Edited By Kuldeep, Updated: 20 Aug, 2025 05:52 PM

उत्तर भारत की मणिमहेश यात्रा में कुटिया सिद्ध बाबा चरपट नाथ छड़ी का बहुत महत्व है। यह छड़ी भगवान शिव के भक्त और राजा के गुरु चरपटनाथ से जुड़ी है और चम्बा राज्य के इतिहास और परंपरा का प्रतीक है।
चम्बा (रणवीर): उत्तर भारत की मणिमहेश यात्रा में कुटिया सिद्ध बाबा चरपट नाथ छड़ी का बहुत महत्व है। यह छड़ी भगवान शिव के भक्त और राजा के गुरु चरपटनाथ से जुड़ी है और चम्बा राज्य के इतिहास और परंपरा का प्रतीक है। छड़ी चम्बा के इतिहास, संस्कृति और धार्मिक मान्यताओं का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। चरपट नाथ मंदिर के पुजारी माणिक नाथ बताते हैं कि सदियों से परंपरा रही है कि जब तक छड़ी मणिमहेश नहीं पहुंचती है तब तक राधाष्टमी के पवित्र स्नान का लाभ नहीं मिलता है। ऐसा कुटिया सिद्ध बाबा चरपट नाथ को भगवान शंकर भोलेनाथ का वरदान प्राप्त था, जिस कारण राधाष्टमी स्नान के पहले श्रद्धालु बाबा चरपट नाथ छड़ी का डल झील में बेसब्री से इंतजार करते हैं।
राजा साहिल वर्मन काल के दौरान सिद्ध बाबा चरपट नाथ ने कैलाश की खोज की थी, जिसके बाद यहां चतुर्भुज पिंडी को पाया था। ऐसे में प्रसन्न होकर भगवान भोलेनाथ ने बाबा चरपट नाथ को वरदान दिया था कि जब तक बाबा की छड़ी मणिमहेश डल झील नहीं पहुंचेगी तब तक शाही स्नान का लाभ नहीं मिलेगा। हर वर्ष राधाष्टमी के स्नान से पूर्व छड़ी गाजे-बाजे के साथ सुसज्जित होकर स्नान से करीब 5 से 6 दिन पूर्व मणिमहेश के लिए रवाना होती है। इस दौरान चम्बा शहर के लोग जो किसी कारणवश मणिमहेश नहीं जा सकते हैं वह छड़ी के दर्शन करके भोलेनाथ से मन्नत मांगते हैं।
सिद्ध बाबा चरपट नाथ भक्तों की आस्था व मुरादों को भगवान भोलेनाथ तक पहुंचाते हैं। ऐतिहासिक चरपट नाथ मंदिर से शुरू होकर मणिमहेश झील तक जाती है। यह यात्रा भगवान शिव और मणिमहेश की आराधना का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है। मणिमहेश यात्रा के दौरान जुलाहकड़ी, भरमौर, लखना माई मंदिर, जोग जातर, हड़सर, धनछो होते हुए भैंरों घाटी (शिव परोल) के विभिन्न पड़ावों पर विश्राम आगे बढ़ती है। वहीं शिव नुआला कार्यक्रम का भी आयोजन छड़ी के द्वारा किया जाता है। इस बार छड़ी के लिए पूरी तैयारी कर ली गई है।