Edited By Vijay, Updated: 14 Dec, 2025 09:28 PM

छत्रधारी चालदा महासू महाराज की ऐतिहासिक यात्रा का उत्तराखंड-हिमाचल प्रदेश की अंतर्राज्यीय सीमा मीनस से हिमाचल में प्रवेश के बाद महाराज के साथ हजारों श्रद्धालुओं का विशाल काफिला जैसे ही देवभूमि में दाखिल हुआ ताे पूरा सीमा क्षेत्र धार्मिक उल्लास और...
पांवटा साहिब (कपिल शर्मा): छत्रधारी चालदा महासू महाराज की ऐतिहासिक यात्रा का उत्तराखंड-हिमाचल प्रदेश की अंतर्राज्यीय सीमा मीनस से हिमाचल में प्रवेश के बाद महाराज के साथ हजारों श्रद्धालुओं का विशाल काफिला जैसे ही देवभूमि में दाखिल हुआ ताे पूरा सीमा क्षेत्र धार्मिक उल्लास और जयकारों से गूंज उठा। महाराज शनिवार-रविवार देर रात लगभग 3 बजे द्राबिल पहुंचे। यहां पहुंचने पर स्थानीय मंदिर में पूजे जाने वाले देवता और चालदा महासू महाराज के बड़े भ्राता भोठा महासू महाराज की पालकी ने पारंपरिक विधि-विधान के साथ उनका स्वागत किया। इस ऐतिहासिक पल के साक्षी बनने के लिए क्षेत्र सहित उत्तराखंड व हिमाचल के विभिन्न भागों से पहुंचे लगभग 40 हजार श्रद्धालु मौजूद रहे।
शनिवार शाम करीब 5 बजे से श्रद्धालुओं के लिए विशाल भंडारे का आयोजन किया गया। श्रद्धालुओं की संख्या अत्यधिक होने के कारण देर रात तक भोजन स्थल पर जगह नहीं बची। इसके बाद आयोजन समिति ने राष्ट्रीय राजमार्ग एनएच-707 पर श्रद्धालुओं को भोजन परोसने की व्यवस्था की। सेवा और समर्पण की यह मिसाल पूरी रात जारी रही। रात्रि भर छत्रधारी चालदा महासू महाराज का भव्य जगराता चलता रहा, जिसमें देव परंपराओं, महासू पूजा और भजन-कीर्तन ने पूरे वातावरण को भक्तिमय बना दिया। रविवार तड़के से ही श्रद्धालुओं का सैलाब महाराज के दर्शन के लिए उमड़ पड़ा और हजारों श्रद्धालुओं ने दर्शन कर आशीर्वाद प्राप्त किया।
रविवार दोपहर लगभग 2 बजे छत्रधारी चालदा महासू महाराज द्राबिल से पश्मी गांव में तैयार किए गए भव्य मंदिर के लिए रवाना हुए। महाराज का काफिला रात को शिलाई बाजार पहुंचा, जहां स्वागत का दृश्य अत्यंत भव्य और ऐतिहासिक रहा। शिलाई बाजार में महाराज के स्वागत के लिए विभिन्न क्षेत्रों शिमला, सोलन व उत्तराखंड से श्रद्धालु बड़ी संख्या में पहुंचे। बाजार क्षेत्र में जगह कम पड़ गई और श्रद्धालु दर्शन पाने के लिए दुकानों की छतों तक पर चढ़ गए। ढोल-नगाड़ों, पारंपरिक वाद्ययंत्रों और जयघोष के साथ पूरे शिलाई क्षेत्र में भक्ति और उत्सव का माहौल बना रहा। छत्रधारी चालदा महासू महाराज की यह यात्रा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक बनी, बल्कि क्षेत्र की समृद्ध देव संस्कृति, परंपराओं और सामाजिक एकता को भी उजागर करती नजर आई। श्रद्धालुओं के अनुसार यह यात्रा आने वाली पीढ़ियों के लिए ऐतिहासिक स्मृति के रूप में सदैव याद रखी जाएगी।