Edited By Kuldeep, Updated: 02 Aug, 2025 07:33 PM

प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि लोकल कमिश्नर की नियुक्ति साक्ष्य जुटाने के लिए नहीं की जा सकती। लोकल कमिश्नर की नियुक्ति तथ्यों की वास्तविकता जानने के लिए की जाती है।
शिमला (मनोहर): प्रदेश हाईकोर्ट ने स्पष्ट किया कि लोकल कमिश्नर की नियुक्ति साक्ष्य जुटाने के लिए नहीं की जा सकती। लोकल कमिश्नर की नियुक्ति तथ्यों की वास्तविकता जानने के लिए की जाती है। कोर्ट ने कहा कि किसी पक्ष के लिए साक्ष्य जुटाना अदालत का कार्य नहीं है। कोर्ट ने दीवानी मुकद्दमे से जुड़े मामलों के लिए यह महत्वपूर्ण व्यवस्था दी है कि किसी भी पक्ष को तथ्यों की स्थानीय जांच या अपने पक्ष में साक्ष्य जुटाने के लिए लोकल कमिश्नर की अदालत के माध्यम से नियुक्ति करवाने का निहित अधिकार नहीं है। न्यायाधीश अजय मोहन गोयल ने प्रार्थी चुनी लाल की याचिका को खारिज करते हुए यह व्यवस्था दी है।
मामले के अनुसार याचिकाकर्त्ता ने विवादित अतिक्रमण को लेकर दीवानी मुकद्दमा दायर किया है। विवादित भूमि की डिमार्केशन के लिए राजस्व अधिकारी से संपर्क करने की बजाय याचिकाकर्त्ता ने ग्राम पंचायत से संपर्क किया था। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि यह विदित कानून है कि जो आरोप लगाता है, उसे वह साबित करना होता है। कोर्ट ने कहा कि चूंकि वादी ने निचली अदालत के समक्ष आरोप लगाया है कि प्रतिवादी ने विवादित भूमि पर अतिक्रमण किया है, इसलिए इसे साबित करने का दायित्व भी वादी का है।
याचिकाकर्त्ता ने प्रतिवादियों को विवादित संपत्ति पर निर्माण करने से रोकने के लिए स्थायी निषेधाज्ञा के लिए एक मुकद्दमा दायर किया है। यह मुकद्दमा वर्ष 2018 में दायर किया गया था। इस सिविल वाद के लंबित रहने के दौरान याचिकाकर्त्ता द्वारा विवादित भूमि का सीमांकन करने के लिए लोकल कमिश्नर की नियुक्ति के लिए एक आवेदन दायर किया गया था। प्रतिवादियों ने कहा था कि विवादित भूमि का सीमांकन पहले राजस्व एजैंसियों द्वारा दो बार किया गया था। उक्त सीमांकन रिपोर्टों के बाद किसी राजस्व विशेषज्ञ की नियुक्ति की कोई आवश्यकता नहीं है, क्योंकि इन रिपोर्टों में विवादित भूमि पर कोई अतिक्रमण नहीं पाया गया था।