दर्द में डूबी है कुल्लू के कई परिवारों की दिवाली: आपदा ने सब कुछ छीना... न जलेंगे दीप और न बंटेगी मिठाई

Edited By Jyoti M, Updated: 20 Oct, 2025 11:24 AM

diwali of mourning in kullu

हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में इस बार दीपावली की खुशियां फीकी पड़ गई हैं। हर साल की तरह दीयों की रोशनी, मिठाइयों की मिठास और घरों की जगमगाहट तो होगी, लेकिन कुल्लू के सैकड़ों परिवारों के लिए यह पर्व इस बार सिर्फ कैलेंडर की एक तारीख बनकर रह गया है।...

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू जिले में इस बार दीपावली की खुशियां फीकी पड़ गई हैं। हर साल की तरह दीयों की रोशनी, मिठाइयों की मिठास और घरों की जगमगाहट तो होगी, लेकिन कुल्लू के सैकड़ों परिवारों के लिए यह पर्व इस बार सिर्फ कैलेंडर की एक तारीख बनकर रह गया है। मानसून में हुई भारी बारिश और विनाशकारी भूस्खलन ने इन परिवारों से उनका सब कुछ छीन लिया है।

जिन घरों में हर साल उत्साह और उमंग के साथ दीपावली मनाई जाती थी, आज वे घर मलबे के ढेर में बदल गए हैं। बेघर हुए ये परिवार इस बार तिरपाल के नीचे, तंबुओं में या किराए के कमरों में रातें गुजारने को मजबूर हैं। रोशनी का यह त्योहार उनके लिए उम्मीद की किरण लाने के बजाय, आपदा के गहरे दर्द को और बढ़ा रहा है।

सांसत में चार सौ से अधिक परिवार

जिले के 400 से अधिक परिवार इस दुखद स्थिति से जूझ रहे हैं। इनमें से कई लोगों ने पड़ोसियों और रिश्तेदारों के यहां शरण ली है, जबकि 100 से अधिक परिवार तंबुओं में जी रहे हैं, और करीब 150 परिवार रिश्तेदारों के सहारे हैं। 100 से ज्यादा परिवार किसी तरह किराए के कमरों में गुजारा कर रहे हैं। सैंज घाटी के गुमत राम जैसे प्रभावितों का कहना है कि जब खुशियां मनाने के लिए घर ही नहीं बचा, तो भला त्योहार कैसा। उनके पास इस पर्व पर पहाड़ जैसे दुख के सिवा और कुछ नहीं है।

सराज में दिवाली पर पसरा सन्नाटा

कुल्लू की सराज घाटी का हाल भी कुछ ऐसा ही है। आपदा के जख्म अभी हरे हैं, जिसके चलते यहां की दीपावली की रौनक पूरी तरह गायब है। बगस्याड़, थुनाग और जंजैहली जैसे प्रमुख बाजारों में भी इस बार भीड़ और चहल-पहल नहीं है। ये बाजार सूने पड़े हैं। सराज का बड़ा व्यावसायिक केंद्र, थुनाग बाजार बुरी तरह प्रभावित हुआ है, और कई दुकानदार अभी तक अपनी दुकानें ठीक से नहीं सजा पाए हैं; कई तो अभी भी मलबे से दबे हैं।

स्थानीय निवासी लोगों का कहना है कि जब घर ही उजड़ गए हैं, तो दीपावली मनाने का कोई उत्साह नहीं बचा है, न ही रोशनी करने का मन है। बहुत से प्रभावित लोग अब भी अस्थायी आश्रय शिविरों में जीवन गुजार रहे हैं। इस बार सराज के कई गांवों में न दीये जलेंगे और न ही मिठाइयां बंटेंगी। लोग अपनी बुनियादी जरूरतों को पूरा करने के लिए संघर्ष कर रहे हैं। हालांकि प्रशासन राहत कार्यों में लगा है, लेकिन इस बार की दीपावली सराज में रंग, मिठास और रोशनी के बजाय गहरी चुप्पी और उदासी लेकर आई है। यह दिवाली, आपदा की छाया में फीकी पड़ी एक दर्दनाक याद बन कर रह जाएगी।

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