Shimla: मेजर सोमनाथ शर्मा एक इंच भी नहीं हटे पीछे, वीरगति को प्राप्त हुए

Edited By Kuldeep, Updated: 02 Nov, 2024 07:23 PM

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मेजर सोमनाथ शर्मा एक इंच भी पीछे नहीं हटे और आखिरकार वीरगति को प्राप्त हुए। संयुक्त मोर्चा ऑफ एक्स सर्विसमैन जेसीओ एवं ओआर के प्रदेशाध्यक्ष सेवानिवृत्त कैप्टन जगदीश वर्मा ने कहा कि 3 नवम्बर, 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा वीरगति को प्राप्त हुए थे और वह...

शिमला (संतोष): मेजर सोमनाथ शर्मा एक इंच भी पीछे नहीं हटे और आखिरकार वीरगति को प्राप्त हुए। संयुक्त मोर्चा ऑफ एक्स सर्विसमैन जेसीओ एवं ओआर के प्रदेशाध्यक्ष सेवानिवृत्त कैप्टन जगदीश वर्मा ने कहा कि 3 नवम्बर, 1947 को मेजर सोमनाथ शर्मा वीरगति को प्राप्त हुए थे और वह अपनी एक कंपनी के साथ बड़गांव में मोर्चा संभाले हुए थे। दुश्मनों की भारी संख्या होने पर भी उन्होंने अपना मोर्चा संभाले रखा और अंत में उन्होंने अपने पीछे हैडक्वार्टर को मैसेज दिया कि दुश्मन हमारे से 50 गज दूर है, लेकिन उनकी संख्या बहुत ज्यादा है। अब हम लोग किसी भी हालत में पीछे एक इंच भी नहीं मुड़ेंगे और अपने आखिरी जवान और आखिरी राऊंड तक लड़ते रहेंगे। उसके बाद वह अपने जवानों के साथ वीरगति को प्राप्त हो गए। भारत सरकार ने उन्हें बाद में परमवीर चक्र से सम्मानित किया था। उन्होंने कहा कि वह अपने संगठन की तरफ से मेजर सोमनाथ शर्मा तथा उनके सभी अन्य बहादुर सैनिकों को श्रद्धांजलि देते हैं तथा हम सब भारतवासी तथा भारत उन शहीदों का हमेशा ऋणी रहेगा, जिन्होंने देश के लिए अपना सर्वोच्च बलिदान दे दिया।

सबसे लंबा चला युद्ध, लेकिन वह स्थान नहीं हुआ प्राप्त
कैप्टन जगदीश ने कहा कि भारत के इतिहास में 1947 का भारत-पाक युद्ध सबसे लंबा युद्ध रहा है, लेकिन राजनेताओं ने अपनी नाकामी छुपाने के लिए इसे आज तक कोई महत्व नहीं दिया है। भारत के स्वतंत्र होने के मात्र 68 दिन के बाद ही कश्मीर पर पाकिस्तान सेना सहित कबाइलियों ने 22 अक्तूबर, 1947 को जम्मू-कश्मीर के राजा हरिसिंह की सेना पर हमला कर दिया था। उनकी सेना को मुजफ्फराबाद से बारामूला तक पीछे हटा दिया था। उसके बाद राजा हरिसिंह ने जम्मू-कश्मीर का विलय भारत में कर भारतीय सरकार से सेना की सहायता मांगी। भारतीय सेना ने अपने पहले युद्ध में कबाइलियों को लगभग आधे कश्मीर से धकेल दिया था।

उन्होंने कहा कि भारत-चीन 1962 युद्ध, भारत-पाक 1965 युद्ध, 1971 का युद्ध व कारगिल की घुसपैठ आदि सभी युद्ध कम समय तक चले थे, लेकिन 1947 का युद्ध सबसे लंबा चलने के साथ-साथ सेना के एक सराहनीय शौर्य की मिसाल थी। उन्होंने कहा कि यह युद्ध 22 अक्तूबर, 1947 से 5 जनवरी, 1949 तक चला, लेकिन इस युद्ध को वह स्थान प्राप्त नहीं हुआ, जो होना चाहिए था। उन्होंने कहा कि यदि सेना को और कुछ समय मिल जाता तो पूरा कश्मीर भारत के कब्जे में होना था और कश्मीर समस्या का हल हमेशा के लिए हो जाना था। इस लंबे व सफल युद्ध को ज्यादा महत्व न देना शायद राजनीतिज्ञों की गलतियों को छुपाना रहा होगा, लेकिन आज 77 वर्ष बाद उन बातों से सबक लेने का समय है। अभी भी हमारा 91,000 स्क्वेयर किलोमीटर भाग पाकिस्तान के कब्जे में है, जिसे पाक अधिकृत कश्मीर कहा जाता है।

पाक ने नहीं माना संयुक्त राष्ट्र संघ का आदेश
उन्होंने कहा कि पाक सेना को 1949 में संयुक्त राष्ट्र संघ ने पाक अधिकृत कश्मीर से हटने को कहा था, लेकिन आज तक वह नहीं हटे हैं। अब सहनशक्ति की सारी सीमाएं पार हो चुकी हैं और कब तक चुप्पी साधे रखेंगे। केंद्र में मोदी सरकार से उम्मीद है कि अन्य मुद्दों पर लिए गए फैसलों के साथ ही पाकिस्तान सरकार से पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर को खाली करवाने के लिए भी उचित कदम उठाएं, ताकि पीओके मुजफ्फराबाद तक भारत का तिरंगा फहराया जाए। यही सही मायनों में भारत के उन 104 शूरवीरों को सच्ची श्रद्धांजलि होगी, जिन्होंने अपने प्राण इस युद्ध में न्यौछावर कर दिए तथा 3,150 गंभीर रूप से जख्मी हुए थे। इस युद्ध में अदम्य साहस के लिए 4 सैनिकों को सर्वोच्च सम्मान परमवीर चक्र से सम्मानित किया था, जिनमें से सबसे पहले परमवीर चक्र विजेता सोमनाथ शर्मा हैं और यह गौरव की बात है कि वह हिमाचल प्रदेश के जिला कांगड़ा के रहने वाले हैं।

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