नहीं देखी होगी ऐसी देव खेल, गुरों ने नुकीले हथियारों से शरीर पर किए कई वार

Edited By Vijay, Updated: 28 Feb, 2020 10:49 AM

dev khel in mandi

ऐतिहासिक सेरीमंच पर वीरवार को देव खेल की सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया गया, जिसे देख लोग दंग रह गए। जब गुरों ने नुकीले देव हथियारों से अपने शरीर पर कई वार किए तो सब जयकारे लगाने लगे। मंडी में सदियों से मनाए जाने वाले शिवरात्रि महोत्सव में देव...

मंडी (पुरुषोत्तम): ऐतिहासिक सेरीमंच पर वीरवार को देव खेल की सदियों पुरानी परंपरा का निर्वहन किया गया, जिसे देख लोग दंग रह गए। जब गुरों ने नुकीले देव हथियारों से अपने शरीर पर कई वार किए तो सब जयकारे लगाने लगे। मंडी में सदियों से मनाए जाने वाले शिवरात्रि महोत्सव में देव खेल का आयोजन होता था लेकिन रजवाड़ाशाही के समाप्त होने के बाद जब शिवरात्रि मेले की बागडोर प्रशासन के हाथों में आई तो देव खेल की परंपरा भी बंद हो गई थी। बीते वर्ष जिला प्रशासन और देव समाज ने मिलकर इस परंपरा को शुरू करने का निर्णय लिया था।
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ऐतिहासिक सेरीमंच पर किया देव खेल का आयोजन
परंपरा के शुरू करने के बाद हालांकि कुछ लोगों ने इसका विरोध भी किया लेकिन देव समाज का प्रतिनिधित्व करने वाले लोगों ने देव खेल के इतिहास को सामने रख इस परंपरा को यथावत जारी रखने का निर्णय लिया। वीरवार को मंडी शहर के ऐतिहासिक सेरीमंच पर इस देव खेल का आयोजन किया गया, जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में लोगों की भीड़ सेरीमंच पर पहुंची। इस मौके पर अतिरिक्त जिला दंडाधिकारी श्रवण मांटा व सर्व देवता सेवा समिति के अध्यक्ष पंडित शिवपाल शर्मा समेत अन्य लोग मौजूद रहे।
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हुरंग नारायण के आह्वान पर होती है देव खेल
देव खेल में चौहारघाटी के 9 देवी-देवताओं हुरंग नारायण, देव पशाकोट, घड़ौनी नारायण, देव तरैलू गैहरी, देव भथेरी गैहरी, दरूण गैहरी, गलू का गैहरी, पेखरा गैहरी व देव भद्रकाली आरंगसमेत पुजारियों व बजंतरियों ने भाग लिया। देव खेल हिमाचल प्रदेश की प्राचीन देव संस्कृति का अहम हिस्सा है और देव खेल का अधिक प्रचलन मंडी जिला की चौहारघाटी में है। यहां देव हुरंग नारायण को आराध्य देव माना जाता है और यह देव खेल इनके आह्वान पर ही होती है।
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रियासतकालीन देव परंपरा का किया निर्वहन
देव खेल में देव हुरंग नारायण के मुख्य पुजारी राम लाल ने पूजा-अर्चना करने के बाद देवता की शक्तियों का आह्वान कर रियासतकालीन इस देव खेल परंपरा का प्रदर्शन किया। पहले देवता की विधिवत पूजा हुई और उसके बाद दैवीय शक्तियों का आह्वान किया। पुजारी ने बताया कि जब यह सारी धार्मिक प्रक्रिया होती है तो उसे उस समय कुछ भी याद नहीं रहता है। यह सब देवता के आदेश से ही संभव होता है। देव खेल से जहां इलाके को सुरक्षा का कवच मिलता है, वहीं मौके पर मौजूद लोग यदि कोई मनोकामना मांगते हैं तो उसकी पूर्ति भी होती है। देव खेल में हालांकि अन्य देवी-देवताओं के पुजारी भी शामिल हुए लेकिन सिर्फ  देव हुरंग नारायण के पुजारी ने ही इस परंपरा का निर्वहन किया।
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देव खेल में पुजारी नहीं कर सकते बात
देव खेल के दौरान किसी भी पुजारी को बात करने की अनुमति नहीं होती, इसलिए सभी अपना मुंह बंद रखते हैं। सेरीमंच पर देव खेल के बाद सभी देवी-देवता राज देवता माधवराय के दरबार में पहुंचे, जहां गुरों ने राज देवता का आशीर्वाद लिया।

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