Edited By Vijay, Updated: 03 Sep, 2025 04:36 PM

भले ही राधाष्टमी पर संचुई गांव के शिवजी के चेलों (गुरों) के मणिमहेश न पहुंच पाने से डल तोड़ने की परंपरा का इस वर्ष निर्वहन नहीं हो पाया हो, लेकिन कार्तिकेय स्वामी कुगती के चेलों ने नारियल प्रवाहित कर डल तोड़ने की रस्म निभाई है।
चम्बा (काकू): भले ही राधाष्टमी पर संचुई गांव के शिवजी के चेलों (गुरों) के मणिमहेश न पहुंच पाने से डल तोड़ने की परंपरा का इस वर्ष निर्वहन नहीं हो पाया हो, लेकिन कार्तिकेय स्वामी कुगती के चेलों ने नारियल प्रवाहित कर डल तोड़ने की रस्म निभाई है। इसका वीडियो अब सोशल मीडिया पर वायरल हो रहा है, जिसमें कुगती के चेले पूरे विधि-विधान से पूजा-अर्चना कर डल तोड़ने की रस्म निभाते दिख रहे हैं। हालांकि इस दौरान बहुत कम संख्या में शिव भक्त डल झील पर मौजूद रहे, लेकिन कार्तिकेय स्वामी के चेलों ने कठिन परिस्थितियों में भी डल झील पहुंचकर परंपरा निभाई।
बताया जा रहा है कि कार्तिकेय स्वामी मंदिर से सिर्फ 6 चेले खराब मौसम में भी कठिन परिस्थितियों में डल झील पहुंच गए थे। उन्हें ही यहां जाने की अनुमति मिली थी। कार्तिकेय स्वामी जिन्हें केलंग बजीर भी कहा जाता है महादेव के ज्येष्ठ पुत्र हैं और इस संसार के पालनहार माने जाते हैं। हर वर्ष कार्तिकेय स्वामी के चेलों के आदेश के बाद ही डल तोड़ने की रस्म निभाई जाती है।
बता दें कि राधाष्टमी पर पुलिस की सुरक्षा के बीच गुर डल तोड़ने के लिए मणिमहेश रवाना हो गए थे, लेकिन हड़सर से आगे रास्ते क्षतिग्रस्त होने के चलते उन्हें वापस लौटना पड़ा। मान्यता है कि राधाष्टमी के दिन संचुई के चेलों द्वारा झील में पूजा-अर्चना के साथ डल तोड़ने की रस्म पूरी किए जाने के बाद ही शाही स्नान का दौर आरंभ होता है।