Solan: सुप्रीम कोर्ट के फैसले के 5 वर्ष बाद खुशवंत सिंह लिटफैस्ट में गूंजा अयोध्या रामजन्म भूमि मामला

Edited By Kuldeep, Updated: 20 Oct, 2024 04:55 PM

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माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के करीब 5 वर्ष बाद अयोध्या रामजन्म भूमि मामले की गूंज कसौली में आयोजित खुशवंत सिंह लिटफैस्ट में फिर से सुनाई दी।

सोलन (ब्यूरो): माननीय सुप्रीम कोर्ट के फैसले के करीब 5 वर्ष बाद अयोध्या रामजन्म भूमि मामले की गूंज कसौली में आयोजित खुशवंत सिंह लिटफैस्ट में फिर से सुनाई दी। प्रख्यात वकील व लेखक सौरभ किरपाल का कहना है कि इस फैसले को विवाद रहित नहीं माना जा सकता। उनका कहना है कि माननीय कोर्ट का काम का कानून के मुताबिक अपनी जजमैट देना है न कि मध्यस्थ नियुक्त करना है। रामजन्म भूमि के मामले में दोनों पक्षों को मनाने के लिए मध्यस्थ नियुक्त किए गए। शाइनबाग वाले मामले में भी मध्यस्थ की नियुक्ति की गई। कसौली में आयोजित खुशवंत सिंह लिटफैस्ट में सौरभ किरपाल एवं सर्वोच्च न्यायालय के वकील रोहिन भट्ट ने सम इंडियन आर मोर इक्वल दैन अथर्ज पर चर्चा कर रहे थे। इसी दौरान रामजन्म भूमि पर 5 वर्ष पूर्व हुए फैसले की चर्चा शुरू हो गई। सौरभ किरपाल ने बढ़ते राजनीतिकरण पर अपनी चिंता व्यक्त की है। फैसले से पूर्व लॉ एंड आर्डर की चिंता करने से कई बार निर्णय स्टीक नहीं होता।

उन्होंने संविधान पर चर्चा करते हुए कहा कि 26 जनवरी 1950 में लागू हुए संविधान में शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण का कोई प्रावधान नहीं था लेकिन देश में पहले चुनाव के बाद शिक्षण संस्थाओं में आरक्षण को लागू किया गया। रोजगार के साथ-साथ लोकसभा एवं विधानसभा सीटों को भी आरक्षित किया गया। पूना समझौते पर चर्चा करते हुए कहा कि इसमें दलितों को नहीं बल्कि अल्पसंख्यकों का आरक्षण का प्रावधान था लेकिन जब संविधान बना तो उसमें केवल दलितों के आरक्षण का प्रावधान किया गया। उन्होंने अपनी किताब इक्वलिटी पर चर्चा करते हुए कहा कि आजादी के 77 वर्ष बाद महिलाओं को आगे बढ़ने के सामान अवसर नहीं मिले हैं। राजनीति का क्षेत्र हो या फिर अन्य क्षेत्र महिलाओं को आगे बढ़ने के लिए एक सामान अवसर प्रदान करने होंगे।

समान नागरिक संहिता कुछ भला नहीं होगा
प्रख्यात वकील व लेखक सौरभ किरपाल ने कहा कि समान नागरिक संहिता से मुस्लिम महिलाओं का कोई भला नहीं होने वाला है। सभी पर्सनल लॉ में सुधार लाने की आवश्यकता है। मुस्लिम लॉ में तो पिछले 80 वर्षों में कोई सुधार नहीं हुआ है। यदि सरकार इसमें रिफॉर्म की प्रक्रिया शुरू होती है तो इसका प्रभाव समान नागरिक संहिता से अधिक होगा। समान नागरिक संहिता को केवल मात्र राजनीतिक फायदे के लिए इस्तेमाल किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि वर्ष 1952 में हिंदू लॉ को तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने अपनी मंजूरी नहीं दी थी लेकिन सांसद ने इसे लागू कर दिया था। वर्ष 2005 में इसमें कुछ सुधार किए गए जबकि दूसरी ओर मुस्लिम लॉ में अभी तक कोई रिफॉर्म नहीं किया गया है जब तक यह नहीं होगा तब तक मुस्लिम महिलाओं को समानता नहीं मिलेगी। इसलिए जरूरी है कि पर्सनल लॉ में रिफॉर्म की प्रक्रिया को शुरू किया जाए।

सेना आज भी होमो सैक्स है : रोहिन भट्ट
कसौली में आयोजित खुशवंत सिंह लिटफैस्ट में रोहिन भट्ट ने सम इंडियन आर मोर इक्वल दैन अथर्ज में चर्चा के दौरान कहा कि देश में होमो सैक्स को मान्यता मिल गई लेकिन सेना में यह भी आज भी गैरकानूनी है। सेना में आज भी होमो सैक्स हो रहा है लेकिन कार्रवाई के डर से कोई आगे नहीं आ रहा है। उन्होंने इस चर्चा के दौरान एक और बड़ी बात कही कि क्या वजह है सेवानिवृत्ति के बाद न्यायाधीश भाजपा को ज्वाइन कर रहे हैं।

 

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