Edited By Kuldeep, Updated: 16 Dec, 2024 09:20 PM
हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अवैध रूप से सड़कें बनाने से जुड़े मामले में कड़ा संज्ञान लिया है। जनहित याचिका में तहसील सुन्नी के तहत आने वाले सीमांकित संरक्षित वन क्षेत्र को आरक्षित वन घोषित करने और इस वन क्षेत्र से गुजरने...
शिमला (मनोहर): हिमाचल प्रदेश हाईकोर्ट ने अवैध रूप से सड़कें बनाने से जुड़े मामले में कड़ा संज्ञान लिया है। जनहित याचिका में तहसील सुन्नी के तहत आने वाले सीमांकित संरक्षित वन क्षेत्र को आरक्षित वन घोषित करने और इस वन क्षेत्र से गुजरने वाली अवैध सड़कों पर गाड़ियों की आवाजाही को रोकने की मांग को लेकर याचिका दायर की गई है। कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश तरलोक सिंह चौहान और न्यायाधीश सत्येन वैद्य की खंडपीठ ने हिमरी निवासी याचिकाकर्त्ता विजयेंद्र पाल सिंह, देवी राम और देव राज द्वारा दायर जनहित याचिका की सुनवाई के पश्चात राज्य सरकार से शपथपत्र दायर कर विवादित सड़कों से जुड़ा रिकॉर्ड जिसमें सक्षम प्राधिकारी द्वारा दी गईं स्वीकृतियां और इन सड़कों का अस्तित्व राज्य का दर्जा प्राप्त करने से पहले होने के साक्ष्य पेश करने के आदेश दिए।
प्रार्थियों ने वन, राजस्व और लोक निर्माण विभाग के सचिव सहित प्रधान मुख्य अरण्यपाल, डीएफओ शिमला, डीसी शिमला व उद्योग विभाग के निदेशक को प्रतिवादी बनाया है। प्रार्थियों का कहना है कि छप्परानी, दबका व फुलगलानी इत्यादि सीमांकित संरक्षित वन क्षेत्र आते हैं। वर्ष 2011 से इन वन क्षेत्रों में कई सड़कें अवैध रूप से बनाई गईं। आरोप है कि उक्त डीपीएफ से बाहर भी कुछ सड़कें बिना अनुमति बनाई गई हैं। इन सड़कों के निर्माण के बाद पूरे क्षेत्र में पेड़ों के कटान और तस्करी से जुड़ीं गतिविधियां बढ़ने लगीं।
वन माफिया के सक्रिय होने से पेड़ों का कटान बढ़ गया। अवैध खनन के मामले भी इस क्षेत्र में बढ़ गए हैं। प्रार्थियों ने इन सड़कों में गाड़ियों की आवाजाही पर रोक लगाने की मांग की है। प्रार्थियों ने मांग की है कि हिमरी-नल्लाह सड़क के निर्माण के लिए 657 पेड़ों को काटने की एफसीए दी गई है इसलिए 657 पेड़ों को कटने से बचाया जा सके।
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