लाहौल की इस खास चीज के दीवाने हुए CM वीरभद्र सिंह

Edited By Updated: 18 Oct, 2016 05:15 PM

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टोपियां भले ही राजनीतिक दलों के साथ प्रदेश के कई जिलों में सभ्यता संस्कृति की पहचान बनती हों लेकिन लाहौल की फूलों वाली टोपी की गरिमा ही निराली है।

उदयपुर: टोपियां भले ही राजनीतिक दलों के साथ प्रदेश के कई जिलों में सभ्यता संस्कृति की पहचान बनती हों लेकिन लाहौल की फूलों वाली टोपी की गरिमा ही निराली है। राजनेता हो या देश-विदेश के पर्यटक, महिला व पुरुष सभी फूलों से सजी लाहौली टोपियों पर फिदा होते देखे गए हैं। खासकर मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह लाहौली टोपी पर फिदा हो गए हैं।


हिमाचल प्रदेश में हरी पट्टी वाली किन्नौरी टोपी हालांकि कांग्रेस की शान है और लाल पट्टी की कुल्लवी टोपी बीजेपी की पहचान बन गई है लेकिन इनसे अलग लाहौल की फूलों वाली टोपी को राजनीति रास नहीं आ रही है। वह तो इस हिमालय क्षेत्र की संस्कृति की जान बनी हुई है। यही वजह है कि कुल्लू और किन्नौर की टोपियों में भी लाहौल के फूल चढ़े नहीं कि यही टोपियां लाहौल की संस्कृति की प्रतीक बन जाती हैं। एकदम अलग सजावट की यह टोपी कुछ इस तरह से दिखती है कि मानों पहनने वाले ने सिर पर फूलों का गुलदस्ता सजा लिया हो।

लाहौल में विशेष अवसरों, शादियों व त्यौहारों में पहनी जाने वाली यह टोपी बाजारों में नहीं मिलती बल्कि घरों में विशेष तौर पर फूलों से सजाई जाती है। प्रदेश भर में शादी के दौरान बारातियों के लिए पगड़ी लगाने की परंपरा है लेकिन लाहौल की शादियों में महिलाएं हो या पुरुष, बच्चे हों या फिर बुजुर्ग फूलों वाली टोपी सभी के सिर का ताज बनती है।

उदयपुर में हरी ठाकुर, प्रेम सिंह व प्रकाश बताते हैं कि सगाई के तुरंत बाद से ही शादी के लिए टोपियां बनाने का काम शुरू हो जाता है। वर और वधु दोनों पक्षों को फूलों वाली टोपियां बनानी ही पड़ती हैं क्योंकि शादी में आने वाले हर मेहमान चाहे महिला हो या पुरूष, बच्चे हों या फिर बुजुर्ग हर आयुवर्ग के मेहमानों को यह टोपी उपहार में देने की परंपरा है। उनका कहना है कि पहले लाहौल में ही टोपियां बनाकर उन्हें फूलों से सजाया जाता था लेकिन बदलते समय के साथ टोपियां बाहर से मंगवाई जाने लगी।


इन टोपियों में लाहौल की संस्कृति के रंग बिखेरने वाले फूल किसी मशीन में आजतक नहीं बने। ये तो आज भी घरों में हाथों से बनते हैं। इन फूलों को बनाने में बड़ी मेहनत करनी पड़ती है। फूल बनाने वाली एक महिला से दिन में 2-3 फूलों से अधिक फूल नहीं बन पाते हैं। सुखा कर रखी गई गेंदे की पंखुडिय़ों को 7 रंगों वाले गोल चमकीले कागजों में गूंथ कर फूलों वाली टोपी सजाना सचमुच में ही बेमिसाल कला है। अब कुल्लवी और किन्नौरी टोपी को भी लाहौली लुक दिया जा रहा है। इन टोपियों पर लाहौल के फूल सजे नहीं कि यह टोपियां भी लाहौली संस्कृति का अंग बन जाती हैं।

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