Edited By Vijay, Updated: 11 Aug, 2019 04:22 PM
विश्व धरोहर के रूप में विख्यात शिमला-कालका रेल में रविवार को अनूठी साहित्यिक गोष्ठी अनपढ़ इंजीनियर बाबा भलकू की स्मृति में आयोजित की गई। साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन हिमालय साहित्य, संस्कृति एवं पर्यावरण मंच द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें हिमाचल के 30...
शिमला (तिलक राज): विश्व धरोहर के रूप में विख्यात शिमला-कालका रेल में रविवार को अनूठी साहित्यिक गोष्ठी अनपढ़ इंजीनियर बाबा भलकू की स्मृति में आयोजित की गई। साहित्यिक गोष्ठी का आयोजन हिमालय साहित्य, संस्कृति एवं पर्यावरण मंच द्वारा आयोजित किया गया, जिसमें हिमाचल के 30 रचनाकार व संस्कृतकर्मी भाग ले रहे हैं। इस गोष्ठी को बाबा भलकू की स्मृति और सम्मान को समर्पित किया गया है। भलकू चायल के समीप झाझा गांव का एक अनपढ़ किन्तु विलक्षण प्रतिभा संपन्न ग्रामीण था, जिसकी सलाह और सहयोग से अंग्रेज इंजीनियर शिमला-कालका रेलवे लाइन के निर्माण में सफल हो पाए थे। यात्रा के दौरान वरिष्ठ और युवा कलाकारों ने अपनी-अपनी रचनाओं की प्रस्तुतियां दीं। शिमला से बड़ोग तक की यात्रा में आने वाले स्टेशनों में समरहिल, तारादेवी, कैथलीघाट, कंडाघाट और बड़ोग स्टेशन कविता, गजल, कहानी और संस्मरण के सत्र रखे गए।

बाबा भलकू के मार्गदशर्न से हुआ हिंदुस्तान-तिब्बत रोड का निर्माण
हिमालय मंच के अध्यक्ष और लेखक एसआर हरनोट ने कहा कि हिंदुस्तान-तिब्बत रोड के निर्माण के वक्त भी बाबा भलकू के मार्गदर्शन में न केवल सर्वे हुआ बल्कि सतलुज नदी पर कई पुलों का निर्माण भी हुआ थाख् जिसके लिए उन्हें ब्रिटिश सरकार के लोक निर्माण विभाग द्वारा ओवरशीयर की उपाधि से नवाजा गया था। वर्ष 1947 में सेवानिवृत्ति के उपरांत उनकी सेवाएं उस वक्त कालका-शिमला रेलवे लाइन के सर्वेक्षण में ली गईं जब परवाणु से शिमला के लिए चढ़ाई देखकर ब्रिटिश अभियंताओं को समझ नहीं आ रहा था की आगे का सर्वेक्षण कैसे करें।
छड़ी से नपाई करते थे बाबा भलकू
बताया जाता है कि भलकू अपनी एक छड़ी से नपाई करते और जगह-जगह सिक्के रख देते और उनके पीछे चलते हुए अंग्रेज सर्वे का निशान लगाते चलते। इस तरह जहां ब्रिटिश प्रशासन के धुरंधर इंजीनियर फेल हो गए, वहां अनपढ़ ग्रामीण ने बड़ी सहजता से इस दुसाध्य कार्य को अंजाम दिया था।
शिमला से बड़ोग तक चलेगी रेल यात्रा
उन्होंने कहा कि उनकी याद में शिमला से बड़ोग तक रेल यात्रा चलेगी। वहां दोपहर के भोजन और ठहराव के बाद 3 बजे पुन: शिमला की ओर रवाना होगी। रेल यात्रा के दौरान जाते हुए और लौटते हुए भी स्टेशनों के नाम पर कविता, गजल, कहानी और संस्मरण के सत्र रखे गए हैं जो शिमला से बड़ोग तक समरहिल, तारादेवी, कैथलीघाट, कंडाघाट, कनोह और बड़ोग के नाम पर होंगे।
