Edited By Jyoti M, Updated: 09 Dec, 2025 05:53 PM

हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग ने अपने जवानों के सोशल मीडिया व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए एक बार फिर सख्त कदम उठाया है। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले जारी किए गए दिशानिर्देशों का पर्याप्त पालन नहीं हो रहा था, जिसके चलते डीजीपी मुख्यालय को अब एक व्यापक...
हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश पुलिस विभाग ने अपने जवानों के सोशल मीडिया व्यवहार को नियंत्रित करने के लिए एक बार फिर सख्त कदम उठाया है। ऐसा प्रतीत होता है कि पहले जारी किए गए दिशानिर्देशों का पर्याप्त पालन नहीं हो रहा था, जिसके चलते डीजीपी मुख्यालय को अब एक व्यापक और कठोर मानक संचालन प्रक्रिया (SOP) जारी करनी पड़ी है। यह कदम विभाग की पेशेवर अखंडता और अनुशासन को बनाए रखने की दिशा में एक महत्वपूर्ण प्रयास है।
यह नया आदेश, जिसे डीजीपी अशोक तिवारी ने तत्काल प्रभाव से लागू किया है, स्पष्ट करता है कि पुलिस बल के सदस्यों को अब अपनी ऑनलाइन उपस्थिति को लेकर अत्यधिक सावधानी बरतनी होगी।
वर्चुअल दुनिया में क्या है प्रतिबंधित?
विशेष रूप से पुलिस कर्मियों को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म (जैसे फेसबुक, इंस्टाग्राम, एक्स, आदि) पर अपनी गतिविधियों के संबंध में कई प्रमुख प्रतिबंध लगाती है:
वर्दी में 'रील' और मनोरंजन पर रोक: अब पुलिस की आधिकारिक वर्दी का उपयोग मनोरंजन, निजी प्रसिद्धि या किसी भी तरह के धार्मिक, सामाजिक या राजनीतिक प्रचार के लिए फोटो या वीडियो सामग्री बनाने में नहीं किया जा सकता है।
गोपनीयता भंग करना मना है: पुलिसकर्मी किसी भी हाल में चल रही जांच, अपराध से जुड़ी संवेदनशील जानकारी, पीड़ित या आरोपी की पहचान, या अपनी ड्यूटी के स्थान से संबंधित वीडियो/तस्वीरें अपने व्यक्तिगत खातों पर साझा नहीं कर सकते।
सरकारी कागजात और आलोचना पर चुप्पी: किसी भी सरकारी दस्तावेज, विभागीय आदेश, या गोपनीय संचार को बिना पूर्व अनुमति के सार्वजनिक करना सख्त मना है। साथ ही, पुलिसकर्मी सरकार की नीतियों, मुख्यालय के फैसलों या विभागीय कामकाज पर सार्वजनिक रूप से कोई नकारात्मक टिप्पणी नहीं कर सकेंगे। विभागीय संचार केवल अधिकृत अधिकारियों के माध्यम से ही किया जाएगा।
उल्लंघन पर होगा कड़ा एक्शन
डीजीपी ने स्पष्ट कर दिया है कि इन नए नियमों का उल्लंघन गंभीर दुर्व्यवहार माना जाएगा। चेतावनी दी गई है कि अवज्ञा करने वाले कर्मियों को विभागीय जांच, वेतन वृद्धि रोकने, निलंबन और पदोन्नति पर असर जैसे परिणामों का सामना करना पड़ सकता है। सबसे गंभीर मामलों में, उन्हें सेवा से बर्खास्त भी किया जा सकता है। इसके अतिरिक्त, यदि ऑनलाइन पोस्ट की गई सामग्री आपराधिक कृत्य की श्रेणी में आती है, तो संबंधित पुलिसकर्मी पर कानूनी मुकदमा भी चलाया जाएगा।
बार-बार SOP क्यों?
यह तथ्य कि विभाग को 2024 में इसी तरह के आदेश जारी करने के बावजूद, अब फिर से इन नियमों को लागू करना पड़ा है, यह सवाल खड़ा करता है कि पुलिस बल में 'डिजिटल नैतिकता' को लेकर जागरूकता और अनुपालन की कमी क्यों है। यह पुनरावृत्ति दर्शाती है कि पुलिस विभाग अपने कर्मचारियों के ऑनलाइन व्यवहार को लेकर किसी भी तरह का समझौता करने को तैयार नहीं है और यह अनुशासनहीनता को जड़ से खत्म करने का दृढ़ संकल्प रखता है।