वेतन विसंगति को लेकर हाईकोर्ट का अहम निर्णय

Edited By Kuldeep, Updated: 27 Mar, 2023 10:35 PM

shimla salary discrepancy high court decision

संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को दिए समानता के अधिकार के हनन पर प्रदेश हाईकोर्ट ने अहम निर्णय सुनाया है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने याचिकाकर्ता भारत सिंह कंवर और अन्य की याचिका को मंजूर करते हुए उन्हें वर्ष 1986 से संशोधित वेतन देने के आदेश दिए...

शिमला (मनोहर): संविधान द्वारा प्रत्येक नागरिक को दिए समानता के अधिकार के हनन पर प्रदेश हाईकोर्ट ने अहम निर्णय सुनाया है। न्यायाधीश विवेक सिंह ठाकुर ने याचिकाकर्ता भारत सिंह कंवर और अन्य की याचिका को मंजूर करते हुए उन्हें वर्ष 1986 से संशोधित वेतन देने के आदेश दिए हैं। बकाया राशि को 30 जून 2023 तक 5 फीसदी ब्याज सहित अदा करने को कहा गया है। याचिकाकर्ताओं के अनुसार वे हिमाचल प्रदेश पर्यटन विकास निगम में वर्ष 1983 में नियुक्त हुए थे। उस समय उनका वेतनमान 570-1080 रुपए प्रतिमाह था। इस वेतनमान को वर्ष 1994 में संशोधित कर 1500-2640 कर दिया गया था। उसके बाद इस वेतन को संशोधित कर 2000-3500 रुपए कर दिया था। निगम ने कुछ श्रेणी को संशोधित वेतनमान का लाभ वर्ष 1994 से और याचिकाकर्ताओं को वर्ष 1986 से दिया। याचिकाकर्ताओं के विरुद्ध निगम ने दलील दी कि उन्हें यह वेतनमान वित्त विभाग की स्वीकृति के बाद दिया गया है।

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि कर्मचारियों की सेवा शर्तों में मनमानी करना समानता के सिद्धांत के विरोधी है। राज्य सरकार और इसके उपक्रम कर्मचारियों की कुछ श्रेणियों के लिए वेतनमान निर्धारण में मनमानी नहीं कर सकते हैं। समान श्रेणी के कर्मचारियों से भेदभाव भारतीय संविधान के अनुच्छेद 14 के विपरीत है। राज्य सरकार के ऐसे मनमाने निर्णय की न्यायिक समीक्षा कर हस्तक्षेप किया जा सकता है। अदालत ने मामले से जुड़े रिकॉर्ड का अवलोकन के बाद पाया कि निगम की ओर से वेतन विसंगति का यह निर्णय कानूनी रूप से गलत है। हाईकोर्ट ने याचिका को स्वीकार करते हुए यह निर्णय सुनाया।

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