लाहौल के आलू से कम नहीं ये फसल, बन चुकी है लुथान गांव की पहचान

Edited By Vijay, Updated: 31 Oct, 2020 05:09 PM

this crop became indenty of luthan village

अटल टनल रोहतांग के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा लाहौल के चंद्रमुखी आलू का नाम लेने से बेशक चंद्रमुखी आलू देश-दुनिया में सुर्खियां बटोर रहा हो लेकिन अपने बेजोड़ स्वाद व औषधीय गुणों से भरपूर कांगड़ा जिला के ज्वालामुखी के लुथान की गण्डियाली...

ज्वालामुखी (नितेश): अटल टनल रोहतांग के उद्घाटन अवसर पर प्रधानमंत्री द्वारा लाहौल के चंद्रमुखी आलू का नाम लेने से बेशक चंद्रमुखी आलू देश-दुनिया में सुर्खियां बटोर रहा हो लेकिन अपने बेजोड़ स्वाद व औषधीय गुणों से भरपूर कांगड़ा जिला के ज्वालामुखी के लुथान की गण्डियाली (अरबी) भी कहीं कम नहीं है। आलम यह कि पिछले 7-8 दशक से ब्यास नदी के किनारे पर बसे लुथान गांव की पहचान ही यहां पैदा होने वाली भुरभुरी गण्डियाली बन गई है। संबंधित पंचायत के 300 से भी ज्यादा छोटे-बड़े किसान वर्षों से गण्डियाली की पारंपरिक खेती से जुड़े हैं। वक्त बीतने के साथ-साथ इस क्षेत्र की गण्डियाली इतनी प्रसिद्ध होती जा रही है कि दिल्ली, पंजाब, मुम्बई समेत भारत के कई अन्य राज्यों से इसको खाने के शौकीन लोग खेतों से ही फसल उठा लेते हैं।

खेत में बीजते ही बिक्री के लिए हो जाती है बुक

मांग इतनी है कि जून-जुलाई में बीजे जाने वाली लुथान की गण्डियाली खेत में बीजते ही बिक्री के लिए बुक हो जाती है। अक्टूबर महीने में फसल निकलते ही इसको खाने के शौकीन अपने-अपने घरों में ले जाते हैं। गांव में आजीविका का सबसे मजबूत साधन बन चुकी लुथान की गण्डियाली यहां के 200 कनाल से भी ज्यादा रकबे पर उगाई जा रही है। हर किसान 2 क्विंटल से लेकर 7-8 क्विंटल तक सीजनल पैदावार कर रहा है। इसे बेचकर हर किसान 10 हजार से लेकर 30-35 हजार रुपए की आय अर्जित कर रहा है। गांव की 75 वर्षीय वृद्धा बताती हैं कि लुथान की गण्डियाली की बढ़ती मांग पिछले 50 वर्षों से अपनी आंखों से देखती आ रहीं हैं। पैदावार बढऩे के बाबजूद भी यहां के किसान मांग पूरी नहीं कर पाते।

लॉकडाऊन से और बढ़ा पैदावार का दायरा

क्षेत्र से किसान व शिक्षक विपिन पटियाल बताते हैं कि आधुनिकता की चकाचौंध में आजीविका के लिए गांव से युवा शहर तो गए लेकिन कोरोना ने मातृभूमि की कीमत भी सही से समझा दी। कुछ सालों से लोगों में खेती बाड़ी के लिए मजदूर नहीं मिलने से किसानों का मन उचाट हो रहा था। लेकिन इस साल सैंकड़ों की तादाद में घर लौटे युवकों ने अपनी-अपनी जमीन पर खेती का कार्य किया। कारनवश इस साल गण्डियाली की बम्पर पैदावार हुई है।

 

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