Edited By Kuldeep, Updated: 24 Jan, 2025 08:55 PM
किसान आमतौर पर आलू की फसल का मेड़ व नाली बनाकर उत्पादन करते हैं। इससे पहले खेत को जोतना और आलू की फसल के लिए तैयार करने के लिए एक लंबी प्रक्रिया रहती है, लेकिन अब आलू की खेती खेत में बिना जुताई के की जाएगी।
बडूही (अनिल): किसान आमतौर पर आलू की फसल का मेड़ व नाली बनाकर उत्पादन करते हैं। इससे पहले खेत को जोतना और आलू की फसल के लिए तैयार करने के लिए एक लंबी प्रक्रिया रहती है, लेकिन अब आलू की खेती खेत में बिना जुताई के की जाएगी। इससे जहां खर्च में कटौती आएगी तो वहीं बंपर पैदावार के साथ-साथ इसे सहेजने में भी खासी मदद मिलेगी। चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर के अनुसंधान केन्द्र अकरोट के वैज्ञानिकों ने आलू की खेती और नए शोध करके इसमें आशातीत सफलता पाई है।
गौरतलब है कि इस विधि में शून्य जुताई व धान की पराली की मल्चिंग तकनीक से मिट्टी चढ़ाने से छुटकारे के साथ-साथ खरपतवार नाशी रसायन स्प्रे जैसे कि मेट्रीव्यूजनि या पैराक्वेट जैसे रसायन स्प्रे की बिल्कुल आवश्यकता नहीं रहेगी, क्याेंकि धान की पराली से मल्चिंग के करण खरपतवार नहीं उग पाते। मेड़ व नाली की तकनीक में पानी की अधिक मात्रा की जरूरत पड़ती है। जमीन की सतह से पानी वाष्पीकरण से भी उड़ता है। नई तकनीक शून्य जुताई में जमीन हर वक्त फसल के जीवन काल में धान की पराली से ढकी रहती है। इससे पानी का वाष्पीकरण कम होता है, अत: जमीन में पर्याप्त नमी रहती है। मेड़ व नाली की तकनीक में आलू फसल निकालने के लिए जमीन में खुदाई करनी पड़ती है तथा लेबर व मशीन का प्रयोग ज्यादा करना पड़ता है।
हर दृष्टि से फायदेमंद है यह नई तकनीक
नई तकनीक शून्य जुताई में जमीन की सतह से आलू की फसल इकट्ठी की जाती है। लेबर भी कम, किसी बड़ी मशीन या ट्रैक्टर की भी आवश्यकता नहीं। शून्य जुताई व धान की पराली में आलू उगाने में डीजल नहीं जलाना पड़ता, जमीन को खोदना नहीं पड़ता, न ही खरपतवारों के लिए रसायनों का कोई इस्तेमाल करना पड़ता है। इसलिए हर दृष्टि से यह नई तकनीक फायदेमंद है। इसका जलवायु पर भी कोई असर नहीं है।
पराली की समस्या का होगा निदान
आमतौर पर देखा जाता है कि किसान धान निकालने के बाद पराली जला देते हैं, जोकि भयंकर वायु प्रदूषण करती है। चूंकि इस तकनीक में पराली का इस्तेमाल आलू फसल उत्पादन में किया जाता है तो आम जनमानस को भी प्रदूषण से राहत मिलेगी।
कम लागत में ज्यादा होगी उपज
शून्य जुताई तकनीक से आलू की फसल उगाने में लागत कम लगती है और उपज भी बढ़ती है। यह तकनीक छोटे किसानों की आजीविका में सुधार ला सकती है, क्योंकि आलू की फसल में ट्रैक्टर, आलू बीज प्लांटर व आलू डिगर आदि मशीनों की जरूरत पड़ती है लेकिन शून्य जुताई तकनीक से आलू फसल उत्पादन में न तो किसी हल चलाने की जरूरत पड़ती है और न ही फसल में मिट्टी चढ़ाई जाती है और न आलू निकालने को मिट्टी में खुदाई की जरूरत पड़ती है। इस नई व अद्भुत तकनीक में आलू की फसल जमीन सतह से पराली हटाकर बस फसल को इकट्ठा किया जाता है।
कृषि अनुसंधान केंद्र अकरोट के कृषि वैज्ञानिक डाक्टर सौरभ शर्मा ने कहा कि जब वह ऊना स्थानांतरित होकर आए तो यहां पाया कि लोग बड़े पैमाने पर आलू की खेती कर रहे हैं। ऐसे में किसानों का खर्चा कैसे कम हो और आय कैसे बढ़े, इसके साथ-साथ पर्यावरण और जमीन का स्वास्थ्य ठीक रखने व कीटनाशकों और खरपतवार से बचाव करते हुए जन स्वास्थ्य के लिए भी खेती में क्या तबदीलियां की जाएं जिससे फसल की पैदावार बनी रहे, खर्चा कम हो और लाभ ज्यादा हो इस पर अनुसंधान किया गया। लगातार दूसरे वर्ष इसमें आशातीत परिणाम आए हैं। किसान इस विधि को अपनाकर जहां पर्यावरण जमीन के स्वास्थ्य और जन स्वास्थ्य को ठीक रख सकते हैं, वहीं खेती से कम लागत में ज्यादा लाभ ले सकते हैं।
कुलभूषण धीमान, डिप्टी डायरैक्टर, एग्रीकल्चर ऊना का कहना है कि आलू की पक्की फसल के लिए यह विधि किसी वरदान से कम नहीं है। इस प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के लिए ट्रांसफर ऑफ टैक्नोलॉजी के तहत विभाग द्वारा कृषि वैज्ञानिकों को बजट उपलब्ध करवाया गया। निश्चित रूप से किसान जब इस विधि से खेती से जुड़ेंगे तो कम लागत और अधिक लाभ के साथ पर्यावरण और स्वास्थ्य के लिए भी हैरानी जनक आंकड़े सामने आएंगे।
डाक्टर नवीन कुमार, वाइस चांसलर, चौधरी सरवण कुमार कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर का कहना है कि इस विधि पर विगत 2 वर्षों से कृषि वैज्ञानिक शोध कर रहे हैं, अब यह सफल रही है। इसका लाभ न केवल पूरे नॉर्थ इंडिया बल्कि इंडो गैंगटिक प्लेन में मिल सकता है। पूरे उत्तर भारत में जहां पर धान और आलू की फसल होती है, वहां इसका लाभ लिया जा सकता है। वैज्ञानिक अब इसमें पराली की मात्रा कम या ज्यादा करने बारे शोधन कर रहे हैं। यदि बजट का प्रावधान रहा तो इसके परिणाम बेहद सकारात्मक रूप में सामने आएंगे।
डीसी ऊना जतिन लाल का कहना है कि आलू की पैदावार की जो विधि कृषि वैज्ञानिकों ने कड़ी मेहनत के बाद सामने लाई है, वह अपने आप में अनूठी पहल है। अनुसंधान आगे बढ़ेगा तो किसानों को इसका ज्यादा लाभ मिलेगा। इसके लिए जहां अनुसंधान के लिए बजट जारी किया जा रहा है तो वहीं किसानों के लिए वैज्ञानिकों के साथ विशेष शिविरों का आयोजन भी किया जाएगा।