Edited By Vijay, Updated: 13 Sep, 2025 03:26 PM

ब्रिटिश काल में कसौली को रोशन करने वाला 1931 में बना ऐतिहासिक पावर हाऊस आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। एक समय में जो इमारत कसौली की जीवनरेखा हुआ करती थी, आज वह धूल फांक रही है।
कसौली (जितेंद्र): ब्रिटिश काल में कसौली को रोशन करने वाला 1931 में बना ऐतिहासिक पावर हाऊस आज अपनी बदहाली पर आंसू बहा रहा है। एक समय में जो इमारत कसौली की जीवनरेखा हुआ करती थी, आज वह धूल फांक रही है। कैंटोनमेंट बोर्ड द्वारा हिमाचल प्रदेश विद्युत विभाग से इस भवन को वापस लेने के बाद से न केवल यह ऐतिहासिक धरोहर लावारिस हो गई है, बल्कि स्थानीय निवासियों को भी भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है।
कसौली से दूर देवरी गांव में खाेल दिया कार्यालय
यह पावर हाऊस कैंट बोर्ड कसौली की जमीन पर 1931 में बनाया गया था और आजादी से पहले से ही कसौली के लिए बिजली सप्लाई का मुख्य केंद्र था। बाद में यह हिमाचल प्रदेश बिजली बोर्ड के अधीन आ गया और यहां बिजली बोर्ड का कार्यालय स्थापित किया गया। कसौली में बिजली से संबंधित सभी गतिविधियां जैसे बिल जमा करना, शिकायतें दर्ज कराना और नए कनैक्शन लेना, यहीं से संचालित होती थीं। परंतु कुछ समय पहले कैंट बोर्ड ने यह जमीन और इमारत बिजली विभाग से वापस ले ली। इसके बाद बिजली विभाग ने अपना कार्यालय कसौली से काफी दूर देवरी गांव में एक किराए के कमरे में खोल दिया है। इस नए कार्यालय तक पहुंचने में आम जनताको भारी मुश्किलों का सामना करना पड़ रहा है, जिससे स्थानीय लोगों में प्रशासन की इस कार्यवाही के प्रति गहरा रोष है।
गौरवशाली रहा है इतिहास
इस पावर हाऊस का इतिहास कसौली के विकास से जुड़ा हुआ है। दस्तावेजों के अनुसार कसौली इलेक्ट्रिक सप्लाई कंपनी लिमिटेड की स्थापना 7 दिसम्बर 1948 को हुई थी, लेकिन कसौली में बिजली घर का उल्लेख 1931 से मिलता है। इसका निर्माण ब्रिटिश काल में मुख्य रूप से केंद्रीय अनुसंधान संस्थान कसौली की बिजली जरूरतों को पूरा करने के लिए किया गया था।
बुजुर्गों ने सांझा की यादें
इलाके के बुजुर्गाें ने यादें सांझा करते हुए बताया कि 1950 के दशक में यही पावर हाऊस पूरे कसौली का एकमात्र बिजली का स्रोत था। एक स्थानीय बुजुर्ग ने याद करते हुए बताया कि मुझे याद है, श्रीधीर नाम के व्यक्ति यहां तीन जैनरेटरों (एक बड़ा और दो छोटे) के इंजीनियर-इंचार्ज थे। उस समय कसौली जैसे छोटे शहर में जैनरेटर से बिजली बनाना एक आधुनिक तकनीक थी। उन्होंने बताया कि हम वहां जैनरेटर की सफाई के बाद बचे तेल से सने कपास के कचरे को इकट्ठा करने जाते थे। उस कचरे से हमारे घर का चूल्हा और अंगीठी जलती थी, जिससे खाना पकाने में मदद मिलती थी। 60 के दशक की शुरुआत में जब भाखड़ा से बिजली की आपूर्ति शुरू हुई तो इस पावर हाऊस का इस्तेमाल धीरे-धीरे कम हो गया और अंततः यह बंद हो गया।
लाेगाें ने की म्यूजियम बनाने की मांग
आज यह ऐतिहासिक इमारत वीरान पड़ी है और इसके अंदर रखी बिजली विभाग की पुरानी मशीनें और उपकरण जर्जर हालत में हैं। स्थानीय निवासियों का कहना है कि प्रशासन और कैंट बोर्ड को इस ऐतिहासिक धरोहर के प्रति ऐसा उदासीन रवैया नहीं अपनाना चाहिए। लोगों का सुझाव है कि अगर इस पावर हाऊस को बिजली कार्यालय के रूप में इस्तेमाल नहीं करना है, तो इसे एक सुंदर म्यूजियम में तब्दील किया जा सकता है। इस म्यूजियम में कसौली के बिजली के इतिहास, पुरानी मशीनों और शहर के विकास से जुड़ी चीजों को प्रदर्शित किया जा सकता है। यह न केवल एक ऐतिहासिक धरोहर को बचाएगा, बल्कि कसौली में पर्यटन के लिए एक नया आकर्षण भी पैदा करेगा। अब देखना यह होगा कि क्या प्रशासन स्थानीय लोगों की इस मांग पर ध्यान देता है और कसौली की इस अनमोल विरासत को सहेजने के लिए कोई कदम उठाता है।