Edited By Jyoti M, Updated: 23 Dec, 2025 03:20 PM

हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों पर जीवन बचाने वाली 108 और 102 एंबुलेंस सेवाओं के पहिये आगामी 25 दिसंबर से थमने वाले हैं। यह किसी तकनीकी खराबी के कारण नहीं, बल्कि उन हाथों की बेबसी के कारण हो रहा है जो दिन-रात दूसरों की जान बचाते हैं। अपनी मांगों की...
हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश की पहाड़ियों पर जीवन बचाने वाली 108 और 102 एंबुलेंस सेवाओं के पहिये आगामी 25 दिसंबर से थमने वाले हैं। यह किसी तकनीकी खराबी के कारण नहीं, बल्कि उन हाथों की बेबसी के कारण हो रहा है जो दिन-रात दूसरों की जान बचाते हैं। अपनी मांगों की अनदेखी और 'दोहरी मार' से त्रस्त कर्मचारियों ने क्रिसमस की रात 8 बजे से लेकर 27 दिसंबर की रात 8 बजे तक, यानी पूरे 48 घंटों के लिए सामूहिक कार्य बहिष्कार का ऐलान किया है।
शोषण और सरकारी उदासीनता के बीच फंसा 'जीवन रक्षक'
यूनियन के नेतृत्वकर्ता सुनील कुमार और सचिव बालक राम सहित अन्य पदाधिकारियों का आरोप है कि वे लंबे समय से कंपनी द्वारा किए जा रहे आर्थिक और मानसिक शोषण के खिलाफ आवाज उठा रहे हैं, लेकिन उनकी सुनने वाला कोई नहीं है। कर्मचारियों की पीड़ा यह है कि जब वे अपनी समस्याओं को लेकर प्रशासन के पास जाते हैं, तो उन्हें यह कहकर टाल दिया जाता है कि वे सरकारी कर्मचारी नहीं बल्कि एक निजी कंपनी के अधीन हैं।
एस्मा (ESMA) की धमकी बनाम जायज मांगें
यूनियन नेताओं—संजीव कुमार, बीरी सिंह, रामपाल और उनके साथियों—ने प्रशासन की कार्यप्रणाली पर कड़े सवाल उठाए हैं।
प्रशासन का दोहरा रवैया: एक तरफ प्रशासन उन्हें अपना कर्मचारी मानने से इनकार करता है, वहीं दूसरी ओर हड़ताल रोकने के लिए उन पर 'एस्मा एक्ट 1972' (अत्यावश्यक सेवा अनुरक्षण कानून) के तहत कार्रवाई की धमकी दी जा रही है।
कंपनी का पक्षपात: कर्मचारियों का दावा है कि सरकारी तंत्र समस्याओं को सुलझाने के बजाय निजी कंपनी के हितों को बचाने में अधिक दिलचस्पी दिखा रहा है।
मजबूरी में लिया गया फैसला: यूनियन ने स्पष्ट किया कि उन्होंने बार-बार शांतिपूर्ण संवाद की कोशिश की, लेकिन जब शोषण की अति हो गई और शिकायतों को कूड़ेदान में डाल दिया गया, तब जाकर उन्हें इस कड़े कदम के लिए मजबूर होना पड़ा।
जनता से समर्थन की अपील
एंबुलेंस कर्मियों ने प्रदेश की जनता से माफी मांगते हुए सहयोग की अपील की है। उन्होंने कहा कि यदि 48 घंटों के दौरान स्वास्थ्य सेवाओं में कोई व्यवधान आता है, तो उसकी पूरी जिम्मेदारी कर्मचारियों की नहीं, बल्कि कंपनी की दमनकारी नीतियों और शासन की संवेदनहीनता की होगी।