अब यहां जीवन नामुमकिन! न घर बचे, न जमीन.. सिसक रही है सराज घाटी, यह गांव अब रहने लायक नहीं...

Edited By Jyoti M, Updated: 05 Aug, 2025 11:36 AM

seraj valley is sobbing this village is no longer fit for living

मंडी की सराज घाटी में 30 जून की रात आई भयानक बाढ़ और भूस्खलन के बाद से 35 दिन बीत चुके हैं, लेकिन यहां के लोगों का दर्द अभी भी ताज़ा है। इस आपदा में सबकुछ तहस-नहस हो गया है, जिससे घाटी में चारों तरफ मातम का माहौल है। जिन लोगों ने अपने घर, ज़मीन और...

हिमाचल डेस्क। मंडी की सराज घाटी में 30 जून की रात आई भयानक बाढ़ और भूस्खलन के बाद से 35 दिन बीत चुके हैं, लेकिन यहां के लोगों का दर्द अभी भी ताज़ा है। इस आपदा में सबकुछ तहस-नहस हो गया है, जिससे घाटी में चारों तरफ मातम का माहौल है। जिन लोगों ने अपने घर, ज़मीन और प्रियजनों को खो दिया है, उनकी आंखों से 30 जून की रात की यादें मिट नहीं पा रही हैं।

इन इलाकों में अब फिर भारी बारिश ने तबाही मचा दी है। इस आपदा ने लगभग 40 से 50 किलोमीटर के क्षेत्र में भारी तबाही मचाई है। सुराह, खुनागी, शरण, थुनाग, देजी, थुनाड़ी, रूशाड़, वैयोड़ और देयोल जैसे लगभग एक दर्जन गाँव अब रहने लायक नहीं बचे हैं। लगातार हो रहे भूस्खलन और ज़मीन के खिसकने से पहाड़ों की स्थिति और भी खराब हो गई है, जिस पर सुप्रीम कोर्ट ने भी चिंता जताई है। यह सवाल उठता है कि इस तबाही के लिए कौन ज़िम्मेदार है?

जानकारी के अनुसार, थुनाग, जो कभी घराटों (जलचक्कियों) का गढ़ था, अब पहचान में नहीं आता। 1984-85 में जब यह तहसील बना, तो विकास के नाम पर घराट और कूहलों (छोटी नहरों) वाली ज़मीन पर घर और दुकानें बना दी गईं। वक्त के साथ घराट और कूहलें इतिहास बन गईं। इस बार जब भारी बारिश हुई, तो पानी ने अपने पुराने रास्ते पकड़ लिए, जिससे नालों के किनारे बनी इमारतें पूरी तरह से तबाह हो गईं।

इस त्रासदी के बाद थुनाग का भूगोल ही बदल गया है। लगभग 30 से 35 लोग ऐसे हैं जिनके पास न तो घर बचा है और न ही ज़मीन। सराज घाटी के बगस्याड, लंबाथाच, रूशाड़, वैयोड़, जरोल और चिऊणी जैसे इलाकों में भी बेतरतीब निर्माण और अतिक्रमण ने नालों के प्राकृतिक प्रवाह को रोक दिया है। तांदी, मुघान और खमरार में अवैध डंपिंग के कारण नाले नालियों में बदल गए हैं।

स्थानीय लोग मोती राम और सुंदर सिंह का कहना है कि घराट न केवल आटा पीसने का साधन थे, बल्कि सामुदायिक जीवन का भी हिस्सा थे। उन्होंने बताया कि आपदा राहत मैनुअल में घराटों के लिए कोई मुआवज़ा नहीं है। थुनाग के तहसीलदार रजत सेठी ने कहा कि घराटों के बारे में राजस्व रिकॉर्ड की जांच के बाद ही कुछ कहा जा सकता है।

गुमान सिंह, पर्यावरणविद एवं संयोजक हिमालय नीति अभियान के अनुसार, इस तबाही का मुख्य कारण अनियोजित विकास, अवैज्ञानिक तरीके से सड़कों का निर्माण, ढलानों पर मलबे का अनुचित निपटान और नालों के किनारे बस्तियां बसाना है। उन्होंने यह भी बताया कि जलवायु परिवर्तन और प्राकृतिक वनों के विनाश ने भूस्खलन को बढ़ाया है। मलबे के ढेर और नालों में रुकावट ने बाढ़ की तीव्रता को कई गुना बढ़ा दिया, जिससे इतनी बड़ी तबाही हुई। सराज घाटी पर खतरा अभी टला नहीं है।

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