Shimla: बागवानी प्रोजैक्ट को मॉडल के रूप में दुनिया को दिखाएगा विश्व बैंक

Edited By Kuldeep, Updated: 06 Dec, 2024 07:03 PM

shimla horticulture project  world bank

हिमाचल प्रदेश में हाल ही में समाप्त हुए 1050 करोड़ के बागवानी विकास प्रोजैक्ट के कार्यों को लेकर विश्व बैंक ने संतुष्टि जताई है, साथ ही विश्व बैंक अब हिमाचल के इस प्रोजैक्ट को मॉडल प्रोजैक्ट के रूप में पूरे विश्व को दिखाएगा।

शिमला (भूपिन्द्र): हिमाचल प्रदेश में हाल ही में समाप्त हुए 1050 करोड़ के बागवानी विकास प्रोजैक्ट के कार्यों को लेकर विश्व बैंक ने संतुष्टि जताई है, साथ ही विश्व बैंक अब हिमाचल के इस प्रोजैक्ट को मॉडल प्रोजैक्ट के रूप में पूरे विश्व को दिखाएगा। इसके अलावा विश्व बैंक की सराहना से उत्साहित बागवानी विभाग इस प्रोजैक्ट के दूसरे चरण को तैयार कर राज्य सरकार को भेजेगा क्योंकि विश्व बैंक ने प्रोजैक्ट के दूसरे चरण के लिए फंडिंग करने को अपनी सहमति दी है। इस प्रोजैक्ट में कृषि, बागवानी व पशुपालन के क्षेत्र में विकास का प्रावधान किया जाएगा।

यह बात सचिव बागवानी सी. पालरासू तथा विश्व बैंक के टीम लीडर बेक्जोड शमशिव ने शुक्रवार को शिमला में संयुक्त पत्रकार वार्ता में कही। सी. पालरासू ने कहा कि विश्व बैंक पोषित बागवानी विकास प्रोजैक्ट पूरी तरह से सफल रहा है। कोविड के कारण इसे डेढ़ वर्ष की एक्सटैंशन मिली तथा इससे राज्य में आने वाले दिनों में उत्पादन भी बढ़ेगा। उन्होंने कहा कि इस प्रोजैक्ट के तहत अच्छी क्वालिटी के पौधे आयात किए गए तथा उनका विभाग व निजी नर्सरी में इनकी संख्या को बढ़ाया गया साथ ही बागवानों को सस्ते दाम पर इन्हें उपलब्ध करवाया गया।

उन्होंने कहा कि प्रोजैक्ट के तहत हुए कार्यों से विश्व बैंक संतुष्ट है तथा वह चाहते हैं कि इसी तर्ज पर राज्य में एक और प्रोजैक्ट आए। इसलिए विश्व बैंक प्रोजैक्ट के दूसरे चरण की डीपीआर को तैयार करने व अन्य तकनीकी सहायता कर रहा है। हालांकि यह प्रदेश सरकार पर निर्भर करेगा कि वह इस प्रोजैक्ट को मंजूरी देती है या नहीं। क्योंकि केंद्र सरकार ने हिमाचल पर कर्ज लेने की सीमा तय की है। प्रदेश सरकार से मंजूरी के बाद इसे केंद्र को भेजा जाएगा। इसके अलावा समाप्त हुए प्रोजैक्ट के कार्यों को देखने के लिए देश के 5 राज्यों तथा नेपाल से विशेषज्ञ व अन्य लोग हिमाचल आए।

वहीं बेक्जोड शमशिव ने कहा कि राज्य में सभी 47 वैरायटी के सेबों का उत्पादन हो रहा है। यहां पर विभाग के साथ-साथ कृषि विश्वविद्यालय, किसानों व बागवानों ने बेहतर कार्य किया है। उन्होंने कहा कि प्रोजैक्ट के तहत 261 सिंचाई योजनाओं में से 260 बनकर तैयार हैं तथा एक विवाद के कारण नहीं बन पाई। इससे 12 हजार हैक्टेयर क्षेत्र को सिंचाई सुविधाएं मिली है तथा 14 हजार किसान व बागवान लाभांवित हुए हैं। इस प्रोजैक्ट में 1050 करोड़ रुपए में से 750 करोड़ रुपए इंफ्रास्ट्रक्चर डिवैल्पमैंट पर खर्च किए गए हैं।

4-5 वर्ष में दिखेगा प्रोजैक्ट का असर
बेक्जोड ने कहा कि प्रोजैक्ट के परिणाम अगले 4 से 5 वर्षों में सामने आएंगे। शुरूआती दौर में इसके परिणाम उत्साहवर्धक आए हैं। उन्होंने कहा कि जब पेड़ बड़े होंगे, उसके बाद उत्पादन बढ़ेगा। वर्तमान में प्रदेश में सेब के पेड़ पुराने हो गए हैं इसलिए उनके उत्पादन का स्तर गिर गया है। इसलिए राज्य में लगातार कम पैदावार हो रही है। सी. पाल रासू ने कहा कि बागवानी विभाग हर वर्ष 5 से साढ़े 5 लाख पौधे बागवानों को मुहैया करवा रहा है। अगले वर्ष भी बागवानों को 5 लाख पौधे मुहैया करवाने का लक्ष्य रखा गया है।

विश्व बैंक प्रोजैक्ट के परिणाम किए जाएंगे सार्वजनिक
बेक्जोड शमशिव ने कहा कि जल्द ही बैंक की विशेषज्ञों की दूसरी टीम हिमाचल के दौरे पर आएगी तथा बागवानी विकास प्रोजैक्ट के तहत हुए कार्यों की समीक्षा करेगी। इसके लिए इसके परिणाम सार्वजनिक किए जाएंगे। समाप्त हुए प्रोजैक्ट के तहत किसानों को विदेश नहीं ले जाने पर उन्होंने कहा कि वीजा समस्या को लेकर बागवानों को विदेश नहीं ले जाया जा सका है।

लद्दाख को भेजे 1.5 लाख पौधे
सी. पालरासू ने कहा कि इस बार जम्मू-कश्मीर व लद्दाख से सेब व अन्य फलों के पौधों की मांग आई है। लद्दाख को बागवानी विभाग 1.5 लाख पौधे भेज चुकी है। इसके अलाव और पौधे भी भेजे जा रहे हैं।

ये रही कमियां
बागवानी विकास प्रोजैक्ट में कई कमियां भी पाई गई हैं। इसमें एग्री बिजनैस प्रोमोशन व किसान-उत्पादक संगठनों को लेकर अधिक कार्य नहीं हो पाया। इसके अलावा प्रोसैसिंग, मार्कीटिंग के कार्यों में भी कमी रही है। हालांकि इस पर 32 करोड़ रुपए खर्च किए गए हैं लेकिन इस पर इससे अधिक खर्च किए जा सकते थे।

कीटनाशक को लेकर निजी क्षेत्र के साथ काम करने को तैयार
विश्व बैंक के बेक्जोड शमसिव ने कहा कि कीटनाशकों के अधिक प्रयोग को कम करने के लिए विश्व बैंक प्रदेश में निजी क्षेत्र के साथ काम करने को तैयार है। इसके लिए वह निजी कंपनियों व अन्य संगठनों के साथ काम कर सकता है। इसके तहत वह किसानों को जागरूक करें कि कम नुक्सान पहुंचाने वाले कीटनाशकों का प्रयोग किया जाए।

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