Edited By Vijay, Updated: 14 Apr, 2019 09:35 PM
देवी-देवताओं की नगरी माने जाने वाले कुल्लू जिला में हालांकि किसी भी देवी-देवताओं के मोहरे धरती को स्पर्श नहीं करते परंतु कुल्लू के मकराहड़ में इसके विपरीत देखने को मिलता है। यहां मां और पुत्र के मिलन की एक अनोखी परंपरा है। यहां मार्कंडेय ऋषि मकराहड़...
कुल्लू (दिलीप): देवी-देवताओं की नगरी माने जाने वाले कुल्लू जिला में हालांकि किसी भी देवी-देवताओं के मोहरे धरती को स्पर्श नहीं करते परंतु कुल्लू के मकराहड़ में इसके विपरीत देखने को मिलता है। यहां मां और पुत्र के मिलन की एक अनोखी परंपरा है। यहां मार्कंडेय ऋषि मकराहड़ धरती को 3 बार चूमते हैं और परंपरानुसार दूध पीने की रस्म को निभाया जाता है।
बैसाखी के दिन महिला को मिला था देवता का मुखौटा
बताया जाता है कि बैसाखी के दिन ही देवता का मुखौटा थरास के राऊली खानदान की महिला को यहां मिला था, उसके बाद से इस परंपरा को शुरू किया गया था और दूध पीने की इस परंपरा की रस्म निभाते बार इसी खानदान के लोग एक लंबा घेरा बनाते हैं। उस घेरे के बीच में देवता का रथ बाल्यकाल की स्थिति में आकर अपने उद्गम स्थल को 3 बार चूमता है। देवता के कारदार जीवन प्रकाश का कहना है कि सैंकड़ों साल पहले बैसाखी के ही दिन खेत से देवता का मोहरा मिला था, जिसके बाद देवता मार्कंडेय ऋषि की यहां स्थापना हुई थी। उन्होंने कहा कि देव मान्यता के अनुसार आज भी खेत से दूध की धार निकलती है।
यह है मान्यता
मान्यता है कि बैसाखी के दौरान देवता के साथ जो भी व्यक्ति संगम स्थल में स्नान करते हैं उनका चरम रोग, भूत-पिशाच और किसी को खिलाया-पिलाया जैसे कष्टों से भी मुक्ति मिलती है। देवता के कारदार कहते हैं कि संगम स्थल में देवता के स्नान के साथ ही नदी का पानी गंगा जल के समान पवित्र हो जाता है। लोग इस जल को अपने घरों में ले जाते हैं। इसी कड़ी में इस बार भी यहां हैरतअंगेज दैवीय चमत्कार देखने को मिला जिसे देखने के लिए हजारों की संख्या में दूर-दूर से श्रद्धालु पहुंचे और देवता का आशीर्वाद प्राप्त किया। बताया जाता है कि देवता जैसे ही स्नान कर अपनी मां से दूध का सेवन करने लगते हैं तो आज भी दूध के सेवन की आवाज सुनाई देती है।