स्कूल भवन का निर्माण अधूरा, खुले आसमान तले पढ़ाई कर रहे नौनिहाल (Video)

Edited By Vijay, Updated: 24 Nov, 2021 09:17 PM

प्रदेश सरकार भले ही सरकारी स्कूलों में शिक्षा व सुविधाओं का स्तर ऊंचा होने के दावे करती है लेकिन हकीकत में ये दावे हवा-हवाई होते हैं। इसका बड़ा उदाहरण करसोग मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर राजकीय प्राथमिक पाठशाला सरकोल में देखने को मिला है....

करसोग (पीयूष): प्रदेश सरकार भले ही सरकारी स्कूलों में शिक्षा व सुविधाओं का स्तर ऊंचा होने के दावे करती है लेकिन हकीकत में ये दावे हवा-हवाई होते हैं। इसका बड़ा उदाहरण करसोग मुख्यालय से महज 5 किलोमीटर की दूरी पर राजकीय प्राथमिक पाठशाला सरकोल में देखने को मिला है जहां शिक्षा विभाग की सुस्त कार्यप्रणाली से स्कूल भवन की आज तक मात्र छत ही डल पाई है और बाकी निर्माण शेष है। इस स्कूल में 50 बच्चे शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं जोकि इन दिनों खूले आसमान के नीचे बैठकर पढ़ाई कर रहे हैं लेकिन जब बारिश होगी तो ये बच्चे कहां बैठेंगे यह सोचने वाली बात है।

एसडीएम ने 2 दिनों में रिपोर्ट मांगी

स्थानीय जनता ने इस भवन का निर्माण कार्य पूरा करने के लिए खंड प्राथमिक शिक्षा अधिकारी करसोग कार्यालय के चक्कर काटे लेकिन सुनवाई नहीं हुई। इसी के चलते अब लोगों ने एसडीएम करसोग से मिलकर इस मामले पर तुरंत उचित कार्रवाई किए जाने की मांग की है। एसडीएम ने भी मामले की गंभीरता को देखते हुए ब्लॉक एलीमैंटरी एजुकेशन ऑफिसर को छानबीन करने के निर्देश जारी कर 2 दिनों में रिपोर्ट मांगी है। राजकीय प्राथमिक पाठशाला सरकोल के एसएमसी प्रधान हरीमन का कहना है कि करीब पौने 2 वर्षों से स्कूल का भवन अधूरा पड़ा है। उन्होंने सरकार से जल्द स्कूल भवन का कार्य पूरा करने की मांग की है। उधर, एसडीएम सन्नी शर्मा का कहना है कि राजकीय प्राथमिक पाठशाला सरकोल से संबंधित शिकायत प्राप्त हुई है। 

पढ़ाई का जिम्मा भी एक शिक्षक के सहारे

इस पाठशाला का पुराना भवन जर्जर हालत में होने की वजह से असुरक्षित घोषित कर वर्ष 2019 में गिरा दिया गया था। इसके बाद शिक्षा विभाग ने फरवरी, 2020 में नए भवन की नींव रखी और करीब डेढ़ वर्ष में इस भवन का लैंटल डाल दिया लेकिन दीवारें आज तक नहीं बनाई हैं। हालांकि अभी पहली से 5वीं तक के 40 बच्चे स्कूल आ रहे हैं जबकि 10 नौनिहाल नर्सरी में पढ़ रहे हैं जो अभी स्कूल नहीं आ रहे हैं। यही नहीं इस स्कूल में इन 50 बच्चों का भविष्य संवारने का जिम्मा मात्र एक शिक्षक के सहारे है।

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