Edited By Vijay, Updated: 04 Aug, 2022 09:25 PM
कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर निकट भविष्य में हिमाचली राजमाश के लिए भौगोलिक सूचकांक (जीआई) प्राप्त करेगा। कुलपति प्रो. एचके चौधरी ने यह खुलासा किया है। प्रो. चौधरी जाने-माने गुणसूत्र इंजीनियर और आणविक प्रजनक हैं जिन्होंने त्रिलोकी राजमाश समेत 20...
पालमपुर (भृगु): कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर निकट भविष्य में हिमाचली राजमाश के लिए भौगोलिक सूचकांक (जीआई) प्राप्त करेगा। कुलपति प्रो. एचके चौधरी ने यह खुलासा किया है। प्रो. चौधरी जाने-माने गुणसूत्र इंजीनियर और आणविक प्रजनक हैं जिन्होंने त्रिलोकी राजमाश समेत 20 विभिन्न फसलों को विकसित करने में अपना योगदान दिया है। कुलपति ने कहा कि प्रदेश के कुकमसेरी (लाहौल-स्पीति), किन्नौर, कुल्लू, मंडी और चम्बा जिलों के दुर्गम जनजातीय क्षेत्रों में राजमाश की 368 स्थानीय किस्मों को ढूंढा गया है। राजमाश को एकत्र करने के बाद इनकी विशिष्टता, मूल्यांकन, शोधन के बाद प्राप्त वैरायटी त्रिलोकी राजमाश को प्रजनन शुद्धता को ध्यान में रखते हुए विकसित किया गया है। हिमाचल प्रदेश विज्ञान प्रौद्योगिकी एवं पर्यावरण परिषद (हिमकोस्ट) शिमला के साथ मिलकर विश्वविद्यालय राजमाश के भौगोलिक सूचकांक के लिए प्रयास कर रहा है। इससे राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर स्वीकार्यता मिलेगी।
शुष्क ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों के लिए उपयुक्त है राजमाश की त्रिलोकी किस्म
राजमाश की त्रिलोकी किस्म शुष्क ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में खेती के लिए है। इसका बड़ा और हल्का पीला बीज है जो पकाने में बढ़िया, जैविक स्वाद से भरपूर, बैक्टीरियल ब्लाइट जैसी बीमारी से मुक्त और औसतन प्रति हैक्टेयर 20 से 22 क्विंटल पैदावार रहती है। इसे राजमाश की अन्य किस्मों से 10 से 20 दिन पहले लगाया जाता है। हल्के पीले राजमाश को हिमाचल के ऊंचे पर्वतीय क्षेत्रों में किसानों द्वारा प्रमुखता से लगाया जाता है।
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