Solan: नौणी विश्वविद्यालय के फसल कीटों के जैविक नियंत्रण एआईसीआरपी को मिला सर्वश्रेष्ठ केंद्र पुरस्कार

Edited By Vijay, Updated: 20 Jun, 2025 03:27 PM

aicrp receives best centre award for biological control of crop pests

डॉ. यशवंत सिंह परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी) फसल कीटों के जैविक नियंत्रण केंद्र को अपने प्रदर्शन के लिए वर्ष 2024-2025...

साेलन (ब्यूराे): डॉ. यशवंत सिंह परमार उद्यानिकी एवं वानिकी विश्वविद्यालय नौणी ने एक महत्वपूर्ण उपलब्धि हासिल की है। विश्वविद्यालय के अखिल भारतीय समन्वित अनुसंधान परियोजना (एआईसीआरपी) फसल कीटों के जैविक नियंत्रण केंद्र को अपने प्रदर्शन के लिए वर्ष 2024-2025 सर्वश्रेष्ठ एआईसीआरपी केंद्र चुना गया है। हाल ही में असम कृषि विश्वविद्यालय जोरहाट में आयोजित फसल कीटों के जैविक नियंत्रण पर एआईसीआरपी की वार्षिक बैठक के दौरान यह प्रतिष्ठित पुरस्कार प्रदान किया गया। यह पुरस्कार भारतीय कृषि अनुसंधान परिषद की सहायक महानिदेशक (पौधा संरक्षण एवं जैव सुरक्षा) डॉ. पूनम जसरोटिया और आईसीएआर एनबीएआईआर बेंगलुरु के निदेशक डॉ. एसएन सुशील द्वारा प्रदान किया गया। समारोह में असम कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. बिद्युत चंदन डेका के साथ-साथ देश भर के 70 से अधिक वैज्ञानिक भी शामिल हुए। आईसीएआर के उप महानिदेशक (फसल विज्ञान) डॉ. डीके यादव भी इस कार्यक्रम में वर्चुअल माध्यम से शामिल हुए।

केंद्र के प्रधान अन्वेषक डॉ. सुभाष चंद्र वर्मा ने बताया कि एआईसीआरपी केंद्र 1985 से विश्वविद्यालय के कीट विज्ञान विभाग में संचालित किया जा रहा है और इसने जैविक कीट एवं रोग प्रबंधन के क्षेत्र में उल्लेखनीय प्रगति की है। विश्वविद्यालय की जैव नियंत्रण प्रयोगशाला अनुसंधान और विकास का समर्थन करने के लिए आधुनिक बुनियादी ढांचे और उन्नत सुविधाओं से सुसज्जित है। यह केंद्र फलों, विभिन्न सब्जी फसलों में लगने वाले कीटों के प्रबंधन के लिए मित्र कीटों की पहचान और परजीवी सहित कीटों के प्राकृतिक शत्रुओं के सर्वेक्षण, संग्रह और पहचान में व्यापक कार्य करता है।

वर्तमान में यह अंडा परजीवी की पांच प्रजातियों, माइट, ऐथोकोरिड बग और सूक्ष्मजीवी एजेंटों को पूरे वर्ष प्रयोगशाला में रखता है। इसका इस्तेमाल सब्जियों, फलों में विभिन्न  कीटों  के जैविक  नियंत्रण  के लिए किया जाता है जिससे किसानों की रसायनों पर निर्भरता  कम होती है। अपनी शोध गतिविधियों के अलावा केंद्र विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश के आदिवासी क्षेत्रों में पर्यावरण के अनुकूल कीट प्रबंधन प्रथाओं को बढ़ावा देने में सक्रिय रूप से कार्य कर रहा है। 2024-25 के दौरान, इसने जैविक नियंत्रण रणनीतियों पर जागरूकता बढ़ाने के लिए भरमौर और स्पीति क्षेत्रों में चार प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए। पिछले एक साल में केंद्र के कई शोध पत्र प्रतिष्ठित सहकर्मी-समीक्षित पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुए हैं।

विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. राजेश्वर सिंह चंदेल ने टीम के समर्पण और योगदान की सराहना की। डॉ. सुभाष चंद्र वर्मा (पीआई), डॉ. विश्व गौरव सिंह चंदेल (सह-पीआई) और डॉ. नरेंद्र भरत (परियोजना से जुड़े पैथोलॉजिस्ट) को बधाई देते हुए उन्होंने कहा कि यह मान्यता टीम के सतत प्रयासों और टिकाऊ कृषि के प्रति प्रतिबद्धता का प्रमाण है। यह वैज्ञानिक उत्कृष्टता और सामुदायिक सहभागिता के माध्यम से पर्यावरण के अनुकूल कीट प्रबंधन समाधानों को आगे बढ़ाने के हमारे संकल्प को मजबूत करता है। अनुसंधान निदेशक डॉ. संजीव चौहान एवं विश्वविद्यालय के सभी वैधानिक अधिकारियों और वैज्ञानिकों  ने भी जैविक नियंत्रण टीम को इस सराहनीय उपलब्धि के लिए बधाई दी।
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