पांगणा में खुदाई के दौरान मिली 12वीं शताब्दी की मूर्ति!

Edited By Vijay, Updated: 13 Jan, 2021 11:54 PM

12th century sculpture found in pangana

मंडी जिला की ऐतिहासिक स्थली पांगणा के साथ महिषासुर मर्दिनी माता देहरी मंदिर की खुदाई के दौरान सूर्यदेव की अद्वितीय प्रस्तर प्रतिमा मिली है और कला पक्ष की दृष्टि से इस मूर्ति को 12वीं शताब्दी का माना जा रहा है। पांगणा में खुदाई में मिली इस मूर्ति के...

मंडी (ब्यूरो): मंडी जिला की ऐतिहासिक स्थली पांगणा के साथ महिषासुर मर्दिनी माता देहरी मंदिर की खुदाई के दौरान सूर्यदेव की अद्वितीय प्रस्तर प्रतिमा मिली है और कला पक्ष की दृष्टि से इस मूर्ति को 12वीं शताब्दी का माना जा रहा है। पांगणा में खुदाई में मिली इस मूर्ति के सिर के पृष्ठ भाग में आभामंडल है जो धर्म चक्र का प्रतीक है। सुकेत संस्कृति साहित्य एवं जन कल्याण मंच के अध्यक्ष डॉ. हिमेंद्र बाली हिम का कहना है कि भगवान सूर्य हिंदू परंपरा के पंचदेवों में माने जाते हैं और पांगणा के देहरी माता मंदिर में इन पांचों देवी-देवताओं की मूर्तियां खुदाई में निकली हैं।

डॉ. हिमेंद्र बाली हिम का कहना है कि आठवीं शताब्दी के मध्य में कश्मीर पर कर्कोटक वंश के शासक ललितादित्य मुक्तापीठ का राज्य था जिसने श्रीनगर में प्रसिद्ध सूर्य मंदिर मार्तंड का निर्माण किया था। ललितादित्य ने रावी और सतलुज के बीच जालंधर त्रिगर्त क्षेत्र के अंतर्गत इस क्षेत्र में आधिपत्य स्थापित किया, हो सकता है कि उसी समय पांगणा में सूर्य की पूजा का प्रभाव बढ़ा हो और यहां सूर्य की प्रतिमा की स्थापना हुई हो। ऐसी संभावना है कि सूर्य पूजा के प्रभाव के चलते पांगणा में शक्ति मंदिर में सूर्य की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया है। अत: इस ऐतिहासिक घटनाक्रम के चलते पांगणा के इस शक्ति मंदिर में सूर्य की मूर्ति को प्रतिष्ठित किया गया हो।

पांगणा में मिली इस प्रतिमा के पैरों के पास सारथी अरुण कतारबद्ध बैठे हैं, वहीं सूर्य के अधोभाग में उनकी पत्नियां ऊषा और प्रत्यूषा आयुद्ध धारण कर जैसे अंधेरे का भेदन कर रही हैं। ऊपरी भाग में विद्यालय पंख फैलाए आकाश में विचरण को तैयार हैं। बताते चलें कि हिंदू धर्म की मूर्ति परंपरा में सूर्यदेव की स्थानक मुद्रा में दोनों हाथों में सूर्य भगवान पुष्प लिए हुए हैं। जानकारों का यह भी मानना है कि पांचवीं शताब्दी के वाराह मिहिर प्रणित ग्रंथ वाराह संहिता में कहा गया है कि सूर्य के 2 हाथ हों और सिर पर मुकुट हो लेकिन जो मूर्ति अभी मिली है उसमें सूर्य को उनके जूतों के साथ नहीं दर्शाया गया है।

मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर रखवाया

पुरातत्व चेतना संघ मंडी द्वारा स्वर्गीय चंद्रमणि कश्यप राज्य पुरातत्व चेतना पुरस्कार से सम्मानित डॉ. जगदीश शर्मा का कहना है कि सूर्यदेव की इस मूॢत की शोभा देखते ही बनती है। खुदाई में मूर्ति के प्रकट होने के बाद डॉ. जगदीश शर्मा ने भाषा एवं संस्कृति निदेशालय के सेवानिवृत्त डिप्टी डायरैक्टर चुनीलाल कश्यप और हिमाचल प्रदेश के राज्य संग्रहालय के प्रभारी संग्राध्यक्ष डॉ. हरि चौहान से संपर्क कर इस मूर्ति के दिव्य विग्रह के स्वरूप व इसके निर्माण काल की जानकारी प्राप्त कर मंदिर की देखरेख करने वाले पुजारी सन्नी शर्मा को इस मूर्ति को सुरक्षित स्थान पर रखवा दिया। जगदीश शर्मा का कहना है कि देहरी के इस मंदिर में एक विकसित सभ्यता का बेशकीमती पुरातात्विक खजाना दबा पड़ा है, जिसकी कदर अभी तक कोई नहीं जान पाया है।

मूर्तियों के रखरखाव के लिए संग्रहालय कक्ष का निर्माण जरूरी

स्थानीय लोगों का कहना है कि इस स्थान पर पुरातात्विक धरोहरों को खोजने व संरक्षित करने के लिए पुरातत्व विभाग को वैज्ञानिक और व्यवस्थित प्रयास करने के साथ संस्कृति की अमूल्य धरोहर देहरी माता मंदिर रूपी इस ज्योति स्तंभ के जीर्णोद्धार के साथ यहां आसपास निकली मूर्तियों के रखरखाव के लिए संग्रहालय कक्ष के निर्माण का भरसक प्रयास करना चाहिए ताकि इस अमूल्य निधि का रक्षण हो सके। बंगाल के सेन वंशीय राजा वीरसेन ने यहां सुकेत रियासत की पहली स्थायी राजधानी की स्थापना भी की थी।

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