Edited By Kuldeep, Updated: 18 Nov, 2024 06:20 PM
राजधानी शिमला के संजौली के बहुचर्चित संजौली मस्जिद विवाद को लेकर जिला अदालत में अब सुनवाई 22 नवम्बर को रखी गई है। सोमवार को इस मामले में जिला अदालत ने सुनवाई की है और वक्फ बोर्ड को इस मामले में शपथ पत्र दायर करने के लिए कहा है।
शिमला (संतोष): राजधानी शिमला के संजौली के बहुचर्चित संजौली मस्जिद विवाद को लेकर जिला अदालत में अब सुनवाई 22 नवम्बर को रखी गई है। सोमवार को इस मामले में जिला अदालत ने सुनवाई की है और वक्फ बोर्ड को इस मामले में शपथ पत्र दायर करने के लिए कहा है। नगर निगम आयुक्त कोर्ट के 5 अक्तूबर को संजौली मस्जिद को गिराने के फैसले के खिलाफ आल हिमाचल मुस्लिम ऑर्गेनाइजेशन के प्रमुख नजाकत अली द्वारा दायर याचिका पर सोमवार को सुनवाई हुई है। याचिका में आरोप है कि एमसी कोर्ट का फैसला त्रुटिपूर्ण है और इसे दोबारा जांच के लिए वापस भेजा जाना चाहिए। नजाकत अली ने अपनी याचिका में तर्क दिया है कि एमसी कोर्ट ने यह फैसला संजौली मस्जिद कमेटी द्वारा प्रस्तुत हलफनामे के आधार पर सुनाया है। याचिकाकर्त्ता ने इसे पक्षपातपूर्ण और गलत ठहराते हुए जिला अदालत से हस्तक्षेप की मांग की है। इस पर जिला अदालत ने वक्फ बोर्ड से स्पष्टीकरण मांगते हुए शपथ पत्र जमा करने को कहा है।
अदालत ने यह जानने के लिए मस्जिद कमेटी के प्रधान मोहम्मद लतीफ की वैधता पर सवाल उठाए हैं कि क्या उन्हें वक्फ बोर्ड द्वारा अधिकृत किया गया था। इस याचिका पर सोमवार को सुनवाई के बाद न्यायमूर्ति प्रवीण गर्ग की अदालत ने फैसला सुरक्षित रख लिया है और शुक्रवार को इस पर फिर से सुनवाई होगी और साथ ही वक्फ बोर्ड से एक शपथ पत्र भी तलब किया है। इस दौरान वक्फ बोर्ड द्वारा शपथ पत्र जमा करने और अन्य पक्षों की दलीलें सुनी जाएंगी। बता दें कि एमसी कोर्ट ने संजौली में मस्जिद के ऊपर के 3 फ्लोर को हटाने के लिए आदेश दिए हैं। एमसी कोर्ट के इसी निर्णय के खिलाफ आल हिमाचल मुस्लिम एसोसिएशन की ओर से शिमला जिला अदालत में याचिका दायर की गई है।
एमसी की ओर से अधिवक्ता भुवनेश पाल ने कहा कि आज बहस हुई है और एमसी शिमला की ओर से उन्होंने इसकी पैरवी की है। कोर्ट ने वक्फ बोर्ड के सीईओ को 22 नवम्बर को शपथ पत्र दायर करने के लिए कहा है। उसके बाद यह केस आगामी पैरवी के लिए लगेगा। प्रतिवादी ने अदालत को बताया है कि सीईओ टूर पर गए हैं तो अदालत ने किसी भी अधिकृत व्यक्ति द्वारा शपथ पत्र दायर करने के लिए कहा है कि किस कैपेसिटी में इन्हें परमिशन दी थी।
मुस्लिम पक्ष के अधिवक्ता विश्व भूषण शर्मा ने कहा कि कोर्ट में मैंटेनेबिलिटी और लोकस पर बहस हुई है। अदालत में सुनवाई के दौरान कहा है कि सलीम और लतीफ पहले अध्यक्ष नहीं थे और न ही वक्फ बोर्ड के एक्ट 18 के तहत वे अधिकृत हैं। यदि वे नहीं थे तो वे अदालत में पेश भी नहीं हो सकते थे। एमसी कोर्ट ने भी सुनवाई के दौरान इसे नहीं देखा है। इस बिंदू को अदालत में प्रमुखता से उठाया गया है।