कैंसर अस्पताल का भवन बनाने को NGT की मिली मंजूरी

Edited By Ekta, Updated: 10 May, 2019 10:56 AM

ngt gets approval for building cancer hospital

प्रदेश के एकमात्र कैंसर अस्पताल में नया भवन बनाने के लिए अब एन.जी.टी. की अनुमति मिल गई है। शीघ्र ही यहां पर नया भवन बनकर तैयार होगा। भवन बनाने को लेकर यह कार्य 2012 से लटका हुआ था। पहले अस्पताल के पास जगह को लेकर विवाद चला हुआ था, बाद में एन.जी.टी....

शिमला (जस्टा): प्रदेश के एकमात्र कैंसर अस्पताल में नया भवन बनाने के लिए अब एन.जी.टी. की अनुमति मिल गई है। शीघ्र ही यहां पर नया भवन बनकर तैयार होगा। भवन बनाने को लेकर यह कार्य 2012 से लटका हुआ था। पहले अस्पताल के पास जगह को लेकर विवाद चला हुआ था, बाद में एन.जी.टी. की तलवार लटक गई थी। ऐसे में भवन का कार्य 7 सालों से लंबित पड़ा हुआ था। भवन बनाने का कार्य पी.डब्ल्यू.डी. को सौंप दिया गया है। अब पी.डब्ल्यू.डी. प्रशासन शीघ्र ही कार्य शुरू करेगा। कैंसर अस्पताल के लिए प्रदेश सरकार ने कुल 45 करोड़ रुपए की धनराशि स्वीकृत की है। इसमें से 14 करोड़ रुपए कैंसर अस्पताल को सरकार पहले ही दे चुकी है। 

सरकार द्वारा प्रस्तावित किए गए 45 करोड़ रुपए से नया भवन व लीनियर एक्सीलेटर मशीन स्थापित होनी है। प्रशासन अस्पताल में 14 करोड़ रुपए की लागत से लीनियर एक्सीलेटर मशीन स्थापित करेगा। यह मशीन नए भवन में स्थापित की जाएगी। मशीन स्थापित होने से कैंसर के मरीजों का आसानी से इलाज होगा। भवन न बनने से यह मशीन भी स्थापित नहीं हो पा रही थी। मशीन के लिए जगह का अभाव था। ऐसे में प्रशासन ने निर्णय लिया था कि जैसे ही नया भवन बनकर तैयार होगा तो तुरंत मशीन स्थापित की जाएगी। मशीन स्थापित न होने से मरीजों को पी.जी.आई. रैफर किया जाता है लेकिन हिमाचल के कैंसर पीड़ित मरीज अब पी.जी.आई. रैफर नहीं होंगे। कैंसर अस्पताल में नया भवन पार्किंग की जगह पर बन रहा है। यहां पर एक पेड़ भी पहले ही काट दिया गया है। अब भवन बनाने के लिए पेड़ भी नहीं कटेंगे। ऐसे में भवन जल्द ही बनकर तैयार होगा। 1986 में बने इस कैंसर अस्पताल की हालत दयनीय हो गई थी।

नया भवन बनने पर बढ़ाई जाए बिस्तरों की संख्या

लोगों का कहना है कि जब नया भवन बनकर तैयार होगा तो यहां पर बिस्तरों की संख्या भी बढऩी चाहिए ताकि मरीजों को ठहरने में कोई दिक्कत न आए। कैंसर अस्पताल में मरीजों की संख्या तो बढ़ती जा रही है लेकिन बिस्तरों की संख्या नहीं बढ़ी है। अस्पताल में मात्र 42 बिस्तर हैं जिनमें से 13 बिस्तर महिला मरीजों और 24 बिस्तर पुरुष मरीजों के लिए हैं जबकि आपातकालीन में 5 बिस्तरों की सुविधा है। यहां ओ.पी.डी. में रोजाना 100 से 120 मरीज चैकअप करवाने आते हैं जिनमें से 10-15 को उपचार के लिए भर्ती कर लिया जाता है। इस स्थिति में साफ अंदाजा लगाया जा सकता है कि रोजाना बढऩे वाली मरीजों की संख्या पर मात्र 42 बिस्तर कहां तक पूरे होते होंगे। आलम तो यह है कि मरीज अस्पताल के बाहर बैंचों पर ही रहने को मजबूर हैं।

कीमोथैरेपी की हो उचित सुविधा

एन.जी.टी. की अनुमति मिलने से अब लोगों की उम्मीदें जाग उठी हैं कि अब शीघ्र यहां पर कीमोथैरेपी के लिए भी पूरी सुविधा मिलेगी। प्रदेश में प्रतिवर्ष लगभग 5,000 नए कैंसर के मामले सामने आ रहे हैं जिनमें से 50 प्रतिशत आई.जी.एम.सी. में पंजीकृत होते हैं। अस्पताल में यहां थैरेपी की मात्र 2 मशीनें हैं जबकि इलाज करवाने वालों की संख्या रोजाना 200 से अधिक होती है। मशीनें कम होने के कारण मरीजों को 3 महीने तक कीमोथैरेपी के लिए इंतजार करना पड़ता है। यही नहीं, इस अस्पताल में सालों से उपयोग हो रही कीमोथैरेपी की मशीनों को तो कई राज्यों में कंडम कर दिया गया है।

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