हिमाचल में दुबले-पतले लोग भी हो रहे 'अंदरूनी मोटापे' के शिकार! कहीं आप भी तो नहीं चपेट में?

Edited By Jyoti M, Updated: 15 Jul, 2025 10:19 AM

in himachal even the thin people are becoming victims of  internal obesity

हिमाचल प्रदेश, जिसे अक्सर अपनी पहाड़ी जीवनशैली के कारण स्वस्थ माना जाता है, अब मोटापे और संबंधित बीमारियों की चपेट में आ रहा है। एक नए राष्ट्रीय अध्ययन ने चौंकाने वाले आँकड़े सामने रखे हैं, जो बताते हैं कि दुबले-पतले दिखने वाले लोग भी अंदरूनी मोटापे...

हिमाचल डेस्क। हिमाचल प्रदेश, जिसे अक्सर अपनी पहाड़ी जीवनशैली के कारण स्वस्थ माना जाता है, अब मोटापे और संबंधित बीमारियों की चपेट में आ रहा है। एक नए राष्ट्रीय अध्ययन ने चौंकाने वाले आँकड़े सामने रखे हैं, जो बताते हैं कि दुबले-पतले दिखने वाले लोग भी अंदरूनी मोटापे का शिकार हो रहे हैं, जिससे वे गंभीर बीमारियों की गिरफ्त में आ रहे हैं।

भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद-भारत मधुमेह (आईसीएमआर-आईएनडीआईएबी) द्वारा किए गए इस राष्ट्रव्यापी अध्ययन में हिमाचल प्रदेश के आँकड़े विशेष रूप से चिंताजनक हैं। अध्ययन के अनुसार, हिमाचल में मोटापा और मधुमेह दोनों ही राष्ट्रीय औसत से 3 प्रतिशत अधिक हैं। इस महत्वपूर्ण शोध अध्ययन में देश भर के कई विशेषज्ञ शामिल थे, जिनमें आईजीएमसी शिमला के मेडिसिन विभाग के प्रोफेसर डॉ. जितेंद्र मोक्टा भी प्रमुखता से मौजूद थे।

अध्ययन के नतीजे बताते हैं कि हिमाचल प्रदेश में 39 प्रतिशत लोग मोटापे से ग्रस्त हैं, जबकि राष्ट्रीय स्तर पर यह आँकड़ा 28.6 प्रतिशत है। यह स्थिति और भी गंभीर हो जाती है जब हम पेट के मोटापे की बात करते हैं। हिमाचल के मोटे लोगों में से 55 प्रतिशत में पेट का मोटापा देखा गया है, जो राष्ट्रीय औसत 39.5 प्रतिशत से काफी अधिक है। चिंताजनक रूप से, हिमाचल पेट के मोटापे के मामले में देश का चौथा सबसे खराब प्रभावित राज्य बन गया है।

मधुमेह के मोर्चे पर भी हिमाचल की स्थिति चिंताजनक है। राज्य में 11.5 प्रतिशत लोग मधुमेह से पीड़ित हैं, और इससे भी अधिक चिंताजनक बात यह है कि 18 प्रतिशत लोग प्री-डायबिटिक हैं। इसका मतलब है कि इन व्यक्तियों में अगले 10 वर्षों में मधुमेह विकसित होने की 50 प्रतिशत संभावना है। यह आँकड़ा भविष्य में मधुमेह के मामलों में तीव्र वृद्धि की ओर इशारा करता है।

अध्ययन ने लोगों की शारीरिक गतिविधियों पर भी प्रकाश डाला है। यह पाया गया कि हिमाचल के 61 प्रतिशत लोग शारीरिक रूप से निष्क्रिय हैं, जबकि केवल 5 प्रतिशत ही अत्यधिक सक्रिय हैं। देश की वयस्क आबादी के 43 प्रतिशत से अधिक लोग इसी निष्क्रिय श्रेणी में आते हैं। शारीरिक निष्क्रियता न केवल टाइप-2 मधुमेह और गुर्दे की गंभीर बीमारी जैसे गंभीर रोगों के बढ़ते जोखिम से जुड़ी है, बल्कि इसे अक्सर पहचानना मुश्किल होता है क्योंकि इन व्यक्तियों में मोटापे के आसानी से पहचानने योग्य बाहरी लक्षण नहीं दिखते हैं। ऐसे मामलों में विशेष स्क्रीनिंग टेस्ट ही एकमात्र तरीका है जिससे अंदरूनी मोटापे और संबंधित स्वास्थ्य समस्याओं का पता लगाया जा सकता है। यह व्यापक अध्ययन देश के 31 राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के शहरी और ग्रामीण क्षेत्रों में कुल 1,13,043 लोगों पर किए गए सर्वेक्षण पर आधारित है।

विशेषज्ञों का मानना है कि बदलती खाने की आदतें और तेजी से बढ़ती गतिहीन जीवनशैली इन स्वास्थ्य विकारों के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार हैं। जैसे-जैसे लोगों की आर्थिक स्थिति बेहतर होती है, उनकी जीवनशैली में शारीरिक कसरत कम होती जाती है, जिससे कैलोरी का सेवन अधिक होता है और शारीरिक गतिविधि कम होती है। यह प्रवृत्ति हिमाचल प्रदेश में भी देखी जा रही है, जहाँ लोगों ने पारंपरिक रूप से सक्रिय जीवनशैली अपनाई है। यह स्थिति स्पष्ट रूप से बताती है कि हिमाचल प्रदेश में मेटाबॉलिक स्वास्थ्य पर विशेष ध्यान देने की तत्काल आवश्यकता है।

इस महत्वपूर्ण अध्ययन में पीजीआई चंडीगढ़ के एंडोक्रिनोलॉजी विभाग, मद्रास डायबिटीज रिसर्च फाउंडेशन के मधुमेह विज्ञान विभाग, अपोलो अस्पताल चेन्नई के डायबिटीज स्पेशलिटीज सेंटर, एम्स नागपुर के जनरल मेडिसिन विभाग, पुडुचेरी इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज के सामुदायिक चिकित्सा विभाग, लीलावती अस्पताल और अनुसंधान केंद्र मुंबई के मधुमेह विज्ञान और एंडोक्रिनोलॉजी विभाग सहित देश के कई बड़े चिकित्सा संस्थानों के विशेषज्ञों ने भाग लिया। यह एक राष्ट्रीय स्तर का प्रयास है जो भारत में मोटापे और मधुमेह के बढ़ते बोझ को समझने और उससे निपटने के लिए महत्वपूर्ण जानकारी प्रदान करता है।

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