हाईकोर्ट ने औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए बनाई ‘पहले आओ पहले पाओ’ नीति की रद्द

Edited By Vijay, Updated: 21 Nov, 2023 11:08 PM

highcourt shimla

प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए बनाई पहले आओ पहले पाओ की नीति को रद्द कर दिया है। राज्य में उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित करने हेतु उद्योग विभाग ने वर्ष 2004 में प्रोत्साहन अनुदान के रूप में भूमि आबंटित करने की...

शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने राज्य में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना के लिए बनाई पहले आओ पहले पाओ की नीति को रद्द कर दिया है। राज्य में उद्योगों की स्थापना को प्रोत्साहित करने हेतु उद्योग विभाग ने वर्ष 2004 में प्रोत्साहन अनुदान के रूप में भूमि आबंटित करने की नीति बनाई थी। इसके तहत औद्योगिक इकाइयों को पहले आओ पहले पाओ की नीति के आधार पर भूमि आबंटित करने का प्रावधान किया गया था। हाईकोर्ट ने इस नीति को असंवैधानिक ठहराते हुए इसे समानता के अधिकार का उल्लंघन बताया। मुख्य न्यायाधीश की अध्यक्षता वाली खंडपीठ ने पहले आओ पहले पाओ नीति को गैर-कानूनी और मनमाना ठहराते हुए इसी आधार मैसर्ज मैहतपुर सीमैंट उद्योग ऊना को आबंटित की गई भूमि का आबंटन रद्द कर दिया। कोर्ट ने इस सीमैंट उद्योग की स्थापना के लिए प्लॉट नंबर 145 पर बनाए ढांचे को 3 माह के भीतर तोड़ कर प्लॉट खाली करने के आदेश भी दिए। मामले के अनुसार प्रदेश सरकार के उद्योग विभाग ने ऊना जिले के मैहतपुर में औद्योगिक इकाइयों की स्थापना हेतु मैहतपुर क्षेत्र का चयन किया था। 

वर्ष 2012 में रिट याचिका के माध्यम से लगाया था आरोप 
औद्योगिक इकाइयों के कामगारों और अन्य जनता को स्वास्थ्य सुविधाएं प्रदान करने की दृष्टि से प्लॉट नंबर 145 को ईएसआई डिस्पैंसरी बनाने के लिए चिन्हित किया गया। प्रार्थी अनिल सपाटिया और अन्यों ने वर्ष 2012 में रिट याचिका के माध्यम से आरोप लगाया था कि डिस्पैंसरी के लिए चयनित भूमि का मुख्य भाग मैसर्ज मैहतपुर सीमैंट उद्योग के नाम से सीमैंट उद्योग लगाने के लिए सरकार ने जनहित को दरकिनार कर आबंटित कर दिया। आरोप था कि उक्त उद्योग को विवादित भूमि महज पहले आओ पहले पाओ नीति के आधार पर मात्र 10 फीसदी धरोहर राशि जमा करने पर आबंटित कर दी गई। प्रार्थियों ने सरकार की इस नीति का विरोध करते हुए कहा कि यह नीति असंवैधानिक है और उद्योग मालिक को गैर-कानूनी फायदा पहुंचाने के लिए इस नीति का इस्तेमाल किया गया। प्रार्थी का आरोप था कि जो भूमि जनहित को ध्यान में रखते हुए डिस्पैंसरी की स्थापना हेतु चिन्हित की गई थी, इसे उद्योग लगाने के लिए इस्तेमाल नहीं किया जा सकता। इसे भूमि इस्तेमाल में परिवर्तन का मामला भी बताया गया था। प्राॢथयों ने धारा 118 के उल्लंघन का आरोप भी लगाया था। कोर्ट ने प्रार्थियों की दलीलों से सहमति जताते हुए कहा कि सरकार की पहले आओ पहले पाओ की नीति से सरकार को तो कुछ खास हासिल नहीं हुआ बल्कि उक्त उद्योग को अवांछनीय फायदा पहुंच गया क्योंकि उक्त प्लॉट के लिए कई अन्य दावेदार भी मौजूद थे।

वाइल्ड फ्लावर हॉल से जुड़े मामले पर सुनवाई 24 को
वहीं प्रदेश हाईकोर्ट में वाइल्ड फ्लावर हॉल से जुड़े मामले पर सुनवाई 24 नवम्बर के लिए टल गई। इस मामले में कोर्ट ने राज्य सरकार द्वारा वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल छराबड़ा को अपने कब्जे में लेने के आदेशों पर रोक लगा रखी है। प्रदेश सरकार ने बीते शुक्रवार को वाइल्ड फ्लावर हॉल होटल का प्रबंधन और संपत्ति पर कब्जा अपने हाथों में लेने के लिए कार्यकारी आदेश जारी किए थे। ओबरॉय होटल ग्रुप ईआईएच कंपनी लिमिटेड ने शनिवार को हाईकोर्ट में आवेदन दायर कर कोर्ट से उक्त सरकारी आदेशों पर रोक लगाने की गुहार लगाई थी। कंपनी की दलील थी कि सरकार ने जल्दबाजी दिखाते हुए हाईकोर्ट के आदेशों को अन्यथा लेते हुए उनकी कंपनी के वाइल्ड फ्लावर हॉल का प्रबंधन और संपत्ति को अपने अधीन लेने के आदेश जारी कर दिए। कोर्ट ने प्रार्थी कंपनी की दलीलों से फिलहाल सहमति जताते हुए कहा कि कोर्ट ने केवल सरकार से उसका विकल्प पूछा था न कि संपत्ति और प्रबंधन को अपने अधीन लेने के आदेश दिए। कोर्ट ने उपरोक्त तथ्यों को देखते हुए सरकार के आदेशों पर रोक लगाई और आदेश दिए थे कि वह होटल के प्रबंधन और संपत्ति के कब्जे में दखल न दें।
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