प्रदेश के सैकड़ों निजी कॉलेजों में नियमों को ताक पर रखकर नियुक्त किए प्रिंसिपल : राणा

Edited By prashant sharma, Updated: 17 Jan, 2021 04:08 PM

principal appointed in hundreds of private colleges by following rules rana

निजी शिक्षा को भ्रष्टाचार का कारोबार बना चुकी बीजेपी सरकार के राज में अब सैकड़ों निजी कॉलेजों में अयोग्य प्रिंसिपल तैनात करने का खुलासा हुआ है।

हमीरपुर : निजी शिक्षा को भ्रष्टाचार का कारोबार बना चुकी बीजेपी सरकार के राज में अब सैकड़ों निजी कॉलेजों में अयोग्य प्रिंसिपल तैनात करने का खुलासा हुआ है। प्राइवेट एजुकेशन रेगुलेटरी कमीशन की रिपोर्ट बता रही है कि प्रदेश में कार्यरत सैकड़ों कॉलेजों के प्रिंसिपलों की नियुक्ति नियमों को ताक पर रखकर की गई है। यह बात राज्य कांग्रेस उपाध्यक्ष एवं विधायक राजेंद्र राणा ने यहां जारी प्रेस बयान में कही है।

उन्होंने कहा कि प्रदेश में चल रहे निजी कॉलेजों के प्रिंसिपल की ही अपनी शैक्षणिक योग्यता पूरी नहीं है, तो ऐसे में निजी शिक्षा के नाम पर प्रदेश में अभिभावकों की जेबों पर डाका डालने वाले इन कॉलेजों में पढ़ाई का स्तर क्या होगा यह प्रिंसिपलों की योग्यता से ही तय हो जाता है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में चल रहे निजी कॉलेजों के प्रिंसिपलों का सर्विस प्रोफाइल ही शक और संदेह के घेरे में है। अनेक प्रिंसिपल तो अपनी शैक्षणिक योग्यता ही पूरी नहीं करते हैं। जबकि प्राइवेट एजुकेशन रेगुलेटरी कमीशन को भेजी गई रपट में कई प्रिंसिपलों की नियुक्ति को लेकर दिया गया ब्यौरा ही आधा-अधूरा है। 

100 से ज्यादा निजी कॉलेजों ने अभी तक रेगुलेटरी कमीशन के पास अपना रिकॉर्ड भेजा है। जिनमें से 75 कॉलेजों के रिकॉर्ड की जांच हो चुकी है। इन 75 कॉलेजों में आधे से ज्यादा प्रिंसिपल अयोग्य पाए गए हैं। निजी डिग्री, टेक्निकल, पॉलिटेक्निकल, इंजीनियरिंग, मेडिकल, लॉ, फॉर्मेसी, नर्सिंग और बीएड कॉलेजों में अधिकांश प्रिंसिपल अयोग्य पाए गए हैं। यूजीसी नियमों के मुताबिक प्रिंसिपल नियुक्त होने के लिए पीएचडी की डिग्री के साथ 15 सालों तक पढ़ाने का अनुभव जरूरी है। मास्टर डिग्री में कम से कम 55 फीसदी से ज्यादा अंक होने जरूरी हैं। इसी के साथ 70 वर्ष से अधिक आयु की सीमा भी लगी हुई है। लेकिन सत्ता संरक्षण में चले भ्रष्टाचार के कारण अधिकांश कॉलेजों में प्रिंसिपलों की नियुक्ति में भारी धांधलियां पाई गई हैं।

उन्होंने कहा कि इतना ही नहीं अनेक कॉलेजों ने रेगुलेटरी कमीशन को अपना प्रिंसिपल की नियक्ति का रिकॉर्ड भेजा ही नहीं है। जो कि सत्ता संरक्षण के कारण बेखौफ बने हुए हैं। अभिभावकों से भारी भरकम फीस वसूलने वाले यह निजी कॉलेज शिक्षा के नाम पर अब लूट का अड्डा बन कर रह गए हैं। जबकि प्रदेश में चल रहे हजारों निजी स्कूलों की भी यही स्थिति है। राणा ने सवाल खड़ा किया है कि जब सरकार का निजी स्कूलों की शिक्षा की गुणवत्ता पर कोई नियंत्रण ही नहीं है तो सरकार ऐसे में शिक्षा की गुणवत्ता की वकालत किस मुंह से कर रही है। लाखों फर्जी डिग्रियां बेचने के मामले में पहले ही प्रदेश देश और दुनिया में काफी बदनाम हो चुका है। ऐसे में अब निजी कॉलेजों में भी नियमों को ताक पर रखकर नियुक्त किए गए प्रिंसिपलों का मामला भी सत्ता संरक्षण में चले भ्रष्टाचार का खुलासा कर रहा है।
 

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