Edited By Jyoti M, Updated: 03 Dec, 2024 12:22 PM
वित्तीय संकट से जूझ रही हिमाचल सरकार ने पिछले हफ्ते 500 करोड़ रुपए का कर्ज जुटाया, जिससे चालू वर्ष के लिए उसकी 6200 करोड़ रुपए की ऋण सीमा समाप्त हो गई। चालू वर्ष (1 अप्रैल से 31 दिसम्बर, 2024) के लिए 6200 करोड़ रुपए की ऋण सीमा समाप्त करने के अलावा...
हिमाचल डेस्क। वित्तीय संकट से जूझ रही हिमाचल सरकार ने पिछले हफ्ते 500 करोड़ रुपए का कर्ज जुटाया, जिससे चालू वर्ष के लिए उसकी 6200 करोड़ रुपए की ऋण सीमा समाप्त हो गई। चालू वर्ष (1 अप्रैल से 31 दिसम्बर, 2024) के लिए 6200 करोड़ रुपए की ऋण सीमा समाप्त करने के अलावा राज्य सरकार ने वित्तीय वर्ष 2024-25 की अंतिम तिमाही के लिए भी ऋण के लिए आवेदन किया है। वित्तीय वर्ष 2023-24 में हिमाचल के लिए ऋण जुटाने की सीमा अंतिम तिमाही के लिए 1700 करोड़ रुपए तय की गई थी। राज्य सरकार 500 करोड़ रुपए के ऋण की इस अंतिम किस्त का उपयोग सेवानिवृत्त सरकारी कर्मचारियों की पैंशन के लिए कर सकती है। 2.25 लाख से अधिक सरकारी कर्मचारियों को उनका वेतन मिल गया है, लेकिन सेवानिवृत्त कर्मचारियों को अभी तक उनकी पैंशन नहीं मिली है।
गंभीर वित्तीय संकट का सामना कर रहे हिमाचल प्रदेश को वेतन और पैंशन पर अपने प्रतिबद्ध व्यय को पूरा करने के लिए प्रति माह 2000 करोड़ रुपये की आवश्यकता है। राजस्व पैदा करने वाले किसी भी क्षेत्र के न होने के कारण राज्य सरकार विभिन्न मदों के तहत आबंटन के लिए केंद्र पर बहुत अधिक निर्भर है।
राज्य ने 2 महीने पहले तब राष्ट्रीय सुर्खियां बटोरीं थीं जब उसके कर्मचारियों और पैंशनभोगियों को देरी से वेतन और पैंशन मिली। मुख्यमंत्री सुखविंदर सिंह सुक्खू ने दावा किया कि यह केवल अतिरिक्त धन बचाने के लिए किया गया था, जो महीने की पहली तारीख को वेतन देने के लिए ऋण लेने पर चुकाना पड़ता। औसतन हिमाचल में एक वित्तीय वर्ष में लगभग 8000 करोड़ रुपए की ऋण सीमा होती है, लेकिन राज्य इस राशि से अपनी प्रतिबद्ध देनदारियों को मुश्किल से पूरा कर पाता है।
सरकार नई पैंशन योजना (एनपीएस) अंशदान के बदले 1500 करोड़ रुपए का अतिरिक्त ऋण जुटा सकते थी, जो अब पुरानी पैंशन योजना की बहाली के बाद संभव नहीं है। 2022 के विधानसभा चुनाव से पहले सत्तारूढ़ कांग्रेस द्वारा की गई 10 गारंटियों को पूरा करने के तहत राज्य सरकार ने 1.35 लाख से अधिक कर्मचारियों के लिए पुरानी पैंशन योजना बहाल कर दी, जिससे सरकारी खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ा है।