Edited By Kuldeep, Updated: 05 Aug, 2024 12:27 PM
आधुनिकता की होड़ में गांवों को शहरों का मूर्त रूप देने के लिए की गई पहाड़ों से छेड़छाड़ और मानसून ट्रफ के साथ नमी की अधिकता के चलते यह जल प्रलय हुआ है।
शिमला (संतोष): आधुनिकता की होड़ में गांवों को शहरों का मूर्त रूप देने के लिए की गई पहाड़ों से छेड़छाड़ और मानसून ट्रफ के साथ नमी की अधिकता के चलते यह जल प्रलय हुआ है। भू-वैज्ञानिकों व मौसम विभाग के अधिकारियों के अनुसार यह ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है, जिसने अब त्रासदी का रूप धारण कर लिया है। बीते वर्ष से लेकर हिमाचल में जलप्रलय और आपदा की ऐसी स्थिति उत्पन्न हुई है कि जान-माल की भारी क्षति हो चुकी है। राज्य भू-वैज्ञानी सुरेश भारद्वाज ने कहा कि आधुनिकता की दौड़ में गांवों का शहरीकरण करने और प्रकृति के साथ छेड़छाड़ तथा पहाड़ों के साथ की जा रही जोर-जबरदस्ती इसके कारणों में से एक है। उन्होंने कहा कि जनसंख्या बढ़ने के साथ-साथ अब लोगों ने पहाड़ों की ओर रुख कर दिया है और यहां पर सड़कों आदि का जाल बिछाया जा रहा है। उनके अनुसार विकास जरूरी है, लेकिन विकास के रूप में इस प्रकार की त्रासदी न हो, इसके लिए पहले से पुख्ता प्रबंध होने जरूरी हैं।
शहरीकरण, औद्योगीकरण और देह आबादी बढ़ जाने के कारण प्रकृति के साथ हो रही छेड़छाड़ इस प्रकार की प्राकृतिक त्रासदी के लिए जिम्मेदार है। मौसम विज्ञान केंद्र शिमला के निदेशक डा. कुलदीप श्रीवास्तव ने कहा कि पश्चिमी विक्षोभ और मानसून ट्रफ सहित कई कारण मानसून लाने के लिए कारक हैं और मानसून बंगाल की खाड़ी से बनता है। अचानक से मानसून ट्रफ पंजाब के फिरोजपुर से होता हुआ आया, जिसका असर हिमाचल व पंजाब सहित कई राज्यों पर पड़ा। मानसून ट्रफ के सक्रिय होने के कारण इसके साथ भारी संख्या में नमी भी आई और नमी होने के कारण बादल फटने जैसी घटनाएं सामने आई हैं। उन्होंने कहा कि इसका असर चम्बा, कांगड़ा, कुल्लू व शिमला आदि जिलों में अधिक पड़ा है, क्योंकि मानसून ट्रफ के साथ नमी (मॉइश्चराइजर) की मात्रा अधिक थी।
बादल फटने से हालात हो रहे खराब
पहाड़ों पर लगातार हो रही बारिश और फट रहे बादलों से हालात खराब हो गए हैं। उत्तराखंड से लेकर जम्मू-कश्मीर और पूर्वोत्तर के पहाड़ी राज्यों में बादलों के फटने का जो ट्रैंड सामने आया है, वह बेहद चौंकाने वाला है। मौसम वैज्ञानिकों के मुताबिक मानसून के वक्त करीब पांच से छह हजार फीट की ऊंचाई वाले पहाड़ी क्षेत्रों में बादलों के फटने की घटनाएं होती थी, लेकिन बीते कुछ वर्षों में लगातार हो रही बारिश और बादल फटने में यह ऊंचाई पांच और छह हजार फीट की ऊंचाई से खिसक कर तीन से चार हजार फीट पर आ गई है, जो फिलहाल चिंता का कारण बनी हुई है। वैज्ञानिकों का मानना है कि नमी और हवाओं में दबाव की भिन्नता के चलते बादल फटने की ऊंचाई कम हो गई है।