कई सांसे उखड़ीं, कई मरीज काल का ग्रास बने, लेकिन पैकिंग से बाहर नहीं निकला वैंटिलेटर

Edited By Jinesh Kumar, Updated: 09 Jun, 2021 11:05 AM

many breathed out many patients became dead

किसी भी ऐसे मरीज जिसकी सांसें उखडऩा शुरू हो जाएं तथा उसको बचाने के लिए वैंटीलेटर जैसे स्वास्थ्य उपकरण की अति जरूरत हो तथा ऐसा उपकरण गत करीब 4 साल से किसी प्रमुख अस्प्ताल के भीतर पैकिंग से ही नहीं निकल पाया हो तो इसे किसी की जिंदगी से खिलवाड़ ही कहा...

नूरपुर (राकेश भारती): किसी भी ऐसे मरीज जिसकी सांसें उखडऩा शुरू हो जाएं तथा उसको बचाने के लिए वैंटीलेटर जैसे स्वास्थ्य उपकरण की अति जरूरत हो तथा ऐसा उपकरण गत करीब 4 साल से किसी प्रमुख अस्प्ताल के भीतर पैकिंग से ही नहीं निकल पाया हो तो इसे किसी की जिंदगी से खिलवाड़ ही कहा जाएगा। लचर स्वास्थ्य व्यवस्थाओं का यह संजीव मामला है 200 बैड वाले नूरपुर के उपमंडलीय अस्पताल का जहां करीब 4 साल पहले यह अति उपयोगी उपकरण उस समय आया था जब यहां आई.सी.यू. के सामान्य व चिल्ड्रन वार्ड बनाए गए थे। बता दें कि किसी भी आई.सी.यू. में यह उपकरण अति उपयोगील व जरूरी होता है ताकि गंभीर किस्म के रोगी का जीवन इस उपकरण से बचाया जा सके। हाल ही में यहां पर इस अस्पताल में एक कोविड उपचार केंद्र भी खोला गया है जहां भी सांस उखड़ने के रोगी को इस प्रकार के उपकरण की भारी जरूरत रहती है। बावजूद इसके यहां वैंटिलेटर उपलब्ध होने पर भी नहीं लगाया गया।
पूर्व विधायक अजय महाज ने कहा कि हमारे शासन काल में इस अस्पताल में सामान्य व चिल्ड्रन आई.सी.यू. कक्ष स्थापित किए गए थे तथा इनके लिए वैंटिलेटर उपकरण भी उपलब्ध हुआ था, जिसे लगाए जाने से पूर्व प्रदेश में सत्ता परिवर्तन हो गया तथा तब से आज तक यह कीमती उपकरण जो किसी भी गंभीर रोगी की जान बचाने के काम आता है स्थापित ही नहीं किया जा सका। यह अत्यंत खेदजनक बात है। हाल ही में इस क्षेत्र के अनेक मरीजों को टांडा व अन्य अस्पतालों में यहां से इसलिए रैफर करना पड़ा क्योंकि इस अस्पताल इस प्रमुख उपकरण का अभाव था। यहां से रैफर किए गए मरीजों ने जब निजी अस्पतालों में इलाज करवाया तो उन्हें लाखों का खर्च उठाना पड़ा। रैहन के समीप गोलवां गांव के एक मरीज हरबंस सिंह हो गत 20 दिन से एक निजी अस्पताल में दाखिल हैं के परिजनों का बिल 12 लाख से ऊपर जा चुका है।

अभी भी वह वैंटिलेटर के सहारे जिंदगी व मौत की जंग लड़ रहा है तथा परिवार के पास बिल चुकाने के लिए धन नहीं है। इस अस्पताल में अनेक विशेषज्ञ तथा स्त्री रोग डाक्टर की कमी कारण लोगों को कोविड काल में भी बाहर के अस्पतालों में भागना पड़ रहा है। वहीं  सी.एम.ओ. कांगड़ा डा. गुरदर्शन गुप्ता का कहना है कि यह प्रमुख स्वास्थ्य उपकरण 4 साल पहले इस अस्पताल में आने के बावजूद क्यों स्थापित नहीं हो सका इसका जवाब मैं नहीं दे सकता क्योंकि उस समय मेरे पास सी.एम.ओ. का जार्च नहीं था। हाल ही में मैंने इस अस्पताल का दौरा किया था तथा ज्ञात हुआ था कि यह उपकरण अभी तक बंद पड़ा है। वास्तव में इस उपकरण को चलाने के लिए 24 घंटे दक्ष स्टाफ की जरूरत रहती है तथा इसे स्टाफ के अभाव के कारण संभवत: स्थापित नहीं किया जा सका।

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