हिमाचल के काठगढ़ में है ब्रह्मांड का पहला शिवलिंग, जानिए क्या है रहस्य (Watch Video)

Edited By Ekta, Updated: 17 Jul, 2019 02:21 PM

धार्मिक दृष्टि से पूरा संसार शिव का रूप माना जाता है। शिव को ही सृष्टि का सिरजनहार और संहारक कहा जाता है, इसलिए तो अलग-अलग मंदिरों में भगवान शिव अलग-अलग स्वरूपों में मिलते हैं। कहा भी गया है ‘इक ओंकार’... मतलब ओंकार एक है... और वो एक भगवान शिव ही...

नूरपुर (भूषण शर्मा): धार्मिक दृष्टि से पूरा संसार शिव का रूप माना जाता है। शिव को ही सृष्टि का सिरजनहार और संहारक कहा जाता है, इसलिए तो अलग-अलग मंदिरों में भगवान शिव अलग-अलग स्वरूपों में मिलते हैं। कहा भी गया है ‘इक ओंकार’... मतलब ओंकार एक है... और वो एक भगवान शिव ही हैं। इन सब अवतारों से परे भगवान शिव के अर्धनारीश्वर रूप का भी जिक्र होता है जो आधा भगवान शिव और आधा माता पर्वती का हिस्सा माना गया है, अब तक आपने शिव के अर्धनारीश्वर अवतार के बारे में किस्से-कहानियों में सुना होगा। लेकिन इसका जीता-जागता और विश्व का एक मात्र प्रमाण कांगड़ा जिला में मिलता है, जहां भगवान शिव और माता पार्वती एक साथ पाषाण रूप में विराजमान हैं। माना जाता है कि ये शिवलिंग ब्रह्मांड का पहला शिवलिंग है। काठगढ़ महादेव मंदिर में रहस्य की बात यहां शिव पार्वती का एक साथ विराजमान होना है, जो दोनों का अर्धनारीश्वर अवतार माना जाता है।
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मंदिर में स्थित शिवलिंग की लंबाई 7 से 8 फीट है जबकि माता पार्वती की 5 से 6 फीट। दोनों काले-भूरे पाषाण में विराजमान हैं। चौंकाने वाली बात तो ये है कि शिव-पार्वती के रूप में विराजमान इन पाषाणों के बीच का हिस्सा नक्षत्रों के अनुरूप घटता-बढ़ता रहता है। दोनों एक दूसरे से अलग रहते हैं और शिवरात्रि के दिन ही दोनों का आपस में मिलन होता है। मंदिर के उत्थान के लिए साल 1984 में एक कमेटी बनाई गई। कमेटी के गठन के बाद यहां पर्यटन के क्षेत्र को बढ़ावा दिया गया और तरह-तरह की कमियों को दूर किया गया। इससे पहले यहां केवल शिवरात्रि मेला ही आयोजित किया जाता था लेकिन अब श्रद्धालुओं की बढ़ती संख्या को देखते हुए यहां हर कार्यक्रम का आयोजन किया जाने लगा है।
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काठगढ़ महादेव मंदिर का इतिहास कई दंत कथाओं और किवदंतियों से जुड़ा हुआ है। मंदिर में विराजमान शिव-पार्वती के बारे के कई किस्से कहानियां प्रचलित हैं लेकिन शिव पुराण में वर्णित कथा के अनुसार एक समय में ब्रह्मा और विष्णु के बीच अपने बड़प्पन को लेकर युद्ध हो रहा था।शिव आकाश मंडल से ये सब देख रहे थे। दोनों देवता एक-दूसरे के वध की इच्छा से अलग-अलग अस्त्रों का प्रयोग कर रहे थे। दोनों देवों के इन कोशिशों से सृष्टी को भारी नुकसान हो सकता था। लिहाजा उन्हें रोकने के लिए खुद भोलेनाथ महाअग्नि तुल्य स्तंभ के रूप में ब्रह्मा और विष्णु के बीच प्रकट हो गए। जिससे दोनों देवताओं के अस्त्र अपने आप शांत हो गए और युद्ध भी शांत हो गया। इसके बाद शिव का यही अग्नितुल्य स्तंभ काठगढ़ महादेव के रूप में जाना जाने लगा।  
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एक बार फिर सावन का वो पावन महीना आ गया है और फिर से मंदिर में भक्तों का जमावड़ा लगना शुरू है। लिहाजा प्रशासन की तरफ से श्रद्धालुओं की सुविधा के लिए कई प्रयास किए गए हैं। सुरक्षा के लिए पुलिस की तैनाती की गई है जबकि खाने-पीने के भी पुख्ता इंतजाम किए गए हैं। वहीं कमेटी मंदिर में आने वाले श्रद्वालुओं की सुविधा के लिए दिन में तीन बार लंगर की व्यवस्था करवा रही है। साथ ही समय-समय पर निःशुल्क चिकित्सा शिविरों का भी आयोजन किया जा रहा है। काठगढ़ मंदिर देश विदेश से आने वाले भक्तों की आस्था का प्रमुख केंद्र है। दूर-दूर से शिवभक्त इस मंदिर में दर्शन करने पहुंचते हैं। 

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