यहां अपवित्र करने पर सूख जाता है बावड़ी का पानी

Edited By kirti, Updated: 30 Jul, 2018 12:52 PM

the water of the bowl is dried when it is defiled here

देवी-देवताओं की भूमि कुल्लू घाटी में अजीबो-गरीब किस्से सुनने को मिलते हैं। सुनने में जरूर अटपटा लगता है, लेकिन है 100 फीसदी सच। देव घाटी में देवी-देवताओं के अनेक जल स्रोत भी हैं, जहां से देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के लिए जल का इस्तेमाल किया जाता...

कुल्लू : देवी-देवताओं की भूमि कुल्लू घाटी में अजीबो-गरीब किस्से सुनने को मिलते हैं। सुनने में जरूर अटपटा लगता है, लेकिन है 100 फीसदी सच। देव घाटी में देवी-देवताओं के अनेक जल स्रोत भी हैं, जहां से देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना के लिए जल का इस्तेमाल किया जाता है। वहीं देव आस्था पर विश्वास करने वाले लोग देवी-देवताओं के जल स्रोत को तीर्थ स्थान मानते हैं, लेकिन देवी-देवताओं के जल स्रोतों का इस्तेमाल करने पर इसके लिए अलग से नियम भी हैं। इन देव नियमों को भंग करने पर भारी नुक्सान भी झेलना पड़ता है। ऐसा ही एक देवी-देवताओं का जल स्रोत जिला मुख्यालय से सटी खराहल घाटी के कोहना मलाणा तांदला में सदियों से लोगों की प्यास बुझा रहा है। देवता शुकली नाग के मंदिर के समीप प्राकृतिक बावड़ी देव स्थल सुहाणी बेहड़ है। इस बावड़ी का जल पवित्र माना जाता है। इस शेर मुखी बावड़ी के जल को पीने और इससे स्नान करने से कई बीमारियां ठीक होती हैं।

बरसात हो या सूखा, नहीं घटता-बढ़ता स्रोत का पानी
देवलुओं के अनुसार यहां सूखा हो या फिर बरसात, इस बावड़ी का पानी सामान्य रहता है। दैवीय चमत्कार से इस बावड़ी का पानी कभी घटता-बढ़ता नहीं है, लेकिन अगर इस बावड़ी के पानी को इस्तेमाल करने वाले लोगों ने देव नियम भंग किया तो इस बावड़ी का पानी पूरी तरह से सूख जाता है, ऐसे में हारियान क्षेत्र के लोग एकत्रित होकर देवता को गूर से माध्यम से पूछते हैं। देवता गूर से माध्यम से पानी निकालने का समाधान बता देता है और देव कार्य नहीं करने पर हारियान क्षेत्र में अनहोनी होने का संकेत भी देता है। देव आदेश को मानकर देवलू देव विधि अनुसार कार्य करते हैं।

हवन-पाठ करने पर दोबारा निकल आता है पानी
खराहल घाटी के तांदला स्थित प्राकृतिक बावड़ी में देव विधि अनुसार हवन-पाठ और कन्या पूजन करने पर सूखी बावड़ी में दोबारा पानी निकल आता है। देवलुओं के अनुसार हवन-पाठ के तीसरे या फिर 9वें दिन अपने आप ही जल स्रोत फूट पड़ता है। इस तरह का दैवीय प्रकोप कुछ साल पहले हुआ था। जब प्राकृतिक स्रोत को लोगों ने अपवित्र कर दिया था, ऐसे में देवलू इस प्राकृतिक बावड़ी के पानी की पवित्रता बनाए रखते हैं।

नल के पानी से पूजा करने पर मिलता है दंड 
कोहना-मलाणा कहलाए जाने वाले तांदला में अगर कोई नल के जल से देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना करता है तो देवता देव दंड देता है, जिससे पूजा-अर्चना का फल भक्तों को नहीं मिलता है। माना जाता है कि यहां देव शुकली नाग, देवी दशमी वारदा, देव थिरमल नारायण और अनेक देवी-देवताओं की पूजा-अर्चना इस बावड़ी के पानी से ही होती है, ऐसे में देवलुओंं को इस बावड़ी के पानी को पवित्र रखना पड़ता है। 
 

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