हिमाचल प्रदेश में कई बार बड़े उलटफेर कर चुके हैं। 1998 के बाद ही भाजपा ने इन्हें राजनीति का चाणक्य कहना शुरू किया था, जब सरकार बनाने के लिए भाजपा और कांग्रेस को स्पष्ट बहुमत नहीं मिल पाया था। दोनों दलों को 68 में से 31-31 सीटें हासिल हुई थीं और सुखराम की बनाई अपनी पार्टी को तब 5 सीटें मिलीं और एक आजाद जीतकर आया था। सरकार बनाने के लिए प्रेम कुमार धूमल से जा मिल कर प्रदेश में भाजपा और हिमाचल विकास कांग्रेस गठबंधन की सरकार बना डाली, जो पूरे 5 वर्ष चली। 

सुखराम ने 2 बार जहां भाजपा को सत्ता दिलाने में योगदान दिया तो वहीं अपने राजनीतिक विरोधियों को भी सत्ता में रहते आइना दिखाया है। हिमाचल में 6 बार सूबे के मुख्यमंत्री रहे वीरभद्र सिंह से सुखराम का छत्तीस का आंकड़ा भी किसी से छुपा नहीं है और यह भी कभी स्थायी नहीं रहा। यह भी सच है कि दोनों दिग्गजों के बीच सियासी टकराव का फायदा कांग्रेस पार्टी को भी होता रहा है। 2017 में कांग्रेस की सत्ता में वापसी की संभावनाएं शून्य देख सुखराम ने अपनी उसी चाणक्य नीति से भाजपा में बेटे को शामिल करवाकर उसे मंत्री भी बना दिया और फिर जब पोते का भविष्य भाजपा में सुरक्षित नहीं दिखा तो कांग्रेस में वापसी कर ली और वीरभद्र से छत्तीस का आंकड़ा होने के बावजूद टिकट लेकर लौटे और उन्हें हाईकमान से दबाव डालकर अपने साथ कर लिया।

इस प्रकार कई मौकों पर उनकी रणनीति कामयाब रही है। सुखराम का जन्म मंडी के कोटली में 27 जुलाई, 1927 को हुआ। वे 10 भाई-बहन थे। 1953 में सुखराम ने दिल्ली से वकालत की पढ़ाई पूरी की और 1962 में टैरिटोरियल कौंसिल के सदस्य चुने गए और 1984 में लोकसभा सदस्य पहली बार चुने गए। उन्होंने नगर परिषद मंडी में भी नौकरी की। 1984 में ही जूनियर मंत्री और खाद्य, रक्षा व प्लानिंग और 1993 में टैलीकॉम मंत्री बने। आखिरी चुनाव उन्होंने 1998 में विधानसभा का लड़ा और 22 हजार मतों से जीते।

जब वीरभद्र ने बाजी पलट दी थी

धर्मपुर से सुखराम के सहयोगी नानक चंद का कहना है कि 1993 में सुखराम मुख्यमंत्री पद के प्रबल दावेदार थे। उनके साथ केंद्रीय नेतृत्व भी था मगर तब वीरभद्र सिंह ने बाजी पलट दी थी। पंडोह निवासी इनके कट्टर समर्थक प्रताप का कहना है कि 1996 में सुखराम को सी.बी.आई. की छापेमारी के बाद कांग्रेस से बाहर होना पड़ा।

पुत्र अनिल ने बताया राज

सुखराम के पुत्र अनिल शर्मा कहते हैं कि एक वक्त ऐसा भी था कि मेरी इच्छा राजनीति की नहीं थी और मैं छोटी आयु में 1993 में विधायक बना और सरकार ने मुझे युवा सेवाएं, खेल एवं वन राज्य मंत्री बनाया तो धीरे-धीरे मेरी रुचि इस ओर बढ़ती गई और पिता जी हमारे आदर्श रहे। उन्होंने कब क्या फैसले लेने होते हैं, ये हम उन पर छोड़ देते हैं, क्योंकि उन्हें लंबा अनुभव है।

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