राजा हरिचन्द ने करवाया निर्माण इसलिए नाम पड़ा हरिपुर गुलेर

Edited By prashant sharma, Updated: 25 Apr, 2021 12:20 PM

king harichand got the construction done hence the name haripur guler

हरिपुर गुलेर.... नाम सुनते ही खुद व खुद लोगों का ध्यान राजाओं महाराजाओं की ओर चला जाता है और ऐसा हो भी क्यों न.. नाम ही ऐसा जिसकी पहचान भी इसी से है। यूं तो प्रदेश में अन्य जिलों में हरिपुर नाम के स्थान मौजूद हैं लेकिन जिला कांगड़ा की इस विख्यात नगरी...

कांगड़ा (गगन कुमार) : हरिपुर गुलेर.... नाम सुनते ही खुद व खुद लोगों का ध्यान राजाओं महाराजाओं की ओर चला जाता है और ऐसा हो भी क्यों न.. नाम ही ऐसा जिसकी पहचान भी इसी से है। यूं तो प्रदेश में अन्य जिलों में हरिपुर नाम के स्थान मौजूद हैं लेकिन जिला कांगड़ा की इस विख्यात नगरी की पहचान अपने आप में अलग है। हरिपुर का नाम जैसे गुलेर के बिना अधूरा है वैसे ही गुलेर भी हरिपुर के बिना अधूरा। हरिपुर गांव इससे पूर्व जसवां गुलेर, डाडासीबा, दतारपुर के गांव व कांगड़ा रियासत के भागों में से एक हुआ करता है जहां पर कटोच राजपूत राज किया करते थे। हरिपुर गुलेर के बारे में पूर्वजों के कथानुसार व प्रचलित कहानी इस प्रकार से बताई जाती है कि कांगड़ा के राजा हरिचंद ने एक दिन शिकार खेलने के लिए दूण के जंगलों का रूख किया जहां पर अपने दरबारियों से बिछुड़ गए तथा घास फूस से भरे एक कुएं में गिर गए। कुछ दिन बाद उसी कुएं के पास एक व्यापारी ने अपने काफिले के साथ डेरा जमाया। काफिले के लोग पानी भरने के लिए कुएं के पास आए तो उन्हें आवाज सुनाई दी। काफिले के मुखिया ने उन्हें कुएं से बाहर निकाला। कहा तो यह भी जाता था कि राजा कुएं के अंदर 28 दिन तक संघर्ष करते रहे। कुछ दिनों के बाद जब राजा वापस कांगड़ा गए तो वहां पर उनको मृत समझ कर उनके छोटे भाई को गद्दी पर बैठा दिया गया था। राजा हरिचंद वापस वहां से लौट आए। हरिचंद ने बनेर खड्ढ के किनारे पर प्राकृतिक सौंदर्य सम्पन्न स्थान पर एक कस्बे का निर्माण करवाया तथा इसका नाम हरिपुर रखा यानि हरिचंद ने नाम से बसाया गया हरिपुर गुलेर।

गुलेर को ग्वालियर के नाम से भी था जाना जाता

गुलेर रियासत की राजधानी हरिपुर एक सर्व सम्पन्न राजधानी थी। गुलेर का प्राचीनतम नाम ग्वालियर था जिसका वर्णन मुगलों के ऐतिहासिक लेखों में आज भी पढ़ा जा सकता है। तारीक-ए-मुबारिक शाही, तवक्कत-ए-अकबर, तररीक-ए-दाऊदी, अकबर नाम, तुजाक-ए-जहांगीर इत्यादी लेखों में गुलेर को ग्वालियर कहा गया है क्योंकि भौगौलिक रुप से गुलेर व हरिपुर ग्वालियर से मिलता-जुलता है। कुछ लोगों का यह भी मानना है कि गुलेर नाम ग्वालियर के नाम पर पड़ा था जिसने राजा को किला बनाने के लिए एक स्थान बताया जहां बाघ व बकरी एक साथ पानी पीते थे।

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नागरिक सुरक्षा के साथ-साथ सभ्यता व संस्कृति पर भी दिया ध्यान

राजा हरिचंद ने अपने शासनकाल में नागरिक सुरक्षा के अतिरिक्त, सभ्यता संस्कृति, धार्मिक आस्था व जलापूर्ति पर विशेष ध्यान दिया। प्रमाण स्वरूप हरिपुर गुलेर में अनेक शहर द्वार, मंदिर, कुएं व बावड़ियां प्राचीन राजाओं के शासकीय प्रबंधन को बयान करती हैं। हरिपुर गुलेर में लगभग 365 प्राचीन छोटे बड़े मंदिर, तालाब, कुएं व बावड़ियों का निर्माण करवाया, जिसमें मुख्य रूप से चैगान का गोवर्धनधारी मंदिर, सरस्वती मंदिर, धूड़ूबाबा मंदिर, कल्याण राय मंदिर, राज महल के निकट तारारानी मंदिर, शिव मंदिर, सत्यनारायण मंदिर, राममंदिर सहित अन्य मंदिरों की कहानियां राजा व रानियों से जुड़ी हैं ।

