11 वर्षीय आदित्य के जज्बे को सलाम, लिफाफे बेच कर 5 भाइयों को दिला रहा शिक्षा

Edited By Vijay, Updated: 05 Oct, 2019 10:59 PM

11 years old adiyta

सारी सुविधाएं मिलने के बावजूद कुछ बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में वो नहीं कर पाते, जिसकी उम्मीद उनके अभिभावक उनसे लगाए होते हैं जबकि कुछ ऐसे भी बच्चे हैं, जिनमें पढ़ाई को लेकर ऐसा जज्बा है कि दिन-रात मेहनत कर न केवल स्वयं, बल्कि अपने छोटे भाई-बहनों को...

मानपुरा (संजीव बस्सी): सारी सुविधाएं मिलने के बावजूद कुछ बच्चे शिक्षा के क्षेत्र में वो नहीं कर पाते, जिसकी उम्मीद उनके अभिभावक उनसे लगाए होते हैं जबकि कुछ ऐसे भी बच्चे हैं, जिनमें पढ़ाई को लेकर ऐसा जज्बा है कि दिन-रात मेहनत कर न केवल स्वयं, बल्कि अपने छोटे भाई-बहनों को भी पढ़ा रहे हैं। ऐसा ही एक उदाहरण झाड़माजरी में देखने को मिला है। राजकीय माध्यमिक पाठशाला झाड़माजरी में छठी कक्षा में पढ़ रहा 11 वर्षीय आदित्य 2 बजे तक स्कूल जाता है। स्कूल से आने के बाद वह साथ लगते बाजारों में कागज के लिफाफे बेचता है ताकि स्वयं व अपने छोटे भाइयों को पढ़ा सके।

आदित्य ने ऐसे लिया काम करने फैसला

आदित्य के पिता झाड़माजरी के एक उद्योग में काम करते हैं और माता गृहिणी हैं। आदित्य के अलावा 5 भाई हैं, जिनमें 2 छोटे भाई चौथी कक्षा, 2 तीसरी व एक दूसरी कक्षा में है। पिता के वेतन से घर का राशन ही पूरा होता था। फिर आदित्य ने निर्णय लिया कि वह घर में कागज के लिफाफे बनाएगा और दुकानों पर बेचेगा। पहले तो उसने थोड़े-थोड़े लिफाफे बनाने शुरू किए और पैदल ही उनकी सप्लाई शुरू की। जैसे ही उसकी आय बढ़ी तो उसने एक साइकिल ले ली। अब वह साइकिल पर झाड़माजरी व इसके आसपास की 100 के करीब दुकानों में लिफाफे बेच कर न केवल अपनी बल्कि अपने छोटे भाइयों की पढ़ाई करवा रहा है, वहीं घर के खर्च में भी हाथ बंटा रहा है।

मैं जिंदगी में क्या बनूंगा पता नहीं, भाइयों को कुछ न कुछ जरूर बनाऊंगा

पंजाब केसरी से बातचीत के दौरान आदित्य ने कहा कि मुझे नहीं पता कि मैं जिंदगी में क्या बनूंगा लेकिन इतना जरूर है कि मैं मेहनत करके अपने भाइयों को कुछ न कुछ जरूर बनाऊंगा। उसने कहा कि मेरे कुछ दोस्त मुझ पर हंसते हैं लेकिन मुझे इस बात से कोई फर्क नहीं पड़ता। भीख मांगने में शर्म होती है, मेहनत करने में नहीं। उसने कहा कि अखवारों व सोशल मीडिया पर बच्चों की नि:शुल्क पढ़ाई करवाने की बातें करने वाले उनके पास कभी नहीं आए। मैं व मेरे भाई 2 साल घर में बैठे रहे। हमारी कालोनी में हमारे जैसे अनेक बच्चे हैं जो आर्थिक तंगी के चलते पढ़ नहीं पा रहे हैं। आज तक उनके पास शिक्षा की लौ दिखाने वाला कोई नहीं आया।

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