Edited By Kuldeep, Updated: 27 May, 2025 10:06 PM

प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राजस्व विभाग के जिला कैडर पदों को राज्य कैडर घोषित करने की अधिसूचना के खिलाफ दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया है।
शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा राजस्व विभाग के जिला कैडर पदों को राज्य कैडर घोषित करने की अधिसूचना के खिलाफ दायर रिट याचिका को खारिज कर दिया है। न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सुशील कुकरेजा की खंडपीठ ने याचिका को खारिज करते हुए कहा कि अदालत को याचिका में कोई योग्यता नहीं मिली, इसलिए इसे खारिज किया जाता है। कोर्ट ने कहा कि न्यायालय को सरकार की शक्तियों में दखल देते समय न्यायिक संयम बरतना चाहिए और कार्यकारी या विधायी क्षेत्राधिकार, पदों के सृजन के आदेश, इन पदों पर नियुक्ति, नियमितीकरण, वेतनमान का निर्धारण, सेवा में निरंतरता, पदोन्नति, पदोन्नति के अवसरों में कटौती, विभिन्न योग्यताएं निर्धारित करना आदि सभी कार्यकारी या विधायी कार्यों का अतिक्रमण नहीं करना चाहिए। न्यायाधीशों का दुर्लभ और असाधारण मामलों को छोड़कर इस क्षेत्र में कदम रखना अत्यधिक अनुचित है।
प्रार्थियों ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा 3 अक्तूबर 2023 को जारी अधिसूचना, जिसके अनुसार राजस्व विभाग में अधीक्षक ग्रेड-II (ग्रुप-बी), वरिष्ठ सहायक (ग्रुप-सी), स्टैनो-टाइपिस्ट/जूनियर स्केल स्टेनोग्राफर/सीनियर के पद, स्केल स्टेनोग्राफर (ग्रुप सी)/पर्सनल असिस्टैंट (ग्रुप-बी), क्लर्क/जे.ओ.ए. आई.टी. (ग्रुप-सी) को राज्य कैडर घोषित किया गया है, को असंवैधानिक, अवैध, मनमाना और प्रतिवादियों की विधायी क्षमता से परे घोषित करने की मांग करते हुए इसे रद्द करने की गुहार लगाई थी। प्रार्थियों ने वैकल्पिक रूप से, सरकार द्वारा जारी अधिसूचना को उनके मामले में प्रभावी नहीं बनाने के आदेश की मांग भी की थी।
प्रार्थियों का कहना था कि याचिकाकर्त्ता सरकार के राजस्व विभाग के कार्यालयों में वरिष्ठ सहायक (ग्रुप-सी) के रूप में कार्यरत हैं और वर्तमान में जिला कलैक्टरों, उपमंडल कलैक्टरों और सहायक कलैक्टरों आदि के कार्यालयों में तैनात हैं। हालांकि, प्रतिवादी सरकार ने 3 अक्तूबर 2023 को अधिसूचना जारी की है, जिसके तहत उपरोक्त जिला कैडर के पदों को भूमि निदेशक के कैडर नियंत्रण प्राधिकरण के तहत राज्य कैडर के पद घोषित किया गया है। कोर्ट ने कहा कि याचिकाकर्त्ताओं ने 2 मुख्य आरोप लगाए हैं। एक यह कि विवादित अधिसूचना याचिकाकर्त्ताओं के पदोन्नति के अधिकार को कम करती है और दूसरा प्रतिवादी सरकार के पास विवादित अधिसूचना जारी करने का कोई अधिकार नहीं है।
कोर्ट ने पहले मुद्दे पर कहा कि पदोन्नति पाना किसी कर्मचारी का मौलिक अधिकार नहीं है। हालांकि पदोन्नति के लिए विचार किया जाना एक मौलिक अधिकार है। फिर भी पदोन्नति पर केवल कर्मचारियों की सेवा को नियंत्रित करने वाले नियमों के संदर्भ में विचार किया जा सकता है। दूसरे मुद्दे पर कोर्ट ने कहा कि प्रार्थियों ने ऐसा कुछ भी स्पष्ट नहीं किया है जो यह साबित करे कि राज्य सरकार विवादित अधिसूचना जारी करने में सक्षम नहीं है। ऐसे में यह माना जा सकता है कि राज्य सरकार के पास किसी सेवा से संबंधित नियमों को बदलने और योग्यता, पात्रता मानदंड और पदोन्नति के अवसरों सहित सेवा की अन्य शर्तों को जोड़ने/घटाने, बदलने या संशोधित करने और समय-समय पर प्रशासनिक आवश्यकताओं के अनुसार बदलने की शक्ति है।