पांडवों ने अज्ञातवास के समय किया था इस मंदिर का निर्माण, खुदाई में आज भी निकलता है कोयला(Video)

Edited By Vijay, Updated: 10 Jun, 2019 12:56 PM

देवभूमि हिमाचल के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल नारकंडा में गगन चूमती बर्फ से लदी पहाडिय़ों और चारों तरफ प्रकृति के सौंदर्य से घिरा बादलों को छूता मां भीमाकाली का हाटु मंदिर प्रदेश में एक अद्धभुत मन्दिर है। शिमला से 70 किलोमीटर दूर 3400 मीटर की ऊंचाई पर बना...

शिमला (सुरेश): देवभूमि हिमाचल के प्रसिद्ध पर्यटक स्थल नारकंडा में गगन चूमती बर्फ से लदी पहाडिय़ों और चारों तरफ प्रकृति के सौंदर्य से घिरा बादलों को छूता मां भीमाकाली का हाटु मंदिर प्रदेश में एक अद्धभुत मन्दिर है। शिमला से 70 किलोमीटर दूर 3400 मीटर की ऊंचाई पर बना ये मंदिर विशालकाय देवदार के पेड़ों के बीच स्थित है। ज्येष्ठ मास के हर रविवार को यहां पर लोगों का तांता लगा रहता है। खासकर ज्येष्ठ मास के पहले रविवार को यहां पर लोगों का हुजूम उमड़ पड़ता है।
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पांडवों ने अज्ञातवास के समय बनाया था मंदिर

माना जाता है कि यह मंदिर पांडवों ने अपने अज्ञातवास के समय बनाया, जिसका प्रमाण आज भी यहां मिलता है। कहा जाता है कि यहां पर आज भी अगर खुदाई की जाए तो जला हुआ कोयला मिलता है। जो इस बात का प्रमाण दर्शाता है कि पांडव की इस जगह पर एक रसोई भी हुआ करती थी और वे इस जगह पर खाना बनाया करते थे। बड़ी-बड़ी चट्टानों के बीच आज भी यहां कोयला मिलता है। नवनिर्माण हुए इस मंदिर में प्राचीन कला की अद्भुत आकृतियां उकेरी गई हंै जो पर्यटकों और श्रद्धालुओं के लिए आकर्षण का केंद्र हैं।
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मन्दिर की व्यवस्था में जुटी रहती है कमेटी

मन्दिर के रखरखाव व इसकी सुंदरता और सुरक्षा को बनाए रखने के लिए कमेटी का गठन किया गया है जो हर समय मन्दिर की व्यवस्था में जुटी रहती है। हाटु मन्दिर के प्रधान कंवर भूपेंद्र सिंह का कहना है कि पांडवों के समय में मन्दिर के आसपास भीमसेन के समय के चूल्हे अगर आज भी खोदे जाएं तो भी कोयले निकलते हैं।
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राजों और रजवाड़ों का पूर्वजों के समय से रहा है खास लगाव

उन्होंने कहा कि इस मंदिर से राजों और रजवाड़ों का पूर्वजों के समय से खास लगाव रहा है और पूर्व मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह पिछले 40 सालों से लगातार इस मंदिर में आकर पूजा-अर्चना करते है। इससे पूर्व के राजाओं का भी इस मंदिर से सदियों से नाता रहा है। बता दें कि मां भीमाकाली मन्दिर कुमारसैन, रामपुर, ठियोग, कोटखाई, रोहड़ू सहित प्रदेश, दूसरे प्रदेशों और विदेशों में भी आस्था का प्रतीक बना हुआ है।
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