हाेली पर्व पर भगवान रघुनाथ जी की नगरी में जमकर उड़ा गुलाल

Edited By Vijay, Updated: 28 Mar, 2021 11:56 PM

holi festival in kullu

भगवान रघुनाथ जी की नगरी कुल्लू में 40 दिन पहले शुरू हुए होली उत्सव का समापन हुआ। कुल्लू ही नहीं, अपितु भगवान कृष्ण की लीला स्थली वृंदावन में भी यह पर्व बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है। देशभर की अन्य होलियों में अलग स्थान रखने वाली कुल्लू व वृंदावन...

कुल्लू (गीता): भगवान रघुनाथ जी की नगरी कुल्लू में 40 दिन पहले शुरू हुए होली उत्सव का समापन हुआ। कुल्लू ही नहीं, अपितु भगवान कृष्ण की लीला स्थली वृंदावन में भी यह पर्व बसंत पंचमी के दिन से शुरू होता है। देशभर की अन्य होलियों में अलग स्थान रखने वाली कुल्लू व वृंदावन की होली अन्य स्थानों पर मनाई जाने वाली होली से 40 दिन पूर्व ही शुरू हो जाती है। देवभूमि में जहां भगवान रघुनाथ जी के साथ होली खेली जाती है, तो वहीं मथुरा में कान्हा संग होली खेली जाती है। रविवार को अखाड़ा बाजार, लोअर ढालपुर, ढालपुर, सरवरी, रामशिला व गांधीनगर सहित नग्गर, भुंतर, लगघाटी व मणिकर्ण के इलाकों में खूब गुलाल उड़ा। वहीं ग्रामीण इलाकों में भी होली की धूम मची रही।लोगों ने ढोल-नगाड़ों, डफली व झांझ की धुन पर जगह-जगह एक-दूसरे को गुलाल लगाकर होली की बधाई दी। होली के दौरान कुल्लू के अधिष्ठाता देवता रघुनाथ जी के चरणों में भी गुलाल उड़ाया गया।

बता दें कि कुल्लू में होली का इतिहास रघुनाथ के कुल्लू आगमन के साथ ही शुरू हुआ। रघुनाथ के साथ महंत समुदाय के लोग भी अयोध्या से कुल्लू आए थे और उस समय से ही होली का प्रचलन कुल्लू में शुरू हो गया था। कुल्लू में बैरागी समुदाय के लोग ब्रज में मनाई जाने वाली होली की तर्ज पर उत्सव मनाते हैं। होली से 8 दिन पहले से ही बैरागी समुदाय के लोग ब्रज भाषा में होली के पारंपरिक गीत गाकर भगवान रघुनाथ सहित अन्य देवी-देवताओं का गुणगान करते हैं। होली के इन गीतों को रंगत देने के लिए बैरागी समुदाय के लोग डफली व झांझ आदि साज का इस्तेमाल करते हैं। इन साजों का प्रयोग भी सिर्फ ब्रज में ही होता है। कुल्लू में बैरागी समुदाय के लोग सालभर इसका इंतजार करते हैं।

रविवार को बैरागी समुदाय के लोगों ने घर-घर जाकर प्राचीन परंपरा को निभाया। इस दौरान बैरागी समुदाय के लोगों की टोली पूरे क्षेत्र में रंग लगाने के बाद भगवान रघुनाथ के चरणों में गुलाल लगाकर घर लौटी और शाम को फिर से सुल्तानपुर पहुंची। जहां पर होलिका दहन के लिए भगवान रघुनाथ जी मंदिर से बाहर निकले और पूजा-अर्चना के साथ होलिका दहन का कार्यक्रम संपन्न हुआ। समुदाय द्वारा मनाई जाने वाली होली का संबंध नग्गर के झीड़ी और ठावा से भी है। यहां पर इस समुदाय के गुरु पेयाहारी बाबा रहते थे और उन्हीं की याद में इस समुदाय के लोग टोली बनाकर नग्गर के ठावा व झीड़ी में होली के एक दिन पहले जाकर पूरा दिन होली गीत गाते हैं।

बैरागी समुदाय के लोगों के अनुसार उनकी यह होली बहुत पुरानी है। सदियों से चली आ रही परंपरा के अनुसार छोटे कभी भी अपने से बड़े लोगों के सिर और मुंह पर गुलाल नहीं लगाते और वे अपने से बड़े लोगों के चरणों में गुलाल फैंकते हैं और बड़े आशीर्वाद स्वरूप छोटों के सिर पर गुलाल फैंकते हैं। जबकि हमउम्र के लोग एक-दूसरे के मुंह पर गुलाल लगाते हैं और इस उत्सव को मनाते हैं।

कुल्लू के कई इलाकों में लोगों ने धूमधाम से होली मनाई। हालांकि प्रशासन ने बढ़ते कोरोना मामलों के चलते पाबंदी लगाते हुए लोगों को अपने घरों में ही होली मनाने की हिदायत दी थी, लेकिन लोग टोलियां बनाकर होली खेलने निकले। कुल्लू शहर सहित भुंतर, बजौरा व अन्य इलाकों में लोगों ने जमकर होली खेली और उनमें कोरोना का कोई डर नहीं दिखा।

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