Edited By Kuldeep, Updated: 26 May, 2025 05:49 PM

धान उत्पादन के क्षेत्र में वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता प्राप्त हुई है। धान की फसल पर अपना प्रभाव से उत्पादन को प्रभावित करने वाले ब्लास्ट रोग के प्रतिरोधी दो धान की किस्म को विकसित करने में कृषि वैज्ञानिक सफल हुए हैं।
पालमपुर (भृगु): धान उत्पादन के क्षेत्र में वैज्ञानिकों को बड़ी सफलता प्राप्त हुई है। धान की फसल पर अपना प्रभाव से उत्पादन को प्रभावित करने वाले ब्लास्ट रोग के प्रतिरोधी दो धान की किस्म को विकसित करने में कृषि वैज्ञानिक सफल हुए हैं। कृषि विश्वविद्यालय इस सारी कवायद का सूत्रधार बना है। कृषि विश्वविद्यालय के अंतर्गत मलां स्थित धान व गेहूं अनुसन्धान केन्द्र के वैज्ञानिकों ने धान की ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी व अधिक उत्पादन वाली दो किस्में विकसित की हैं। इन उच्च उपज देने वाली किस्मों को कई वर्षों की गहन अनुसंधान प्रक्रिया, सतत् परीक्षण और किसानों की भागीदारी से विकसित किया गया है। उच्च उपज क्षमता, कम अवधि में परिपक्वता, ब्लास्ट रोग प्रतिरोधक क्षमता तथा किसानों व बाजार के अनुरूप गुणवत्ता इन नई किस्मों की विषेशताएं हैं।
धान की फसल का प्रमुख रोग है ब्लास्ट रोग
धान हिमाचल प्रदेश की प्रमुख फसल है और इसकी खेती प्रदेश के 10 जिलों में की जाती है। प्रदेश में धान उत्पादन बढ़ाने में मुख्य बाधा धान का ब्लास्ट रोग है जो फफूंद प्रजाति के जीवाणू मैग्नापोर्थे ग्रीसिया द्वारा होता है। ब्लास्ट रोग पत्तों, तनों व धान की बालियों की कोशिकाओं को संक्रमित करता है जिससे धान की पैदावार कम हो जाती है। धान में ब्लास्ट रोग एक फफूंद जनित रोग है जो पत्तियों, तने और बालियों को प्रभावित करता है, जिससे उपज में कमी आती है. यह रोग पत्तियों पर भूरे या स्लेटी रंग के धब्बे और तने पर घने घाव पैदा करता है। रोग के लक्षण उभरने पर पत्तियों पर भूरे या स्लेटी रंग के धब्बे, खासकर पत्तियों के किनारों पर यह चिन्ह उभरते हैं वहीं तने पर घने घाव या धब्बे दिखते हैं। जबकि प्रभावित बालियां भूरे या काले रंग की हो जाती हैं। जैसे-जैसे घाव परिपक्व होते हैं, वे बड़े होते जाते हैं और उनका केंद्र धूसर हो जाता है तथा किनारे गहरे भूरे से लेकर लाल-भूरे रंग के हो जाते हैं। गंभीर मामलों में, घाव आपस में मिल सकते हैं, जिससे पत्ती पूरी तरह मर सकती है।
इन किस्मों के दाने बासमती की तरह लम्बे व पतले होते हैं
वैज्ञानिकों ने धान की ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी व अधिक उत्पादन वाली जो दो किस्में विकसित की हैं, उन्हें प्रदेश एवं देश की संस्तुति समितियां द्वारा हिमाचल प्रदेश व उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों के लिए अनुमोदित किया जा चुका है। दोनों ही किस्में 120-130 दिनों में पक कर तैयार हो जाती हैं। पहली किस्म हिम पालम धान-3 यानी कि एच पी आर-2865 है जो औसतन 38-40 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है। इसके दाने लम्बे व मोटे होते हैं। यह मध्यम ऊंचाई वाली किस्म है। दूसरी किस्म हिम पालम धान-4 एच पी आर-3201 है। यह किस्म औसतन 40-42 क्विंटल प्रति हैक्टेयर उपज देती है। यह भी मध्यम ऊंचाई वाली किस्म है। इसके दाने बासमती की तरह लम्बे व पतले होते हैं।
कृषि विश्वविद्यालय कुलपति पालमपुर प्रो. नवीन कुमार का कहना है कि ये किस्में उन्नत तकनीकों और किसानों की जरूरत पर आधारित है। ये किस्में प्रदेश की खाद्य सुरक्षा के अतिरिक्त प्रदेश के किसानों की आय बढ़ाने में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाएंगी। चूंकि यह किस्में ब्लास्ट रोग प्रतिरोधी हैं, इनकी खेती से ब्लास्ट रोग के निदान के लिए प्रयोग किए जाने वाले रसायनों के प्रयोग में भी भारी कमी आएगी।