Edited By Vijay, Updated: 17 Jan, 2025 05:01 PM
ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर सर्दियों के दिनों में बिच्छू बूटी अर्थात भाभर का साग खाने की प्रथा कालांतर से चली आ रही है। सर्दियों में भाभर का साग खाने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है....
शिमला (अम्बादत्त): ग्रामीण क्षेत्रों में विशेषकर सर्दियों के दिनों में बिच्छू बूटी अर्थात भाभर का साग खाने की प्रथा कालांतर से चली आ रही है। सर्दियों में भाभर का साग खाने से शरीर की प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है, जिससे कोई बीमारी लगने का भय नहीं रहता है। बिच्छू बूटी का साग बहुत ही स्वादिष्ट होने के साथ-साथ इसकी ताहसीर गर्म होती है जिससे शरीर में ठंड का प्रकोप कम होता है।
बता दें कि बिच्छू बूटी का साग पहाड़ी व्यंजनों में से एक है और इसके साग का जायका और स्वाद अनूठा होता है। बिच्छू बूटी को जहां ग्रामीण क्षेत्रों में छोटे बच्चों को डराने के लिए इस्तेमाल किया जाता है, वहीं भाभर में विटामिन सी और खनिज तत्व प्रचुर मात्रा में पाए जाते हैं। सबसे अहम बात यह है कि बिच्छू बूटी को उगाया नहीं जाता बल्कि स्वतः ही यह बूटी खेत-खलिहान और बंजर भूमि पर उगी होती है।
ज्योतिषविदों का मानना है कि शनि की दशा में बिच्छू बूटी की जड़ को विशेष मुहूर्त में पहनने से शनि का प्रकोप कम हो जाता है। पीरन गांव के वरिष्ठ नागरिकों दया राम वर्मा और दौलत राम मेहता का कहना है कि सर्दियों में उनके घर पर अतीत से बिच्छू बूटी का साग प्रायः बनाया जाता है क्योंकि सर्दियों में मक्की की रोटी के साथ साग बहुत ही स्वादिष्ट लगता है। आयुर्वेद चिकित्सक डाॅ. विश्वबंधु जोशी ने बताया कि बिच्छू बूटी का वैज्ञानिक नाम अर्टिका डाइओका है। इसकी सबसे अधिक खेती अफ्रीका, यूरोप, एशिया और उत्तरी अमेरिका में की जाती है।
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