मुसीबतों में भी हंसीं खुशी पल गुजारने वाले इस परिवार पर टूटा दुखों का पहाड़

Edited By kirti, Updated: 22 Dec, 2019 12:07 PM

mountain of sorrows broken on this family

स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले 2 संस्थानों के बीच चल रहा पत्राचार हेपेटाइटिस बी के एक मरीज की जान लेने पर तुला हुआ है। हालात ऐसे हैं कि पत्राचार तो किया जा रहा है बल्कि इसके साथ-साथ टैलीफोन पर भी संपर्क साधा जा रहा है लेकिन संस्थान के अधिकारियों की...

ऊना(विशाल स्याल): स्वास्थ्य सुविधाएं देने वाले 2 संस्थानों के बीच चल रहा पत्राचार हेपेटाइटिस बी के एक मरीज की जान लेने पर तुला हुआ है। हालात ऐसे हैं कि पत्राचार तो किया जा रहा है बल्कि इसके साथ-साथ टैलीफोन पर भी संपर्क साधा जा रहा है लेकिन संस्थान के अधिकारियों की बेरूखी एक गरीब मरीज की जान को सूली पर टांग चुका है। यहां बात की जा रही है क्षेत्रीय अस्पताल ऊना और पी.जी.आई. चंडीगढ़ के बीच चल रहे पत्राचार की जोकि हेपेटाइटिस बी से ग्रसित मरीज को लेकर चल रहा है। उसके विशेष प्रकार के डायलसिस के लिए अस्पताल प्रबंधन पी.जी.आई प्रबंधन से ऊना में एक कमरा देने के लिए पत्राचार कर रहा है लेकिन पी.जी.आई से उनके पत्र की कोई प्रतिक्रिया नहीं आ रही है। ऐसे में मरीज की जान जोखिम में पड़ी हुई है।

चंडीगढ़ या बिलासपुर का करना पड़ रहा रूख

 

लोअर देहलां निवासी संजीव कुमार कौशल पिछले लगभग 2 साल से हेपेटाइटिस बी की बीमारी से ग्रसित है। इस बीमारी के चलते उसका इलाज चल रहा है। हालात ऐसे हैं कि उसको सप्ताह में एक बार डायलसिस प्रक्रिया से गुजरना पड़ता है। इसके लिए उसको एक विशेष प्रकार के कमरे की जरूरत होती है जोकि क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में नहीं है। ऐसे में उसको पी.जी.आई चंडीगढ़ या बिलासपुर का रूख करना पड़ता है। अब कुछ माह से आर्थिक बोझ के तले दब जाने के चलते संजीव डायलसिस के लिए बाहर जिला या राज्य जाने आने के खर्च को वहन नहीं कर पा रहे हैं।

हेपेटाइटिस बी और एच.आई.वी. का अलग कमरे में होता है डायलसिस

हेपेटाइटिस बी और एच.आई.वी. से ग्रसित मरीजों को आम डायलसिस सेंटरों में डायलसिस प्रक्रिया से नहीं गुजारा जाता है। इन से ग्रसित मरीजों के लिए विशेष कमरे तैयार किए जाते हैं जहां इनका डायलसिस किया जाता है। क्षेत्रीय अस्पताल ऊना में अस्पताल प्रबंधन के पास कोई ऐसा कमरा नहीं है जोकि ऐसे विशेष प्रकार के मरीजों के लिए अलॉट किया जाए। ऐसे में अब हेपेटाइटिस बी के मरीज संजीव की दिक्कतें और अधिक बढ़ गई हैं क्योंकि बाहरी राज्य या जिला में डायलसिस करवाना उसकी जेब वहन नहीं कर पा रही है और ऊना में उसको यह सुविधा मिल नहीं पा रही है।

पी.जी.आई. सैटेलाइट सेंटर को सौंपे गए हैं कमरे

 

क्षेत्रीय अस्पताल ऊना की बिल्डिंग में पी.जी.आई. सेटैलाइट सैंटर को अस्थाई तौर पर चलाया जा रहा है। इसके लिए अस्पताल प्रबंधन ने कुछ कमरे पी.जी.आई. ऑथारिटी को दिए हैं। इनमें से एक कमरा संजीव के डायलसिस के लिए मांगा जा रहा है और इसी को लेकर पत्राचार का दौर चलाया जा रहा है। संजीव की गंभीर हालत को देखते हुए स्थानीय ऑथोरिटी ने एक कमरा दिया था लेकिन उसमें डायलसिस के लिए ड्रेनेज सिस्टम नहीं है। डे्रनेज सिस्टम बनाने के लिए अब अस्पताल प्रबंधन को पी.जी.आई. चंडीगढ़ ऑथोरिटी से आज्ञा लेनी होगी जिसके लिए लगभग एक माह से अधिक समय पहले पत्राचार किया गया था जिसका जवाब अब तक नहीं पहुंचा है और न ही इसकी परमिशन हासिल हो पाई है। बी.पी.एल परिवार से संबंधित लोअर देहलां निवासी संजीव कुमार की अकेली यह ही मुश्किल नहीं है। उस पर मुसीबतों का पहाड़ टूटा पड़ा है। संजीव पेशे से किसान है और उसके पास खेतीबाड़ी के अलावा कोई आय का साधन नहीं है। बीमारी के बाद उसकी जमापूंजी इलाज में समा गई और अब रिश्तेदारों व पहचान वालों से इलाज के लिए राशि लेकर वह कर्जदार हो चुका है। हालात ऐसे हैं कि उसके परिवार का पालन पोषण अधिकतर उसका छोटा भाई राजीव कुमार देख रहा है जोकि लाइट एंड साऊंड का कार्य करके जीवनयापन कर रहा है।

मानसिक दिव्यांग है संजीव का बेटा

 

संजीव की मुसीबतें यहीं कम नहीं होती। उसके परिवार में पत्नी के अलावा एक 15 साल का बेटा है जोकि मानसिक रूप से दिव्यांग है और चैरिटेबल संस्था द्वारा चलाए जा रहे आश्रय देहलां में शिक्षा ग्रहण कर रहा है। संजीव पर अपने बेटे और पत्नी की जिम्मेदारी थी लेकिन अब वह खुद सबके लिए जिम्मेदारी बन गया है। मुसीबतों में भी हंसीं खुशी पल गुजारने वाले इस परिवार पर मुसीबतों का पहाड़ टूट पड़ा है। समाजसेवी एवं व्यवसायी अमृत लाल भारद्वाज संजीव की इस दुविधा की स्थिति में मददगार साबित हो रहे हैं। भारद्वाज बताते हैं कि कमरे की अलॉटमेंट के लिए यहां वहां भटकना पड़ रहा है। सी.एम.ओ. ऊना द्वारा पी.जी.आई को पत्राचार किया जा रहा है लेकिन उनके पत्र का कोई जवाब नहीं आ रहा है। टैलीफोन पर भी चंडीगढ़ संपर्क किया जा रहा है लेकिन कोई सीधे स्पष्ट इसकी जिम्मेदारी लेने को तैयार नहीं है। संजीव की हालत दिन ब दिन बिगड़ रही है और इसके लिए सीधे तौर पर सरकारी तंत्र जिम्मेदार है। सी.एम.ओ. ऊना डा. रमन शर्मा ने माना कि कमरे के लिए पत्र लिखा गया था लेकिन अभी तक पी.जी.आई. चंडीगढ़ से कोई जवाब नहीं आया है। इसको लेकर रिमाइंडर भेजा जाएगा ताकि जल्द से जल्द मरीजों को इसकी सुविधा मिल सके।

 

 

 

 

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