राजा हरिचन्द के बसाए शहर की धरोहरें हो रही खंडहर

कांगड़ा जिला की प्राचीन ऐतिहासिक नगरी हरिपुर को देखकर आभास होता है कि कल बस्ती थी दुनिया जहां आज नजर अंदाजगी की वजह से हो रहा मातम वहां। 1398 से 1405 के बीच राजा हरिचंद द्वारा बसाया गया शहर आज पुराने खण्डहरों का शहर बन चुका है लेकिन उस जमाने के विशाल भवन मन्दिर तालाब, कुुएं, बावड़ियां आज भी गले-सड़े कागज के पन्नों की तरह खण्डित रुप में विद्यमान हैं। अनमोल इतिहास के पृष्ठ जो राजा लोग इस पवित्र नगरी में उस जमाने के गरीब लोगों के खून पसीनें से लिख चुके हैं। उनको वर्तमान समय के शासक सम्भाल नहीं सके।

विद्वान, ज्योतिष शास्त्री,से लेकर वैद्य, हकीम तक का था यहां निवास

पवित्र बाण गंगा (बनेर) नदी के किनारे बसे इस पुराने शहर में बड़े-2 प्रकांण्ड विद्वान, ज्योतिष शास्त्री, चिकित्सक, वैद्य, हकीम संगीतकार तथा लेखक निवास करते थे जिनके कारण लोग इसे छोटी काशी भी कहते थे। इस नाम की सार्थकता यहां के विशाल मंदिरों के खण्डहरों बड़े-2 तालाबों, पाण्डवों के समय की पण्डूखर बावड़ी व बड़ी-2 गुफाओं से भी सिद्ध होती है। धार्मिक महत्व के साथ-2 इस शहर का व्यापारिक व औद्योगिक महत्व भी उतना ही था। उतरी भारत की उस जमाने की सोना ढालने की भट्टियां भी इसी शहर की पुराने बाजार में थीं। विवाह शादियों में प्रयुक्त किए जाने वाले सेहरे पूरे उतरी भारत में मशहूर थे। हिमाचल प्रदेश के निचले भागों में गाया जाने वाला गीत सेहरा ता बणया हरिपुरे दा आज भी विवाह शादियों में गाया जाता है।

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आधुनिकता के दौर में हरिपुर में क्या है कमी

हरिपुर के वरिष्ठ नागरिक रामेश्वरी लाल, विजय महाजन, चिरंजी लाल, देसराज, ज्योति आदि बुद्धिजीवियों व धरोहरप्रेमियों ने बताया कि यहां की प्राचीन धरोहरें जिनकी अपने आप में विशेष महत्व है इनका सरंक्षण अति आवश्यक है ताकि हरिपुर की जो पहचान पुराने समय से है वो पर्यटन की दृष्टि से भी विकसित हो।

अभी तक नहीं मिली तहसील भवन को बनाने के लिए जमीन

ओम प्रकाश, ज्ञान चंद, कुलदीप चंद, रमेश अवस्थी आदि लोगों कहना है कि हरिपुर में अभी तक तहसील भवन का निर्माण नहीं किया जा सका इसको जल्द बनाया जाना चाहिए। लोगों का कहना है कि मुख्यमंत्री जयराम ठाकुर ने हरिपुर को तहसील बनाने की घोषणा होने के बाद ढेढ़ साल बीत जाने के बाद भी अपना भवन नसीब नहीं हो सका है। फिलहाल तहसील को कानूनगों हट में चला जा रहा है। जहां पर नायब तहसील बिठा दिया गया। लोगों का कहना है कि सरकार द्वारा तहसील का दर्जा देने के बाद भी अभी तक सरकार ने तहसीलदार नहीं नियुक्त किया है।

सार्वजनिक शौचालय की दरकार

गांव के कुछ लोगों का कहना है कि हरिपुर में सार्वजनिक शौचालय की भी दरकार है। यहां बाजार में आने वाले वाले लोगों को इसकी कमी खलती है। लोगों का कहना है कि यहां कई पर्यटक भी गुलेर रियासत को देखने को आते है लेकिन शौचालय की व्यवस्था न होने के कारण यहां से मुंह मोड़ लेते हैं।

नगर पंचायत बनाने की रखी है लोगों ने मांग

हरिपुर को नगर पंचायत बनाए जाने की भी मांग की जा रही है। जिसके चलते यहां कुछ सुविधाएं लोगों को मिल सकती है। इसके अतिरिक्त स्थानीय लोगों का कहना है कि कूड़े कचरे के निष्पादन भी कोई प्रबन्ध नहीं है जिसके कारण लोग घरों की गंदगी नालों के हवाले करते हैं जोकि कि वातावरण को दूषित करने के साथ गांव की सुंदरता को भी ग्रहण लगाती है।

पार्किंग की समस्या

यहां पार्किंग की भी समस्या देखी जाती है। इसके अतिरिक्त यहां से दूर दराज के इलाकों के लिए कुछ बसों की भी भी कमी है जिसके चलते कई लोग यहां आ नहीं पाते तथा इस कस्बे के दीदार नहीं कर पाते। वहीं बाहर से आने वाले लोग यहां की सड़कों की खराब हालत को लेकर दोवारा यहां आने से तौबा करते हैं। क्योंकि चकाचक सड़क सुविधा से यह इलाका अभी काफी पीछे है।

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