Edited By Jyoti M, Updated: 19 Dec, 2025 10:34 AM
हिमाचल प्रदेश पुलिस महकमे में अब 'कैमरा कल्चर' पर पूरी तरह लगाम कस दी गई है। अपनी कार्यशैली का बखान करने वाले पुलिस अफसरों को अब खामोश रहना होगा। प्रदेश पुलिस मुख्यालय ने एक कड़ा फरमान जारी करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि वर्दी पहनकर मीडिया के सामने...
हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश पुलिस महकमे में अब 'कैमरा कल्चर' पर पूरी तरह लगाम कस दी गई है। अपनी कार्यशैली का बखान करने वाले पुलिस अफसरों को अब खामोश रहना होगा। प्रदेश पुलिस मुख्यालय ने एक कड़ा फरमान जारी करते हुए स्पष्ट कर दिया है कि वर्दी पहनकर मीडिया के सामने चमकने का शौक अब भारी पड़ सकता है।
नए नियमों का विस्तृत विवरण
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हिमाचल प्रदेश पुलिस के महानिदेशक (DGP) ने पुलिसिंग में अनुशासन का नया अध्याय शुरू करते हुए निचले स्तर के अधिकारियों की मीडिया बयानबाजी पर पूर्ण प्रतिबंध लगा दिया है। अब थाना स्तर से लेकर सब-डिवीजन तक के अधिकारी अपनी मर्जी से कोई भी प्रेस ब्रीफिंग या इंटरव्यू नहीं दे पाएंगे।
1. किसे है बोलने की अनुमति?
नए आदेशों के तहत सूचनाओं के आदान-प्रदान के लिए एक स्पष्ट पदानुक्रम (Hierarchy) तय की गई है:
अब केवल जिला पुलिस अधीक्षक (SP) और रेंज डीआईजी (DIG) ही आधिकारिक बयान जारी करने के लिए अधिकृत होंगे।
इन उच्चाधिकारियों को भी मीडिया से बात करने से पहले पुलिस मुख्यालय से औपचारिक अनुमति लेनी अनिवार्य होगी।
एसएचओ (SHO) और एसडीपीओ (SDPO) जैसे अधिकारियों पर पूरी तरह से मीडिया से दूरी बनाए रखने के निर्देश हैं।
2. पाबंदी के दायरे में क्या-क्या शामिल है?
यह आदेश केवल टीवी कैमरों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसके दायरे में निम्नलिखित माध्यम भी शामिल हैं:
सोशल मीडिया: फेसबुक, एक्स (ट्विटर) या इंस्टाग्राम पर पुलिसिया कार्रवाई का विवरण देना।
प्रिंट मीडिया: अखबारों को सीधे बयान या केस की अपडेट देना।
इंटरव्यू: जॉइनिंग के बाद अपनी प्राथमिकताओं पर चर्चा करना या किसी भी जांच प्रक्रिया पर टिप्पणी करना।
3. नियमों का हवाला और दंडात्मक कार्रवाई
डीजीपी कार्यालय ने स्पष्ट किया है कि यह कदम कोई नया नियम नहीं बल्कि मौजूदा कानूनों का कड़ाई से पालन है। इसमें केंद्रीय सिविल सेवा (आचरण) नियम 1964, हिमाचल पुलिस अधिनियम 2007 और पंजाब पुलिस रूल्स का संदर्भ दिया गया है।
चेतावनी: यदि कोई भी कर्मचारी या अधिकारी इन निर्देशों की अवहेलना करता पाया गया, तो उसे अनुशासनहीनता माना जाएगा और उसके विरुद्ध विभागीय जांच व सख्त दंडात्मक कार्रवाई की जाएगी।
4. आखिर क्यों उठाया गया यह कदम?
पुलिस प्रशासन का मानना है कि अलग-अलग स्तरों से आने वाली जानकारियों के कारण कई बार जांच प्रभावित होती है और जनता के बीच विरोधाभासी संदेश जाता है। सूचनाओं के केंद्रीकरण (Centralization) से:
जांच की गोपनीयता बनी रहेगी।
भ्रामक खबरों पर लगाम लगेगी।
पुलिस विभाग की एक आधिकारिक और जिम्मेदार छवि पेश होगी।