Solan: नौणी विश्वविद्यालय व एचआईएल ने भारत में प्राकृतिक खेती को आगे बढ़ाने के लिए बनाई सांझेदारी

Edited By Kuldeep, Updated: 06 Jan, 2025 07:15 PM

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डॉ. यशवंत सिंह परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी और हिंदुस्तान इंसेक्टिसाइड्स लिमिटेड (एचआईएल) ने भारत में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयूू) पर हस्ताक्षर किए हैं।

सोलन (ब्यूरो): डॉ. यशवंत सिंह परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी और हिंदुस्तान इंसेक्टिसाइड्स लिमिटेड (एचआईएल) ने भारत में प्राकृतिक खेती को बढ़ावा देने के लिए समझौता ज्ञापन (एमओयूू) पर हस्ताक्षर किए हैं। यह एमओयूू वैश्विक पर्यावरण सुविधा (जीईएफ) और संयुक्त राष्ट्र औद्योगिक विकास संगठन (यूएनआईडीओ) के क्षेत्रीय चाइल्ड परियोजना, जो भारत में फोस्टरिंग एग्रो कैमिकल रिडक्शन एंड मैनेजमैंट पहल के माध्यम से कृषि रसायन के उपयोग को कम करने और प्रबंधित करने पर केंद्रित है के संयुक्त कार्यान्वयन के लिए किया गया है।

एचआईएल, भारत सरकार के रसायन और उर्वरक मंत्रालय के तहत एक सार्वजनिक क्षेत्र का उपक्रम है, जो कृषि रसायन, बीज और पानी में घुलनशील उर्वरक बनाता है। यह सांझेदारी देश में प्राकृतिक कृषि पद्धतियों को सक्रिय रूप से बढ़ावा देने के लिए पारंपरिक रूप से कृषि रसायनों और उर्वरकों के उत्पादन में शामिल एक कंपनी के अग्रणी प्रयास का प्रतीक है।

इस एमओयू पर नौणी विवि के कुलपति प्रोफैसर राजेश्वर सिंह चंदेल और एचआईएल के अध्यक्ष और प्रबंध निदेशक कुलदीप सिंह ने हस्ताक्षर किए। फार्म परियोजना का प्राथमिक लक्ष्य रासायनिक कीटनाशकों के लिए सुरक्षित विकल्प प्रदान करना और भारत के कृषक समुदायों के बीच प्राकृतिक खेती सहित एकीकृत कीट प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देना है। इस पहल का लक्ष्य 1.5 मिलियन हैक्टेयर कृषि भूमि को पारंपरिक रासायनिक खेती से जैविक/प्राकृतिक खेती के तरीकों में परिवर्तित करना और 1.5 मिलियन लोगों को हानिकारक कीटनाशकों के संपर्क से बचाना है।

प्रोफैसर चंदेल ने इस अवसर को विश्वविद्यालय के लिए एक ऐतिहासिक क्षण बताया और प्राकृतिक खेती और कृषि पारिस्थितिकी में विश्वविद्यालय की भूमिका पर जोर दिया। उन्होंने एचआईएल के साथ सांझेदारी के बारे में उत्साह व्यक्त किया और कहा कि यह सहयोग कृषि में रासायनिक उपयोग को कम करने और राष्ट्रव्यापी कार्यान्वयन के लिए पायलट मॉडल विकसित करने में महत्वपूर्ण योगदान देगा। भारत में यह परियोजना 10 राज्यों में कई फसलों को कवर करेगी।

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