शानन पावर हाऊस प्रोजैक्ट मामले पर सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई 8 नवम्बर को

Edited By Vijay, Updated: 23 Sep, 2024 10:06 PM

hearing on shannon power house case on november 8

सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा दायर सिविल सूट को खारिज करने के आग्रह वाले आवेदन पर पंजाब सरकार को नोटिस जारी कर मामले को सुनवाई के लिए 8 नवम्बर को रखा है।

शिमला (ब्यूरो): सर्वोच्च न्यायालय ने हिमाचल प्रदेश सरकार द्वारा दायर सिविल सूट को खारिज करने के आग्रह वाले आवेदन पर पंजाब सरकार को नोटिस जारी कर मामले को सुनवाई के लिए 8 नवम्बर को रखा है। आवेदन में दिए तथ्यों के अनुसार शानन पावर हाऊस प्रोजैक्ट जोगिंदर नगर को बनाने के लिए तत्कालीन राजा मंडी ने 99 वर्षों के लिए जमीन तथा पानी का हक तत्कालीन भारत सरकार (ब्रिटिश सरकार) को दिया था। उपरोक्त समझौता 3 मार्च, 1925 को किया गया था तथा इसकी अवधि 3 मार्च, 2024 को खत्म हो गई थी।

हिमाचल प्रदेश सरकार ने फरवरी 2024 में ही भारत सरकार तथा पंजाब सरकार से आग्रह किया था कि इस प्रोजैक्ट को हिमाचल प्रदेश को वापस दे दिया जाए, क्योंकि लीज की अवधि समाप्त हो गई है तथा प्रोजैक्ट पर हिमाचल सरकार का अधिकार है। हिमाचल प्रदेश सरकार के ही आग्रह के पश्चात पंजाब सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय का दरवाजा खटखटाया तथा हिमाचल प्रदेश द्वारा शानन पावर प्रोजैक्ट पर अधिकार जताने को गलत ठहराया। पंजाब सरकार के अनुसार वर्ष 1967 में पुराने बिजली बोर्ड के विघटन के समय यह प्रोजैक्ट पंजाब सरकार को दे दिया गया था।

इस कारण पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 के अंतर्गत इस प्रोजैक्ट पर पंजाब सरकार का अधिकार है। हिमाचल प्रदेश सरकार ने अपने जवाब शपथ पत्र में कहा है कि मंडी रियासत कभी भी पंजाब का हिस्सा नहीं रही है। इस कारण पंजाब पुनर्गठन अधिनियम 1966 मंडी क्षेत्र पर लागू नहीं होता है। प्रदेश सरकार के अनुसार 1925 का समझौता हिमाचल सरकार (राजा मंडी) तथा तत्कालीन भारत ब्रिटिश सरकार के मध्य हुआ था। प्रदेश सरकार ने भारत सरकार को जमीन तथा पानी का हक 99 वर्षों के लिए लीज पर दिया था। अतः पंजाब सरकार का इस प्रोजैक्ट पर कोई हक नहीं बनता है।

सिविल सूट को रद्द करने के आग्रह वाले आवेदन पर महाधिवक्ता अनूप रत्न ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया कि लीज समझौता भारत सरकार व हिमाचल सरकार (राजा मंडी) के मध्य हुआ था, इसलिए पंजाब सरकार का इस सिविल सूट को दायर करने का कोई कानूनी औचित्य नहीं है। उन्होंने कहा कि भारत के संविधान के अनुच्छेद 131 तथा 363 के अंतर्गत यदि 2 प्रदेश सरकारों में कोई समझौता हुआ है तो उस संदर्भ में उत्पन्न विवाद का निपटारा करने का क्षेत्राधिकार सर्वोच्च न्यायालय के पास नहीं है। अतः पंजाब सरकार द्वारा दायर सिविल सूट को कानून द्वारा वर्जित सिद्धान्त के आधार पर खारिज किया जाए। सर्वोच्च न्यायालय में सुनवाई 8 नवम्बर को होगी।
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