कैग की रिपोर्ट में खुलासा, 922 करोड़ बढ़ा हिमाचल का वित्तीय घाटा

Edited By Vijay, Updated: 14 Dec, 2019 11:28 PM

cag report revealed himachal s financial loss increased by 922 crore

नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने हिमाचल सरकार के आर्थिक प्रबंधन की पोल खोल कर रख दी है। कैग की रिपोर्ट में सामने आया है कि प्रदेश में राजस्व प्राप्तियों के मुकाबले खर्चों में 3 फीसदी की बढ़ौतरी के चलते प्रदेश कर्जों में फंस रहा है। आने वाले 10 वर्षों में...

धर्मशाला (जिनेश): नियंत्रक महालेखा परीक्षक ने हिमाचल सरकार के आर्थिक प्रबंधन की पोल खोल कर रख दी है। कैग की रिपोर्ट में सामने आया है कि प्रदेश में राजस्व प्राप्तियों के मुकाबले खर्चों में 3 फीसदी की बढ़ौतरी के चलते प्रदेश कर्जों में फंस रहा है। आने वाले 10 वर्षों में सरकार को 21 हजार 574 करोड़ के ऋण तथा 9483 करोड़ के कर्जे पर ब्याज का भुगतान करना है। विधानसभा के शीतकालीन सत्र के अंतिम दिन कैग की रिपोर्ट सदन में प्रस्तुत की गई। वित्तीय वर्ष  2017-18 में सरकार की आय-व्यय का लेखा-जोखा रिपोर्ट में दर्शाया गया है। हालांकि कैग की रिपोर्ट में सीधे तौर पर कर्जों का उल्लेख नहीं है परंतु प्रदेश की आर्थिकी की जो तस्वीर कैग ने प्रस्तुत की है, उससे साफ है कि करोड़ों रुपए के ऋण पर ब्याज का भुगतान सरकार को करना होगा।

इस रिपोर्ट के अनुसार वित्तीय वर्ष 2017-18 की अंतिम तिमाही के दौरान सरकार 65 से 97 प्रतिशत खर्च कर रही है। केवल मार्च महीने में ही 58 फीसदी राशि प्रदेश सरकार खर्च कर रही है। रिपोर्ट में कहा गया है कि 2016-17 के 2948 करोड़ रुपए के मुकाबले 2017-18 प्रदेश का राजस्व घाटा बढ़कर 3870 करोड़ रुपए हो गया। इसी तरह राजस्व घाटे में एक साल में 922 करोड़ रुपए की बढ़ौतरी हुई। 14वें वित्त आयोग और केंद्र से मिले अनुदान की वजह से 2015-16 और 2016-17 में सरकार राजस्व सरप्लस की स्थिति में रही।

रिपोर्ट के तहत वर्ष 2016-17 में प्रदेश के राजस्व प्राप्तियां 26264 करोड़ थीं, जबकि 2017-18 में 4 प्रतिशत की बढ़ौतरी के साथ राजस्व प्राप्तियां 27367 करोड़ हो गईं। वहीं राजस्व व्यय को देखें तो वर्ष 2016-17 में यह राशि 25344 करोड़ रुपए थीं। वर्ष 2017-18 में राजस्व व्यय 27053 करोड़ रुपए हुआ। इस तरह राजस्व व्यय में 7 प्रतिशत की बढ़ौतरी दर्ज की गई। कैग की रिपोर्ट से साफ है कि राज्य में सरकार की आमदन और खर्चों में 3 फीसदी का सीधा फर्क है। आय के मुकाबले व्यय अधिक होने की वजह से सरकार को आर्थिक तौर पर दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा है।

कुल्लू जिला के सैंज पावर प्रोजैक्ट पर कैग ने गंभीर टिप्पणी की है। प्रोजैक्ट की बिजली बेचना हिमाचल सरकार के लिए टेढ़ी खीर साबित हो सकता है। पावर प्रोजैक्ट की लागत में हुई बेहताशा बढ़ौतरी की वजह से इसकी प्रति यूनिट बिजली की लागत 3.74 से बढ़कर 6.23 रुपए हुई है। कैग की रिपोर्ट में कहा गया है कि 100 मैगावाट के सैंज पावर प्रोजैक्ट के निर्माण में 29 महीने की देरी की वजह से इसकी लागत 676 करोड़ से बढ़कर 1319 करोड़ रुपए से अधिक हो गई। नतीजतन बिजली की लागत बढ़ गई।

हिमाचल पावर कॉर्पोरेशन द्वारा बनाए गए इस पावर प्रोजैक्ट के लिए सरकार ने एडीबी से 659 करोड़ रुपए का ऋण केंद्र के माध्यम से लिया। ऋण की यह राशि केंद्र से अनुदान के तौर पर थी जबकि बाकी की 10 प्रतिशत रकम राज्य सरकार को अपने हिस्से से खर्च करनी थी लेकिन प्रोजैक्ट की स्थापना में देरी की वजह से अनुदान की तमाम राशि ऋण में तब्दील की गई और खजाने पर अतिरिक्त बोझ पड़ा।

कैग ने अपनी रिपोर्ट में खुलासा किया है कि प्रोजैक्ट की लागत बढऩे की एक वजह अधिक भुगतान करना भी है। अधिक भुगतान की राशि 13.60 करोड़ रुपए है। इसके अलावा एमओयू में उचित प्रावधान न होने की वजह से भी इस पावर प्रोजैक्ट के मामले में खजाने पर 18.72 करोड़ रुपए का अतिरिक्त बोझ पड़ा है।

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